'वो एक ऐसा छूछून्दर है जिसे महाराष्ट्र की सरकार ना निगल पा रही है, ना उगल पा रही है. निगल ले तो डर है अगली सरकार भिन्डरवाले के इस संशोधित अवतार की ना हो जाए. पहली बार महाराष्ट्र में मर्दाना समझी जाने वाली शिव सेना जैसी पार्टी भी बेबस, लाचार और कम मर्दाना नजर आई. इसलिए उद्धव को कहना पड़ा की वे किन्नर नहीं है। '
मेरे परिचित अमित के आधे घंटे के भाषण का लाब्बों-लूआब यही था. आज अमित एकदम नई तरह की बात कर रहा था क्योंकि पटना में अपने दोस्तों के बीच वह हमेशा शिव सेना के समर्थक के रूप में पहचाना जाता था. आज अमित की आवाज बदल गई है. वह समझ नहीं पा रहा है कि आज जो वह सोच रहा है, वह ठीक है या पहले जो वह सोचता था वह ठीक था. चूंकि बाल और राज ठाकरे जो कल थे आज भी वैसे ही हैं. उनका चरित्र नहीं बदला है. बदले है अमित के विचार. क्योंकि कल भी वे नफ़रत की राजनीति कर रहे थे, और आज भी नफ़रत की राजनीति कर रहे हैं. यह बात दूसरी है कि कल तक वे जिस समाज के लिए जहर उगलते थे, उस समाज से अमित बावस्ता नहीं था.
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