महोबा बुंदेलखंड के अन्दर आने वाले एक जिले का नाम है। इसके पास में ही है चरखारी जिसे बुंदेलखंड का कश्मीर कहते हैं। जिसके अंतर्गत आने वाला एक छोटा सा गाँव है टीलवापुरा। ये ७५ साल के बुजुर्ग अपनी ७० साल की पत्नी के साथ इसी गाँव में रहते हैं। ये बुजुर्ग अपनी रीढ़ की हड्डी की बीमारी की वजह से पिछ्ले १० सालों से चलने फिरने के काबिल नहीं हैं। इनकी पत्नी कंडे और लकडी बेचकर इनका लालन-पालन कर रही है। ज़रा सोचियेगा इस देश में कितना गम है, और आपका गम कितना कम है। इनका गम देखेगे तो अपना गम कम लागने लगेगा।
मंगलवार, 22 अप्रैल 2008
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2 टिप्पणियां:
आप बिल्कुल सही फरमा रहे हैं। इस देश में बड़े-बुज़ुर्गों की यही त्रासदी है.... समझ में नहीं आ रहा कि किसी एनजीओ की नज़र अभी तक इस अभागे दंपति पर पड़ी नहीं या नज़र जानबूझ कर फेर ली गई। अगर कुछ इन बुजुर्ग की तकलीफ के बारे में लिखेंगे, तो शायद हम कुछ कह पायें।
क्या करें, कुछ समझ में नहीं आता ....और एक तरफ ये लोग हैं और दूसरी तऱफ विवाह-शादियों को पार्टीयों में पैसा पानी की तरह बहाया जाता है.......लेकिन फिर भी समझ में नहीं आ रहा कि आखिर इस का क्या समाधान है.....ऐसी टिप्पणी देते हुये एक लज्जा सी भी आ रही है क्योंकि मेरे लिये यह सब इतनी आसानी से लिख देना कि इस का कोई समाधान नहीं दिखता.....यह टिप्पणी शायद मेरे लिये इस कारण भी संभव है क्योंकि ये दंपति मेरे परिवार का हिस्सा नहीं हैं। बस, अब यहीं अपनी शमर्सार सी कलम को विराम देता हूं।
आंखें खोल देनेवाली फ़ोटो.
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