शुक्रवार, 26 नवंबर 2010

बाबा साहब की दीक्षा भूमि


नागपुर के दीक्षा भूमि को देखने की योजना कोटा (राजस्थान) के पत्रकार संजय स्वदेश के साथ बनी। चूंकि वे लंबे समय तक उस शहर में दैनिक भास्कर के पत्रकार के नाते रह चुके थे। लेकिन जब हम दोनो रात के करीब सवा आठ बजे वहां पहुंचे तो उसके बंद होने का समय हो चुका था।

तीन दिनों के बाद एक बार फिर अपने एक मित्र के साथ सुबह नौ बजे दीक्षा भूमि आया। यह वही भूमि है जहां 14 अक्टूबर 1956 को बाबा साहब ने तीन लाख अस्सी हजार लोगों के साथ बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी। यदि आप नागपुर जाने की योजना बना रहे हैं तो एक बार लक्ष्मी नगर स्थित दीक्षा भूमि अवश्य जाएं।

---------------------------------------------------------------------

---------------------------------------------------------------------

--------------------------------------------------------------------

--------------------------------------------------------------------

---------------------------------------------------------------------

---------------------------------------------------------------------

---------------------------------------------------------------------

----------------------------------------------------------------------

--------------------------------------------------------------------

शुक्रवार, 19 नवंबर 2010

बाल ठाकरे ना हुए 'प्रबोधनकार'


नागपुर में हुई मुलाकात में वरिष्ठ पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता चन्द्रकांत वानखेड़े जी ने बताया कि उनके मित्र सचिन पर्व प्रबोधनकार ठाकरे की वेबसाईट पर काम कर रहे हैं। यह वेबसाईट बन कर तैयार है। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि महाराष्ट्र के बाहर रहने वाले लोग जान सकें कि जिन बाल ठाकरे की छवि देश भर में एक साम्प्रदायिक नेता की है। उनके पिता किस तरह अपने देश और समाज के लिए सोचते थे।

एक बार आप इस वेबसाईट पर अवश्य जाएं. प्रबोधनकार के साहित्य को पढ़ने के लिए.

मंगलवार, 2 नवंबर 2010

मेनका गाँधी उन्हें सजा क्यों नहीं दिलवाती??


नाथ संप्रदाय के लोगों के साथ दाहोद (गुजरात) में, एक दिन बिताने का मौका मिला.

इस समाज के लोग सांप का खेल दिखाकर अपने रोजी रोटी का इंतजाम करते है. आज मेनका गाँधी की वजह से इनका रोजगार छीन चूका है.
\
इस समाज के बुजुर्ग बाबूनाथ कहते है, हम तो सांप को अपने बच्चे की तरह पालते थे, हमसे उन्हें छीन लिया गया लेकिन जो लोग गाय, मछली, मुर्गे की हत्या अपने खाने के लिए कर रहे हैं, मेनका गाँधी उन्हें सजा क्यों नहीं दिलवाती? फिलहाल बाबूनाथ न्यायलय की शरण में हैं. चूकि यह मामला १० लाख से अधिक नाथ परिवारों का है.

आशीष कुमार 'अंशु'

आशीष कुमार 'अंशु'
वंदे मातरम