शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2010

कुछ बोलती तस्वीर


चंचल मुखर्जी की यह पेंटिंग आज ही मेल पर आई है, पहचानिए क्या बोलती है यह तस्वीर...

शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2010

कविता की पाठशाला



राष्ट्रीय कवि संगम' दिल्ली में नियमित गोष्ठियों के माध्यम से चलाई जा रही है। इसमें देशभर के प्रतिष्ठित गीत, छंद, गजल, हास्य के उस्ताद आकर उभरते कवियों को इस क्षेत्र की बारीकियां सिखाते हैं। साथ ही नए कवियों को मंच पर प्रस्तुति का अवसर भी दिया जाता है
क्या तुम ऐसी पाठशाला की कल्पना कर सकते हो, जहां किशोरों और युवाओं को कविता लिखना और मंच पर उसकी प्रस्तुति सिखाई जाती हो। ऐसी ही एक पाठशाला ‘राष्ट्रीय कवि संगम’ दिल्ली में नियमित गोिष्ठयों के माध्यम से चलाई जा रही है। इसमें देशभर के प्रतििष्ठत गीत, छंद, गजल, हास्य के उस्ताद आकर उभरते कवियों को इस क्षेत्र की बारीकियां सिखाते हैं। यहां नए कवियों को इस बात का अवसर भी दिया जाता है कि वे वरिष्ठ कवियों के सामने अपने सवाल रख सकें। इस मंच के माध्यम से पद्मिनी शर्मा (19), प्रबल पोद्दार (18) प्रीति विश्वास (21) जैसे कई किशोर कवियों ने अपनी मंचीय पहचान बनाई है।
50 सेकेण्ड का प्रबंधन मंच पर लगातार जमे जमाए कवियों को ही बुलाए जाने की परंपरा रही है, इस तरह मंच पर अपार संभावनाओं के बावजूद नए कवियों के लिए ‘द्वार’ लगभग बंद ही थे। लेकिन नए कवियों के लिए मौका कवि संगम ने उपलब्ध कराया। वह नए प्रतिभावान कवियों के लिए पिछले तीन वर्षों से ‘दस्तक नई पीढ़ी की’ के नाम से कार्यक्रम कराता आ रहा है। इन तीन सालों में संगम ने तीन दर्जन से भी अधिक युवा कवियों को राष्ट्रीय पटल पर लाकर रखा। संगम से जुड़े शंभू शिखर और दीपक गुप्ता ने लाफ्टर चैलेन्ज-दो में दिल्ली का प्रतिनिधित्व भी किया है। मंच पर लाने से पहले
‘दस्तक युवा पीढ़ी की’ के मंच पर आने से पहले इसकी टीम में शामिल कवियों को पूरे एक साल तक प्रशिक्षित करने का काम ‘राष्ट्रीय कवि संगम’ करता है। कवि संगम ने अपने जिम्मे यह बिल्कुल नए तरह का काम लिया है। देश भर में छुपे उन प्रतिभाओं को तलाशने और मंचीय प्रस्तुति के लिए दक्ष करने का, जिनमें जरा सी भी अंकुरित, पल्लवित, पुिष्पत होने की संभावना हो। मंचीय कविता के नए रंगरूटों को दंगल में उतरने से पहले राष्ट्रीय कवि संगम के मासिक गोष्ठी में अपने रचनाओं की जोर आजमाइश करनी होती है। कैसी हो कविता
संगम से जुड़े कवियों का स्पष्ट मानना है, कविता किसी भी विधा में लिखी जाए, यदि वह समाज को कोई सार्थक संदेश नहीं देती, फिर उस कविता का होना या ना होना बराबर है।
वर्तमान में यह मासिक गोष्ठियां राजधानी में आयोजित हो रहीं हंै। इन गोिष्ठयों में शामिल होने के लिए सिर्फ इतनी योग्यता चाहिए कि आप कविता लिखते हों और आपकी रूचि मंचीय कविता में हो। आने वाले समय में इस तरह की गोिष्ठयों को देश के दूसरे हिस्सों में शुरू करने की योजना संगम बना रहा है।
सबके लिए खुला मंच
कवि संगम की सबसे अच्छी बात यह है कि मंच वाया गोष्ठी की दूरी तय करने के लिए यहां न किसी की पैरवी चलती है, न आरक्षण। यदि आप में मंच पर अच्छा प्रदर्शन करने की योग्यता है तो समझिए राष्ट्रीय कवि संगम को आपकी तलाश है।
Updated : Monday, 18 Jan 2010, 14:42 [IST]
(http://www.rashtriyasahara.com/NewsDetails.aspx?lNewsID=111466&lCategoryID=२८)

20 फरवरी को दिल्ली में “साईकिल रैली”


18 फरवरी 2010, (नई दिल्ली) आगामी दस दिनों के बाद हॉकी का विश्व कप टूर्नामेंट दिल्ली में आयोजित होने जा रहा है। लेकिन अब भी मीडिया सिर्फ क्रिकेट पर ही ध्यान देने में व्यस्त है। देश की जनता भी इस राष्ट्रीय खेल के विश्व कप से परिचित नहीं है, और न ही मीडिया व सरकार ने देश की जनता को इससे परिचित कराने की कोई की है।
इन्हीं बातों के संदर्भ में सामाजिक मुद्दों पर युवाओं के बीच काम करने वाली संगठन “युवा कोशिश” देश की जनता को इस राष्ट्रीय खेल से बाखबर करने की कोशिश की है। जिसके तहत एक “साईकिल रैली” का आयोजन दिनांक 20 फरवरी, शनिवार 11 बजे दिन जामिया मिल्लिया इस्लामिया से जंतर-मंतर तक किया है।
इस “साईकिल रैली” में भूतपूर्व गवर्नर सैय्यद सिब्ते रज़ी, अशोक माथुर (सचिव, दिल्ली हॉकी एसोशियन), एच.एस. खरबंदा और हॉकी के अन्य प्रसिद्ध व्यक्तित्व के अलावा दिल्ली के तमाम केन्द्रीय विश्वविद्यालयों के छात्र सम्मिलित रहेंगे।

अधिक जानकारी के लिए सम्पर्क करें:-
मोहम्मद अनस—9871201340.
तहमीन फातिमा—9310262802.

गुरुवार, 18 फ़रवरी 2010

मंदसौर में बिना सुई के घडी



मोहम्मद सरीब मंदसौर (मध्य प्रदेश) में ०२ नंबर रूट (बस पड़ाव से मंडी तक) पर शेयर ऑटो चलाने का काम करते हैं. इनके ऑटो में लगी घडी में कोई काँटा नहीं है. जब उनसे बात हुई, उन्होंने बताया- यह गाडी उनके लिए नहीं है, जिनको जल्दी है, क्योंकि यह चलेगी अपने हिसाब से. जिनको जल्दी हो वे कोई दूसरी सवारी ले सकते हैं. इसी बात को सवारियों तक पहूँचाने के लिए यह घडी लगाईं है. जब कोई सवारी जल्दबाजी करती है तो मैं उन्हें यह घडी दिखा देता हूँ..
अब यह घडी कोई दिल्ली के ब्लू लाइन वालों को बेचे तो मुझे लगता अच्छी बिक्री हो सकती है .. क्यों क्या ख्याल है???

बुधवार, 3 फ़रवरी 2010

आशीष कुमार 'अंशु'

आशीष कुमार 'अंशु'
वंदे मातरम