tag:blogger.com,1999:blog-5826908165840830090.post7583746773660775973..comments2023-10-17T01:05:42.304-07:00Comments on बतकही: बिन्दास बोल - कैसे बोलें बिन्दास?आशीष कुमार 'अंशु'http://www.blogger.com/profile/12024916196334773939noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-5826908165840830090.post-3807955861888312412007-10-20T02:21:00.000-07:002007-10-20T02:21:00.000-07:00बहुत बढिया आशीष। भारत को भारत ही रहने दो, इसे अमेर...बहुत बढिया आशीष। भारत को भारत ही रहने दो, इसे अमेरिका मत बनाओ।संजीव कुमार सिन्हाhttps://www.blogger.com/profile/11879095124650917997noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5826908165840830090.post-51635045117068121492007-10-20T01:05:00.000-07:002007-10-20T01:05:00.000-07:00लोगों का यह कहना कि कण्डोम जैसी वस्तुओं के बारे मे...लोगों का यह कहना कि कण्डोम जैसी वस्तुओं के बारे में स्पष्ट बात करना या लोगों को सलाह देना कि वे इनका इस्तमाल करें, जैसी बातों से विवाह के बाहर सेक्स फ़ैलता है या नवयुवक और नवयुवतियों को गलत आचरण करने की प्रेरणा मिलती है मेरे विचार में वह लोग सच्चाई से मुँह छुपाना चाहते हैं. मैं सोचता हूँ कि सेक्स मानव जीवन का अभिन्न अंग रहा है और रहेगा, चाहे हम जितनी भी रोक लगायें हमेशा से ही यही हुआ है वरना वेश्यावृति को संसार का सबसे पुराना धँधा नहीं कहते. चाहे बात एडस या अन्य सेक्स सम्बंधी बीमारियों से बचने की हो या परिवार नियोजन की, दोनों ही बातों में कण्डोम का इस्तमाल का महत्वपूर्ण स्थान है. यह हो सकता है कि 1 प्रतिशत व्यक्तियों को इससे पूरी सुरक्षा न मिले, पर बाकी 99 प्रतिशत को तो मिलती है, और उसे झुठलाना गलत बात है. जो लोग धर्म की या नैतिकता की दुहाई दे कर चाहते हैं कि यह बातें परदे के पीछे छुपी रहें, मुझे लगता है कि वह उसी समाज का नुक्सान करते हैं जिसे बचाना चाहते हैं.Sunil Deepakhttps://www.blogger.com/profile/05781674474022699458noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5826908165840830090.post-36884533034444602672007-10-20T00:28:00.000-07:002007-10-20T00:28:00.000-07:00आपने एक अच्छे विषय पर विचारा है।किसी भी चीज की अति...आपने एक अच्छे विषय पर विचारा है।<BR/><BR/>किसी भी चीज की अति अक्सर बुरी होती है। कण्डोम के प्रचार के मामले में भी हमे संतुलन का ध्यान रखना पड़ेगा। भारत में यौन-सम्भन्धी बातचीत एवं संचार कभी भी पाप/तोबा/त्याज्य नही माना गया। इसलिये 'कण्डोम' शब्द को जिह्वा पर लाने से हमारी संस्कृति को कोई आँच नहीं आने वाली है। दूसरी तरफ संयम, त्याग, संतोष आदि हमारे लिये सदा से ही वांछित गुण रहे हैं। इन दोनो का सम्यक मिश्रण ही हमारे लिये उपयुक्त है।अनुनाद सिंहhttps://www.blogger.com/profile/05634421007709892634noreply@blogger.com