आज कोलकाता से पत्रकार और सामजिक कार्यकर्ता द्वय शंकर दादा का मेल आया. मेल में उन्होंने इस बात का उल्लेख किया है कि 'पत्नी तो पत्नी ही होती है, इस बात का कोई महत्त्व नहीं है कि वह क्या है और कौन है।'
इस मेल का सबसे दिलचस्प पहलू इसके साथ सलग्न तस्वीर थी. तस्वीर देखकर बताइए- क्या आप शंकर दादा की बात से सहमत हैं-या नहीं?
बुधवार, 8 अप्रैल 2009
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6 टिप्पणियां:
तस्वीर देख कर भी कोई इनकार कर सकता है भला!
वैसे बात तो सही है...
दीप्ति
इंकार करने का तो प्रश्न ही नहीं उठता.
:)
nice post
:)
bilkul sahmat hai bhai....
पत्नी तो पत्नी है , वह क्या और कोई हो इससे क्या फर्क पड़ता है।
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