गुरुवार, 5 नवंबर 2009

प्रभाष जोशी का जाना, माने पत्रकारिता के एक युग का खत्म होना


हिन्दी पत्रकारिता के शिखर कहे जाने वाले प्रभाष जोशी का कल देर रात निधन हो गया । दिल्ली से सटे वसुंधरा इलाके की जनसत्ता सोसाईटी में रहने वाले प्रभाष जोशी कल भारत और अस्ट्रेलिया मैच देख रहे थे । मैच के दौरान ही उन्हें दिल का दौरा पड़ा । परिवार वाले उन्हें रात करीब 11.30 बजे गाजियावाद के नरेन्द्र मोहन अस्पताल ले गए , जहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया । प्रभाष जोशी की मौत की खबर पत्रकारिता जगत के लिए इतनी बड़ी घटना थी कि रात भर पत्रकारों के फोन घनघनाते रहे । उनकी मौत के बाद पहले उनका पार्थिव शरीर उनके घर ले जाया गया फिर एम्स । इंदौर में उनका अंतिम संस्कार किया जाना तय हुआ है , इसलिए आज देर शाम उनका शरीर इंदौर ले जाया जाएगा ।
खबर लिखे जाने वक्त एम्स में उनका पार्थिव शरीर रखा है और उनके अंतिम दर्शन के लिए पत्रकारों का वहां पहुंचना जारी है । कुछ घंटे बाद उनके पार्थिव शरीर को जनसत्ता सोसाईटी स्थित उनके घर लाया जाएगा और शाम को इंदौर ले जाया जाएगा । 73 वर्षीय प्रभाष जोशी इस उम्र में भी लेखन और पत्रकारीय कार्यों के अलावा बहुत सक्रिय थे । अचानक उनका यूं चले जाने से सभी हतप्रभ हैं । किसी को यकींन नहीं हो रहा है कि कल रात तक लोगों से बात करने वाले प्रभाष जोशी नहीं रहे ।
प्रभाष जोशी दैनिक जनसत्ता के संस्थापक संपादक थे। मूल रूप से इंदौर निवासी प्रभाष जोशी ने नई दुनिया से पत्रकारिता की शुरुआत की थी। मूर्धन्य पत्रकार राजेन्द्र माथुर और शरद जोशी उनके समकालीन थे। नई दुनिया के बाद वे इंडियन एक्सप्रेस से जुड़े और उन्होंने चंडीगढ़ में स्थानीय संपादक का पद संभाला। 1983 में दैनिक जनसत्ता का प्रकाशन शुरू हुआ, जिसने हिन्दी पत्रकारिता की दिशा और दशा ही बदल दी।
1995 में इस दैनिक के संपादक पद से रिटायर्ड होने के बावजूद वे एक दशक से ज्यादा समय तक बतौर संपादकीय सलाहकार इस पत्र से जुड़े रहे। प्रभाष जोशी हर रविवार को जनसत्ता में कागद कारे नाम से एक स्तंभ लिखते हैं । बहुत से लोग इसी स्तंभ को पढ़ने के लिए रविवार को जनसत्ता लेते हैं । लेखन के मामले में प्रभाष जोशी का कोई सानी नहीं था । ताउम्र वो लिखते रहे । हिन्दी का शायद ही कोई ऐसा संपादक हो , जिसने प्रभाष जोशी की तरह लगातार लिखा हो । 73 साल की उम्र में भी वो खूब भ्रमण करते थे । देश भर के कार्यक्रमों - सेमिनारों में उन्हें आमंत्रित किया जाता था । जेपी आंदोलन के दिनों में प्रभाष जोशी की सक्रियता विल्कुल अलग किस्म की थी । वो जेपी के बेहद करीब माने जाते थे । अपने पत्रकारीय जीवन में प्रभाष जोशी पत्रकारिता में शुचित बनाए रखने के लिए संघर्षरत रहे । अखबारों में पेड कंटेंट को लेकर उन्होंने विरोध किया और अपने स्तंभ में लिखकर इस प्रवृति को पत्रकारिता के लिए खतरनाक बताया । हिन्दी पत्रकारिता में हजारो ऐसे पत्रकार हैं , जो उन्हें अपना आदर्श मानते हैं । सैकड़ों ऐसे हैं , जिन्हें प्रभाष जोशी ने पत्रकारिता का पाठ पढ़ाया है । दर्जनों ऐसे हैं , जो उनकी पाठशाला से निकलकर संपादक बने हैं लेकिन एक भी ऐसा नहीं , जो प्रभाष जोशी की जगह ले सके ।
प्रभाष जोशी के निधन के साथ पत्रकारिता की वो पीढ़ी खत्म हो गई , जिसपर पत्रकारिता को नाज था। राजेन्द्र माथुर के बाद प्रभाष जोशी ही थे , जिन्हें शिखर पुरुष कहा जाता था । क्रिकेट से उन्हें बेहद लगाव था । इतना लगाव कि को वो कोई मैच बिना देखे नहीं छोड़ते थे और मैच के एक - एक बॉल की बारीकी पर लिखते भी थे । सचिन के तो वो जबरदस्त फैन थे और देखिए मैच देखते हुए ही उन्हें दिल का दौरा पड़ा । हार की तरफ बढ़ती भारतीय टीम को देखकर उन्हें बेचैनी हो रही थी । सचिन के शतक बनाने पर वो बहुत खुश हुए थे लेकिन उनके आउट होने पर खुशी मिश्रित दुख भी उनके चेहरे पर आया । फिर टीम हार की तरफ बढ़ने लगी । मैच देखते देखते प्रभाष जोशी को दिल का दौरा पड़ गया । जिस क्रिकेट को वो बेहद प्यार करते थे , उसी क्रिकेट के दौरान उनकी जान चली गई ।
(हिन्दी भारत से साभार )
------आज 12:30 बजे उनका पार्थिव शरीर गान्धी शान्ति प्रतिष्ठान लाया जाएगा..----

4 टिप्‍पणियां:

kishore ghildiyal ने कहा…

sachmuch patrakarita jagat ka zabardast nuksaan hua hain unke aakasmik nidhan se....... bhagwan unki aatma ko shanti pradaan kare
jyotishkishore.blogspot.com

बेनामी ने कहा…

अपनी मौत पर
अफ़सोस नहीं मुझको
जो आया है
वो जाएगा
अफ़सोस फ़क़त ये है
आज के अखबार में
मेरे मरने का
समाचार नहीं है

Priyankar ने कहा…

प्रभाष जी के साथ हिंदी पत्रकारिता का एक ठसकदार युग समाप्त हो गया . अब राजनीतिज्ञों और अंग्रेज़ी पत्रकारिता के दबाव में सोने-जागने वालों का युग है .
हिंदुस्तानी पत्रकारिता के इस पुरोधा को विनम्र श्रद्धांजलि .

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

जो युग उन्‍होंने रचाया है

वो सदा यही रहेंगे

सबके मानस में।

विनम्र श्रद्धांजलि।

आशीष कुमार 'अंशु'

आशीष कुमार 'अंशु'
वंदे मातरम