गुरुवार, 2 जुलाई 2009

सुख को बैठे खटिया पर

इन्टरनेट पर यहाँ वहां की सैर करती हुई उदयपुर की श्रीमती अजित गुप्ता जी की यह रचना मेरे मेल तक भी पहुंची.. इस रचना को श्रीमती गुप्ता नवगीत कहती हैं..यह नवगीत पसंद आया .. इसलिए आपके सामने रख रहा हूँ. इस विश्वास के साथ की आप भी इसे पसंद करेंगे..

एक गाँव में देखा मैंने
सुख को बैठे खटिया पर
अधनंगा था, बच्‍चे नंगे,
खेल रहे थे मिटिया पर।

मैंने पूछा कैसे जीते
वो बोला सुख हैं सारे
बस कपड़े की इक जोड़ी है
एक समय की रोटी है
मेरे जीवन में मुझको तो
अन्‍न मिला है मुठिया भर
एक गाँव में देखा मैंने
सुख को बैठे खटिया पर।


दो मुर्गी थी चार बकरियां
इक थाली इक लोटा था
कच्‍चा चूल्‍हा धूआँ भरता
खिड़की ना वातायन था
एक ओढ़नी पहने धरणी
बरखा टपके कुटिया पर
एक गाँव में देखा मैंने
सुख को बैठे खटिया पर।


लाखों की कोठी थी मेरी
तन पर सुंदर साड़ी थी
काजू, मेवा सब ही सस्‍ते
भूख कभी ना लगती थी
दुख कितना मेरे जीवन में
खोज रही थी मथिया पर
एक गाँव में देखा मैंने
सुख को बैठे खटिया पर।

8 टिप्‍पणियां:

निर्मला कपिला ने कहा…

डा.ाजित गुप्ताजी की तो मैं फैन हूँ और इस सुन्दर कविता को पहले भी पढा है दोबारा पढवाने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद उनकी हर रचना दिल को छू लेती है और आम आदमी के करीब होती है आभार्

अजय कुमार झा ने कहा…

वाह अद्भुत कविता है ..मैंने तो पहली बार ही पढ़ी है..आपका आभार ..इसे यहाँ प्रस्तुत करने के लिए..

ओम आर्य ने कहा…

bahut hi sahi kaha hai .............bhog wilaas ki chijo me sukh kabhi najar nahi aayegi par............sahi me wah sirf gaw ke khatiya par hi milega..........bahut gahari baat

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

कविता की खुले दिल से तारीफ की जानी चाहिए। आपकी पसंद गजब की है।

रंजना ने कहा…

बस क्या कहूँ....मुग्ध कर लिया इस रचना ने....लाजवाब !!!!
बहुत बहुत सुन्दर !!!

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत पसंद आई यह रचना!

Himanshu Pandey ने कहा…

मूल ब्लॉग पर ही पढ़ लिया था । शानदार रचना । आभार इसकी पुनर्प्रस्तुति के लिये ।

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

आशीष जी ने मेरी रचना को "बतकही" पर डाला है, उनका आभार और साथ ही आप सभी का भी। कल अकस्‍मात ही यह नवगीत बन गया और मुझे लगा कि इसे अपने ब्‍लाग पर डाल देना चाहिए जिससे सभी मित्र लोग पढ सके। आप सभी को यह पसन्‍द आया इसके लिए आभार। स्‍नेह बनाए रखें।

आशीष कुमार 'अंशु'

आशीष कुमार 'अंशु'
वंदे मातरम