मंगलवार, 12 मई 2009

कथा केन्द्रीय हिंदी संस्थान का_ मिशन १६


कल मोहल्ला पर केन्द्रीय हिंदी संस्थान से सम्बंधित एक खबर लगी थी. लगा इस बात को आगे बढ़नी चाहिए इसलिए इसे पुनः यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ-


भारत में राष्ट्रीय महत्व की संस्था केंद्रीय हिन्दी संस्थान के निदेशक पद की बहाली के लिए इन दिनों दिल्ली से लेकर आगरा तक में अफरा-तफरी का माहौल है। बस नयी सरकार आने से पहले किसी तरह नये निदेशक की नियुक्ति हो जाए, ऐसा संस्थान से जुड़े कुछ बड़े नाम चाहते हैं। संस्थान का साढ़े चार करोड़ का सालाना बजट और 32 लाख रुपए के तीन पुरस्कार किसी को भी अपनी तरफ आकर्षित कर सकते हैं। हाल में संस्थान से 31 अतिथि प्राध्यापकों को बाहर का रास्ता आचार संहिता के नाम पर दिखा दिया गया। ऐसे समय में अर्जुन सिंह के मानव संसाधन विकास मंत्री रहते अगले तीन दिनों में केंद्रीय हिन्दी संस्थान का निदेशक चयनित कर लिये जाने की कवायद दाल में काले की तरफ नहीं बल्कि पूरी की पूरी दाल के काले होने की तरफ संकेत है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार आज (सोमवार) की शाम तीन बजे शास्त्री भवन में सर्च कमिटी की मीटिंग है। इस मीटिंग के लिए कमिटी के सदस्य प्रो दिलीप कुमार हैदराबाद से, प्रो विजय बहादुर सिंह कोलकाता से निकल चुके हैं। तीसरे सदस्य प्रो तुलसीराम जेएनयू विवि, दिल्ली से ही हैं। सर्च कमिटी द्वारा निकाले गए नामों पर कल शासी कमिटी की बैठक में चर्चा होगी और अगले दिन प्रस्तावित नाम मंत्री अर्जुन सिंह जी के पास हस्ताक्षर के लिए भेज दिये जाने की संभावना है।

केंद्रीय हिन्दी संस्थान हिन्दी को लेकर काम करने वाली एक राष्ट्रीय महत्व की संस्था है, जिसके देशभर में आगरा मुख्यालय को छोड़कर दिल्ली, गुवाहाटी, दीमापुर मिलाकर कुल आठ केंद्र हैं। इस संस्थान के पूर्व निदेशक शंभुनाथ पिछले साल नवंबर में निदेशक पद से मुक्त हुए। उनके संस्थान छोड़ने से पूर्व ही नए निदेशक पद के लिए प्रक्रिया शुरू हो चुकी थी। समाचार पत्रों में इस संबंध में विज्ञापन भी निकल चुके थे। लेकिन नये निदेशक का चुनाव नहीं हो पाया। इस समय आगरा संस्थान के वरिष्ठ प्रोफेसर रामवीर सिंह संस्थान के कार्यकारी निदेशक हैं। पूर्व निदेशक द्वारा भाषा एवं साहित्य से संबंधित शुरू की गयी कई महत्वपूर्ण परियोजनाएं उनके जाने के बाद से ही ठप हैं।

जैसा कि आप सब जानते हैं, 16 मई को चुनाव परिणाम आने के बाद नयी सरकार बनाने की कवायद शुरू हो जाएगी। सरकार किसी की बने, यह तय हो चुका है कि मानव संसाधन मंत्री अर्जुन सिंह नहीं रहेंगे। चूंकि इसके लिए वे स्वयं अनिच्छा जाहिर कर चुके हैं। लेकिन उनके मानव संसाधन मंत्री रहते-रहते नये निदेशक का चुनाव हो जाए, इसके लिए उनके करीबी माने जाने वाले कुछ साहित्यकारों ने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया है।

नए निदेशक के चयन के लिए केंद्रीय हिन्दी संस्थान के उपाध्यक्ष रामशरण जोशी की सिफारिश पर एक समिति का गठन किया गया, जिसके सदस्य बने प्रोफेसर दिलीप सिंह, प्रोफेसर तुलसी राम और प्रोफेसर विजय बहादुर सिंह। संस्थान के सूत्रों के मुताबिक, समिति की पहली बैठक 28 अप्रैल को हुई थी, जिसमें तीन व्यक्तियों का एक पैनल बनाया गया। इस पैनल में संस्थान के दो वरिष्ठ प्रोफेसर (प्रो रामवीर सिंह और प्रो भरत सिंह) थे और एक व्यक्ति बाहर से थे। वास्तव में सारी कहानी इसी तीसरे व्यक्ति को लेकर है, जिसे निदेशक पद पर बिठाने की कवायद चल रही है। इन्हें 16 मई से पहले-पहले अर्जुन सिंह से अंतिम स्वीकृति लेकर संस्थान का निदेशक बनाने की योजना है। कुछ कमी की वजह से 06 मई को बुलायी गयी बैठक में इस पैनल को रद्द कर दिया गया। रद्द की वजह शासी समिति के सामने रखे गये सिर्फ तीन नाम बताये जाते हैं। बाक़ी आवेदनकर्ताओं के नाम को समिति के सामने भी नहीं रखा गया। पाठकों की जानकारी के लिए निदेशक पद के उम्मीदवार कई बड़े जाने-माने साहित्यकार हैं, लेकिन उनके नामों को ताक पर रख दिया गया। 06 मई की अस्वीकृति के प्रथम ग्रासे मच्छिकापातम के बाद भी 16 मई से पहले अपने उम्मीदवार को निदेशक पद पर बहाल कराने का संकल्प लेने वाले हारे नहीं है। वे चुनाव से ऐन पहले जल्दबाज़ी में नये निदेशक का चुनाव कर लेना चाहते है। द्रष्टव्य है कि निदेशक ही इस राष्ट्रीय महत्व की संस्था का सर्वेसर्वा होता है।

केंद्रीय हिन्दी संस्थान से जुड़े एक प्राध्यापक की मानें तो नए निदेशक का चयन 16 मई से पहले हो, यह चाहने वाले अभी भी सक्रिय है, क्योंकि यदि 16 तारीख के बाद नयी सरकार आयी, तब भी वे संस्थान में अपनी दावेदारी मज़बूत रखना चाहते हैं। इसलिए वे केंद्रीय हिन्दी संस्थान में निदेशक पद पर एक रबड़ स्टैम्प को बिठाना चाहते हैं, जो समय-समय पर उनकी सेवा में हाज़‍िर रहे और उनके मन मुताबिक काम करे। उम्मीद जतायी जा रही है, नया मंत्रिमंडल बनने से पहले यह लॉबी अपने मनपसंद नाम को अनुमोदित कर मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह की सहमति की मुहर लगाने के लिए भेज देगी। इस संबंध में संस्थान के उपाध्यक्ष राम शरण जोशी से बात करने की कोशिश की गयी, तो उन्होंने इस संबंध में कुछ भी बोलने से इंकार कर दिया। अलबत्ता नये निदेशक के चुनाव में चल रही उठा-पटक को लेकर केंद्रीय हिन्दी संस्थान के लोगों में गहरा रोष है।

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आशीष कुमार 'अंशु'

आशीष कुमार 'अंशु'
वंदे मातरम