एक दर्जन से अधिक प्रतियोगिताओ में राष्ट्रीय स्तर पर पदक लेन वाली विद्या की माली हालत बहूत बुरी है। उसके पिता बस कंडक्टर हैं। माँ का स्वर्गवास हो चुका है। ऐसी हालत में हो सकता था, गाँव की यह प्रतिभा गाँव में ही दम तोड़ देती। यदि ग्रामीण युवा केन्द्र के माध्यम से खेल प्रतिभाओं की तलाश कर रहे देवेन्द्र गुप्ता, संजीव गुप्ता और मोहन शाक्य की नजर इस पर नहीं जाती। उन्होंने विद्या से बात की। बकौल विद्या 'मैं अकादमी में नहीं आना चाहती थी। '
लेकिन जब देवेन्द्र गुप्ता और नरेन्द्र शाक्य ने अकादमी के सम्बन्ध में रायकवार को विस्तार से बताया फ़िर वह तैयार हो गई। और वह भोपाल स्थित 'वाटर स्पोर्ट्स अकादमी' आ गई। यहाँ तैराकी के लिय अलग विभाग नहीं होने की वजह से उसने 'वाटर स्पोर्ट्स क्योकिंग - कैनोइंग' को अपनाया। कम समय के अभ्यास में हीं विद्या ने इस ने खेल में भी अपनी जगह बना ली है। विद्या के कोच देवेन्द्र गुप्ता उसके प्रदर्शन से बेहद खुश हैं। वह कहते हैं- 'मुझे विश्वास है, एक दिन यह हमारे अकादमी का नाम रौशन करेगी। '
विद्या की दोनों बहने (पूजा - रोइंग और नंदा - सेलिंग ) वाटर स्पोर्ट्स अकादमी में उसके साथ हीं हैं।
3 टिप्पणियां:
vidhya ko meri taraf se dheeeeeeer saaaaaaaaaari shubkamnaaye. chunki mai bhi hoshagabad ko rahne wala hoo (par abhi bhopal me rahata hoo) isliye mujhe vidhya ke baare me padana achcha laga. Ashish aapko bhi badhaiya achchi baat likhane ki.
विद्या जी को हमारी भी शुभकामनायें.
vidhya jesi betiyon ko samachar banaane ke liye dhanyad.
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