tag:blogger.com,1999:blog-5826908165840830090.post9141931936956843235..comments2023-10-17T01:05:42.304-07:00Comments on बतकही: क्या तुम्हें मुसलमानों के बीच में जाते हुए डर नहीं लगता?आशीष कुमार 'अंशु'http://www.blogger.com/profile/12024916196334773939noreply@blogger.comBlogger20125tag:blogger.com,1999:blog-5826908165840830090.post-38349162529081033892009-04-22T20:14:00.000-07:002009-04-22T20:14:00.000-07:00आपके भ्रमों का निवारण हो जायेगा, पश्चिमी उत्तर प्र...आपके भ्रमों का निवारण हो जायेगा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश का दौरा कर देखिये. कुछ पाखंड ऐसे होते हैं जो आसानी से दूर नहीं होते. अहं ब्रहास्मि पढी़ होगी. बाकी तालिबान का उदाहरण आपके सामने है. मुस्लिमों की आधिकारिक गणना चालीस प्रतिशत तक पहुंचने दीजिये, आपको खुद-ब-खुद समझ आ जायेगा, पूछने की जरूरत नहीं पड़ेगी.भारतीय नागरिक - Indian Citizenhttps://www.blogger.com/profile/07029593617561774841noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5826908165840830090.post-26199784623509257402009-04-19T11:21:00.000-07:002009-04-19T11:21:00.000-07:00mai roj waha se gujrta hu dost mujhe to kabhi dar ...mai roj waha se gujrta hu dost mujhe to kabhi dar nahi laga.100muslim me se 2 galat hote hai iska matlab ye nahi ki sab pe shak kiya jaye.mere kai muslim dost hai jo kisi bhi hindu dost se kam nahi.sab kuchh insan ki soch per nirbhar hai..kamlesh yadavhttps://www.blogger.com/profile/15524626040337282414noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5826908165840830090.post-70132297792142368022009-04-19T00:29:00.000-07:002009-04-19T00:29:00.000-07:00यह सवाल निजी था अच्छा होता निजी रहता . फिरभी सच यह...यह सवाल निजी था अच्छा होता निजी रहता . फिरभी सच यह है की ऐसी धारणाएं विवेकपूर्ण परिक्षण के आभाव के फलस्वरूप भी होती हैं यदि हम अनुभव को सत्य के सर्वाधिक निकट मानें तो ऐसी बहुत सी गैर मुस्लिम बस्तियन भी होती हैं जहाँ जाने में किसी को दर लग सकता हैसुरेश यादवhttps://www.blogger.com/profile/16080483473983405812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5826908165840830090.post-14357400412621577052009-04-18T00:01:00.000-07:002009-04-18T00:01:00.000-07:00जो भी ये बात कहता है वो और कुछ भी हो साथी तो नहीं ...जो भी ये बात कहता है वो और कुछ भी हो साथी तो नहीं हो सकता. भोजपुरी मे एक शब्द है -- 'संघतिया' जो दोस्त के अर्थ मे भी प्रयुक्त होता है. इसका विश्लेषण "संग रह कर घात लगाने वाला" भी मेरे एक दोस्त रणजीत किया करते थे. तो ये महोदय वही संघतिया होंगे, साथी नहीं.<br /><br />ख्वाजा मेरे ख्वाजा, दिल मे समां जा <br />ऐसे लोगो को राह तू दिखा जाNILAMBUJhttps://www.blogger.com/profile/07995469082747923045noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5826908165840830090.post-52442261649140966332009-04-15T07:15:00.000-07:002009-04-15T07:15:00.000-07:00डर तो नही लेकिन झिझक जरुर महसूस होती है, परन्तु कु...डर तो नही लेकिन झिझक जरुर महसूस होती है, परन्तु कुछ धारणा एसी बनी है की लोग मुसलमानों के बीच में जाने से डरते है | अगर ज्यादातर गलत कामों में मुसलमान शामिल हैं तों मेरा कहना यह है की दूध का जला छाछ भी फूक फूक के पीता है |Himanshu Dabralnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5826908165840830090.post-36256667006927846352009-04-15T06:16:00.000-07:002009-04-15T06:16:00.000-07:00डर तो नही लेकिन झिझक जरुर महसूस होती है, परन्तु कु...डर तो नही लेकिन झिझक जरुर महसूस होती है, परन्तु कुछ धारणा एसी बनी है की लोग मुसलमानों के बीच में जाने से डरते है | अगर ज्यादातर गलत कामों में मुसलमान शामिल हैं तों मेरा कहना यह है की दूध का जला छाछ भी फूक फूक के पीता है |Himanshu Dabralnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5826908165840830090.post-13105608764938349012009-04-13T04:10:00.000-07:002009-04-13T04:10:00.000-07:00अनुभव इतनी निर्दोष चीज भी नहीं है, बहुत बार हम वही...अनुभव इतनी निर्दोष चीज भी नहीं है, बहुत बार हम वही अनुभव करते हैं (या कहें कि उन्ही अनुभवों को दर्ज करते हैं) जो हमारी मान्यताओं के अनूरूप होते हैं। <BR/><BR/>हमारे विद्यार्थियों की अन्य कॉलेजों की तुलना में मुस्लिम अधिक होते हैं, कई बार तो क्लास ही 'मुस्लिम बस्ती' होती है पर नही हमें क्लास में जाने में डर नही लगता। इसका मतलब ये भी नहीं कि इस तरह की धारणाओं के कोई आधार नही... एक बड़ा आधार तो 'घेटो सिंड्राम' के चलते जो खुद असुरक्षा से जन्मता है- इन बस्तियों (और जिंदगियों) का आर्किटेक्चर है जो एक किस्म का भय पैदा करता है। <BR/><BR/>फिर भी हमारा मानना है, यही हमारा अनुभव भी है कि जितना ज्यादा हम दूसरे समुदायों को जानेंगे हमारे भ्रम दूर ही होंगे।मसिजीवीhttps://www.blogger.com/profile/07021246043298418662noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5826908165840830090.post-40323514833123945532009-04-12T04:58:00.000-07:002009-04-12T04:58:00.000-07:00मेरे पास तो न ही अच्छे बुरे इस विषय में अनुभव हैं ...मेरे पास तो न ही अच्छे बुरे इस विषय में अनुभव हैं न ही इस बात का उत्तर। शायद जिसे नहीं जानते उसका भय भी होता है। छवि बिगड़ी है इसमें कोई शंका नहीं। परन्तु यह भी सच है कि यदि अंधेरे में कोई गाड़ी रोक दे या रास्ता रोक दे तो शायद उसका धर्म क्या है यह विचार मन में नहीं आएगा बल्कि उसकी मंशा क्या है का विचार आएगा।<BR/>घुघूती बासूतीghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5826908165840830090.post-71888740467854228612009-04-11T20:51:00.000-07:002009-04-11T20:51:00.000-07:00Disputed lekin satya hai " dar lagta hai".Disputed lekin satya hai " dar lagta hai".Pushpendra Paliwalhttps://www.blogger.com/profile/06911759826997520047noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5826908165840830090.post-60910942616494946802009-04-11T10:00:00.000-07:002009-04-11T10:00:00.000-07:00संजय भाई, अनुभव कम नहीं हैं — गोडसे, कटियार, योगी,...संजय भाई, अनुभव कम नहीं हैं — गोडसे, कटियार, योगी, ऋतंभरा, उमा, मोदी, प्रज्ञा, पुरोहित, कानपुर के राजीव मिश्रा और वरुण भी मान्यताएं बनाते हैं। क्या नहीं?कपिलhttp://andarkeebaat.blogspot.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5826908165840830090.post-61323904099092033992009-04-11T09:42:00.000-07:002009-04-11T09:42:00.000-07:00मैं यहाँ किसी बहस में नहीं पड़ना चाहता.. और मैं इस...मैं यहाँ किसी बहस में नहीं पड़ना चाहता.. और मैं इस बात का जवाब इसलिए नहीं दे रहा की मैं मुसलमान हूँ.... पर कुछ है जो साफ़ करना जरूरी समझता हूँ.....<BR/><BR/><BR/>एक शब्द है "धारणा". बचपन में जब बच्चा ये सवाल करता है कि "माँ, मैं कहाँ से आया?" तो उसकी माँ या दादी-नानी उससे ये कहती कि बेटा तुझे तो एक परी दे कर गयी थी. बच्चा इस बात को ही सच मानने लग जाता है. जैसे जैसे वो बड़ा होता है और उसे सच्चाई का पता लगना शुरू होता है तो बचपन की वो परी उसके मन में दुविधा पैदा करती है पर अंततः वो समझ जाता है. <BR/><BR/>ठीक यही बात यहाँ भी है. हमारे मन में अब भी ये धारणा है कि मुसलमान तो ग़दर फिल्म के अमरीश पूरी की तरह ही होता है. और रही सही कसर आतंक और आतंकवादियों ने पूरी कर दी.<BR/><BR/>हमें बड़े होने में अभी समय लगेगा.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5826908165840830090.post-8727716058544926882009-04-11T06:30:00.000-07:002009-04-11T06:30:00.000-07:00sab to insaan hai ,ye hindu musalman kaha se aa ga...sab to insaan hai ,ye hindu musalman kaha se aa gaya,hum is baat se sehmat nahi,aatanki ka koi majhab nahi hota,wo bas insaaniyat ka dushman hota hai.amen.darr bas mann ka khel hai.mehekhttp://mehhekk.wordpress.com/noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5826908165840830090.post-37264092341501813362009-04-11T04:26:00.000-07:002009-04-11T04:26:00.000-07:00आशीष भाई दरअसल मैं कुछ चीजें एईसी होती है जिन्हें ...आशीष भाई <BR/>दरअसल मैं कुछ चीजें एईसी होती है जिन्हें लोग केवल बातों मैं ही सच मान लेते लेते हैं और फिर फैलान शुरू करते हैं | <BR/>अभी नए भोपाल मैं कुछ एइसा ही शगल चल रहा है कि आप यदि मुसलमान हो तो मकान नहीं मिलेगा आपको किराये से | नयी बन रही कालोनी मैं भी आपको मकान नहीं मिलेगा यदि आप मुसलमान हो | समझ नहीं आता कि ये कौन सी संस्कृति जनम ले रही है |Prashant Dubeynoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5826908165840830090.post-72513168092549951382009-04-11T02:15:00.000-07:002009-04-11T02:15:00.000-07:00दिनेशरायजी, मान्यताएं अनुभवों के आधार पर बनती है.दिनेशरायजी, मान्यताएं अनुभवों के आधार पर बनती है.संजय बेंगाणीhttps://www.blogger.com/profile/07302297507492945366noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5826908165840830090.post-3966695487531581782009-04-11T02:04:00.000-07:002009-04-11T02:04:00.000-07:00आम आदमी और आतंकी में फर्क है. हर मुसलमान आतंकी नही...आम आदमी और आतंकी में फर्क है. हर मुसलमान आतंकी नहीं है. हम लोग कई सालों से उनके साथ जी रहे हैं. आजकल की स्थितियां बदल गयीं हैं. अब हमें हर मुसलमान आतंकी दिखने लगा है. क्या हम जिमेदार हैं या वे जो उन आतंकियों को पनाह दे रहे हैं.P.N. Subramanianhttps://www.blogger.com/profile/01420464521174227821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5826908165840830090.post-62892508680010707072009-04-11T01:47:00.000-07:002009-04-11T01:47:00.000-07:00बात तो सही है कि मुस्लमान बस्तियों में जाने पर ऐसा...बात तो सही है कि मुस्लमान बस्तियों में जाने पर ऐसा अहसास होता है कि ये लोग हिन्दुओं को पसंद नहीं करते, अगर कोई मेरी बात से सहमत न हो तो कृप्या पुरानी मुस्लिम बस्ती में जाये और फ़िर बताये।विवेक रस्तोगीhttps://www.blogger.com/profile/01077993505906607655noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5826908165840830090.post-76787056351232720482009-04-11T01:24:00.000-07:002009-04-11T01:24:00.000-07:00जो हर मुसलमान को आतंकी मानते हैं वे ही सब से अधिक ...जो हर मुसलमान को आतंकी मानते हैं वे ही सब से अधिक डरते हैं।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5826908165840830090.post-84270750217507887642009-04-11T01:17:00.000-07:002009-04-11T01:17:00.000-07:00किसी की छवि कोई एक दिन या एक घण्ते में नहीं बनती। ...किसी की छवि कोई एक दिन या एक घण्ते में नहीं बनती। यह सदियों के कारनामों के औसत के रूप में समाज के सामने आता है। यह एक सांख्यिकीय सत्य है। यह उतना ही सत्य है जितना यह कहना कि सावन में खूब वर्षा होती है। (कभी कभार सूछा हो जाय इससे इस बात की सत्यता कम नहींहो जाती)अनुनाद सिंहhttps://www.blogger.com/profile/05634421007709892634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5826908165840830090.post-4426771289633297962009-04-11T00:58:00.000-07:002009-04-11T00:58:00.000-07:00सबसे पहले फोटो पर टिप्पडी | कुछ दिन पहले अमर सिंह ...सबसे पहले फोटो पर टिप्पडी | कुछ दिन पहले अमर सिंह ऐसा ही टोपी पहन कर कैमरा के सामने कूद रहे थे | कभी धोती पहन मंदिर में पूजा करते फोटो भी डाला जाये | आपके दोस्त की टिप्पडी वाकई अजूबा नहीं है | इसके लिए अब मोदी अडवाणी को तो दोषी नहीं ही ठहराया जा सकता है :)Unknownhttps://www.blogger.com/profile/17929065184830995073noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5826908165840830090.post-42589311596325299142009-04-11T00:34:00.000-07:002009-04-11T00:34:00.000-07:00थोड़ा अजिब सा लगेगा मगर यह सच है कि मेरी बहन सारा श...थोड़ा अजिब सा लगेगा मगर यह सच है कि मेरी बहन सारा शहर घूम लेती है, मगर मुस्लिम बस्ती में जाते हुए घबराती है.संजय बेंगाणीhttps://www.blogger.com/profile/07302297507492945366noreply@blogger.com