और मैं हर बार मिला सिर्फ़ तुमसे,
तुमने हर बार खुद को हसीन समझा
मैंने हर तुम्हे जहीन देखा।
क्रूशेड के नाम पर तुमने कि मेरी हत्या,
और मैं चश्मदीद गवाह बना अपनी ही मौत का।
तुम 'स्त्री विमर्श' से मुक्त हो
'देह विमर्श' में उलझी थी,
मैं भूल गया था शायद
तुम सीमोन द बोउआर नहीं हो।
(............ इस कविता पर कुछ भी कहना मेरे लिय मुश्किल है, यह तक कि यह कविता की श्रेणी में रखे जाने के योग्य है भी या नहीं।
जो भी है आपकी अदालत में है।)
1 टिप्पणी:
बहुत अच्छे आशीष
*मीनाक्षी
एक टिप्पणी भेजें