आज जब पुण्य प्रसून वाजपेई की तस्वीर को पोस्ट के तौर पर डाला तो एक बड़ी दिलचस्प सी टिप्पणी आई. पढ़कर मजा बहूत आया. दुःख सिर्फ़ इतना रहा भाई साहब ने बेनामी बनकर टिप्पणी की।
नाम के साथ आते तो उन्हें सलाम करता। उन्होंने यह कहने की हिम्मत तो की। आज मुझे लगता है, हम बोलना भूल गए हैं. शायद इसलिय किसी शायर को कहना पडा- बोल की लब आजाद है तेरे- बोल जूबा अब तक तेरी.
'चमचागीरी का लक्ष्य महान,
इससे सधते सारे काम ।'
अंत में सिर्फ़ इतनी बात यदि वाजपेई को इस तरह के छोटे दर्जे के चमचागिरी से फर्क पङता है तो इस देश में भाट-चारणों की परम्परा रही है. वैसे मुझसे अच्छे-अच्छे पड़े हैं. बहरहाल इतना कि अगली बार बिना किसी फिक्र के अपने नाम के साथ टिप्पणी करे. अच्छा होगा.
शनिवार, 30 अगस्त 2008
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