शुक्रवार, 13 नवंबर 2009

कल मूआ भाजपा से थोड़ी उम्मीद लगा बैठे थे


दिल्ली की महंगाई ने जीना मुहाल कर रखा है. बस का किराया बढाकर शीला सरकार ने साफ़-साफ़ संकेत दे दिया है कि दिल्ली वालों सार्वजानिक परिवहन पर विश्वास करने की कोई जरूरत नहीं. अपनी निजी सवारी ले लो. वैसे भी दिल्ली में जाम बढे तो सरकार एक के बाद एक फ्लाई ओवर बनाने के लिए कृत संकल्प तो है ही.
कल मूआ भाजपा से थोड़ी उम्मीद लगा बैठे थे, कि यह 'उदंड' कुछ ढंग का बंद-शंद कराके महंगाई पर दबाव बनाएगा. लेकिन यह वही पार्टी साबित हुई जो जरूरत के समय अच्छा परफॉर्म नहीं करती. इस वक्त दिल्ली की जनता उबल रही है, इस घनघोर महंगाई में भी दिल्ली वालों के माथे पर पसीना है, इस मौके पर भाजपा संघ के साथ बैठकर अपना गृहक्लेश 'फरिया' रही है.
आज मीडिया से लेकर समाज के प्रतिनिधियों तक किसी के लिए बेतहाशा बढ़ी महंगाई कोई मुद्दा नहीं. वन्देमातरम की चिंता उनको अधिक है. विरोधाभास यह कि सभी 'आम आदमी' के सगे बनते हैं.. लेकिन उसका सगा कोई नहीं.

3 टिप्‍पणियां:

Anshu Mali Rastogi ने कहा…

महंगाई के बहाने नेताओं या सरकार पर चिखने-चिल्लाने से कुछ नहीं होगा, हमें अपने पेटों की मांग पर नियंत्रण करना-रखना चाहिए।

Science Bloggers Association ने कहा…

सही कहा आपने, शायद आम आदमी इसी लिए होता है कि वह जिंदगी भर मारा मारा भटकता फिरे।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

सहसपुरिया ने कहा…

खुमार बाराबंकी का इक शेर याद आ रहा है
मेरे रहबार मुझको गुमराह करदे
सुना है कि मंज़िल क़रीब आ गयी है

आशीष कुमार 'अंशु'

आशीष कुमार 'अंशु'
वंदे मातरम