शनिवार, 3 मई 2008
जारी है बुंदेलखंड में चुल्हाबंदी
देश में किसी भी पार्टी की सरकार हो, कोई भी पार्टी अपने शाशन में भूख सेहोने वाली मौतों को स्वीकार नहीं पाती। इस देश में कुपोषित बच्चों कीसंख्या दुनिया भर के कुपोषित लोगों की संख्या का एक तिहाई से भी अधिकहै। बुंदेलखंड के बांदा, महोबा, छत्तरपुर, चित्रकूट, जालौन, झांसी,ललितपुर, हमीरपुर में इस तरह के दर्जनों मामले सामने आय जहाँ स्थानीयप्रशाशन ने भूख या कर्ज की वजह से हुई मौत को कुछ और रंग दे दिया। उदाहरणके तौर पर बांदा जिले के एक गांव पड्वी के एक किसान की मौत को ले सकतेहैं। जिसने बैंक और स्थानीय साहूकारों द्वारा अपने पैसे वापसी के लियलगातार धमकाय जाने से तंग आकर आत्महत्या का रास्ता अपनाया। जबकि स्थानीयपुलिस ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि बेटी के बदचलनी से तंग आकर उक्त किसानने आत्महत्या की। इस तरह के दर्जनों उदाहरण आपको बुंदेलखंड में मिलजायेंगे। जिन्होंने इस मुश्किल समय में - जब कई सालों से बुंदेलखंडसुखा का कहर झेल रहा है- अपनों को खोया है।
इसी तरह के परिवारों की मददके लिय बांदा जिले के एक छोटे से गांव से प्रारम्भ हुआ युवा सत्याग्रहीराजेन्द्र सिंह का सत्याग्रह आज पूरे बुंदेलखंड का आन्दोलन बन चुका है।इस सत्याग्रह में शामिल होने की प्रक्रिया बेहद आसान है। इसके लिय गांवके कुछ सम्पन्न लोग सप्ताह में एक दिन अपने घर में चूल्हा नहीं जलातेअर्थात वे घर में एक दिन का उपवास रखते हैं। इस तरह जो खाना बचता है, उसेइक्कठा करके जरुरतमंदों तक पहुचाया जाता है। एक छोटे से गांव से शुरू हुआयह आन्दोलन आज बुंदेलखंड के लगभग २०० गांवों में पहुच चुका है। इसआन्दोलन से हजारों की संख्या में लोग लाभ उठा रहें हैं। इस आन्दोलन केसम्बन्ध में एक महत्वपूर्ण जानकारी राजेंद्र के निकट सहयोगी रहे रामफल नेदी। रामफल के अनुसार इस आन्दोलन में शामिल सत्याग्रही परिवार के लोगों नेबुन्देली परम्परा के अनुसार पांच-पांच पेड़ भी लगाय हैं।
गत वर्ष कैंसर की वजह से इस आन्दोलन के मुखिया राजेंद्र सिंह की मौत होगई। लेकिन उनके साथियों ने इस आन्दोलन को कमजोर नहीं पड़ने दिया। ०९ मईको राजेंद्र की पहली पुण्यतिथी है, इस अवसर पर उनके कुछ साथियों नेचरखारी (महोबा) में तालाब की सफ़ाई का बीड़ा उठाया है। पुण्यतिथी के अवसरपर एक जनसभा की भी योजना है।बहरहाल बुंदेलखंड में बिना किसी गतिरोध के चूल्हा-बंदी जारी है।
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1 टिप्पणी:
बात में दम है
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