tag:blogger.com,1999:blog-5826908165840830090.post1457678834872893293..comments2023-10-17T01:05:42.304-07:00Comments on बतकही: गाहे-बगाहे यह क्या लिख दिया विनीत भाईआशीष कुमार 'अंशु'http://www.blogger.com/profile/12024916196334773939noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-5826908165840830090.post-48493210162913998572009-01-23T05:53:00.000-08:002009-01-23T05:53:00.000-08:00आशीषजी के विचार से पूर्णत: सहमत हूं। बहुत ही शालीन...आशीषजी के विचार से पूर्णत: सहमत हूं। बहुत ही शालीनतापूर्वक उन्होंने अपनी बात रखी हैं। मुझे भी उन्होंने 'मीडिया स्कैन' के ब्लॉग विशेषांक के लिए कुछ लिखने हेतु कहा था और लेख छपने के बाद मैंने भी उन्हें उलाहना दिया था कि भाई, लेख के कुछ महत्वपूर्ण अंश संपादित हो गये हैं। उन्होंने वाजिब तर्क गिनाएं और मैं संतुष्ट हुआ। <BR/><BR/>दरअसल, आज पत्रकारिता का आधार हो गया हैं सनसनी। बिना बातों को समझे और उसे पुष्ट किए बिना प्रस्तुत कर देना। इसे सब कोई जानते होंगे कि प्रायोजिकता के दौर में अव्यावसायिक तौर पर मुद्रित सामग्री लोगों तक पहुंचाना, कितना कठिन काम हैं। कुछ नौजवानों द्वारा प्रकाशित 'मीडिया स्कैन' के पास महज चार पन्ने हैं और कोशिश की जाती है कि श्रेष्ठ सामग्री लोगों तक पहुंचे। फिर संपादक का तो विशेषाधिकार होता है संपादन करना।<BR/><BR/>मैंने जो 'मीडिया स्कैन' में अपने विचार प्रस्तुत किए थे उसकी अंतिम पंक्ति यहां प्रस्तुत करना समीचीन होगा- <B>हिंदी चिट्ठाकारिता बेवजह की सनसनी से मुक्त होकर लोकतांत्रिक रवैया अपनाते हुए समाज में व्याप्त वैचारिक जड़ता को तोड़ने का प्रयास करे।</B>संजीव कुमार सिन्हाhttps://www.blogger.com/profile/11879095124650917997noreply@blogger.com