ईश्वर इन्द्र की कहानी कहीं ना कहीं सबने पढ़ी होगी। टेलीविजन पर देखी होगी। उनकी राजा की गद्दी हमेशा खतरे में रहती थी। कई बार लगता है, सरकार केन्द्र की हो या राज्य की, जो राजा है, उनकी कुर्सी भी राजा इन्द्र की तरह की ही होती है, हमेशा खतरे में।
बाबा रामदेव की बात करें तो चंद महीने पहले तक वे सभी पार्टियों को स्वीकार थे। कांग्रेस के बड़े बड़े नेता उनके सामने हाथ जोड़कर, सिर झुकाकर खड़े होते थे। अभी एक केन्द्रीय मंत्री का वीडियो जारी हुआ है, जिसमें वे बाबा के पांव धो रहे हैं। अरुणाचल प्रदेश में हुए एक विवाद में माफी मांगते हुए प्रदेश के एक मंत्री ने उन्हें अपने पिता की तरह बताया। आज कांग्रेस और सेवा दल ही नहीं, उनकी छात्र इकाई एनएसयूआई तक के कार्यकर्ता बाबा रामदेव को आंख दिखाने को तैयार हैं। एक और बात गौर करने वाली है, हमेशा बाबा कहलाने वाले रामदेवजी बाबा छोड़िए अब ठग रामदेव हो गए। महज पन्द्रह दिनों में ऐसा क्या बदल गया?
उनके ट्रस्ट से लेकर कंपनी तक के रिकॉर्ड खंगाले जा रहे हैं। उन सब लोगों का पता लगाया जा रहा है, जिन्होंने बाबा को पैसे दिए। यह दूसरी बात है कि मदद करने वालों की सूचि में कांग्रेस के कई बड़े-छोटे-मंझौले नेता भी शामिल हैं। भारत की सरकार की बाबा रामदेव के प्रति आक्रामक हो गई है, क्या इस पूरी बहस में, आरोप प्रत्यारोप के बीच भ्रष्टाचार जो मूल मुद्दा था, वह कहीं गायब नहीं हो गया। काले धन के वापसी की मांग कहीं पिछे नहीं छूट गई। यहां बहस को बनाए रखने की मांग का अर्थ बिल्कुल ना लगाया जाए कि बाबा के ट्रस्ट, कंपनियों और दूसरे श्रोतों से होने वाली आय की जांच नहीं करनी चाहिए। बिल्कुल करनी चाहिए। लेकिन जांच की आड़ में दोहरा खेल नहीं करना चाहिए। सरकार इस देश में यह कानून ही क्यों नहीं बना देती कि देश भर में जितनी एनजीओ, ट्रस्ट हैं उन्हें अपनी आय-व्यय का ब्योरा अपनी वेब साईट पर डालना होगा। इसी तरह देश में जितने भी राजनेता हैं, वे अपना और अपने परिवार की आय व्यय तो जगजाहिर करें ही, साथ साथ अपनी पार्टी फंड मंे आने वाली रकम, और अपनी रैली और दूसरे आयोजना पर होने वाले खर्च का ब्योरा भी जगजाहिर करें।
सरकार की उन निजी स्कूलों, अस्पतालों, सामुदायिक भवनों, ऑडिटोरियमों पर कितनी नजर है, जिसके लिए उसने जमीन कौड़ियों के दाम पर दिया है। अपोलो जैसे सेवन स्टार अस्पताल से जुड़े अनुपम सिब्बल को सरकार अपनी समिति में रख सकती है लेकिन कभी उनसे पूछ सकती है कि क्या जरुरत मंदों को तुम अपने अस्पताल में कानून के मुताबिक निशुल्क ईलाज की सुविधा देते हो? आप किसी भी सरकार के लिए बाबा रामदेव की तरह उस समय तक अच्छे हैं, सहज और सरल हैं। जब तक आप उसके सामने प्रश्न खड़े ना करें। बाबा बड़े मजे से उस दिन जब चार केन्द्रिय मंत्री उनसे मिलने एयर पोर्ट पर आए थे, उनसे हाथ मिलाकर अपनी जय जय कार करा सकते थे। कांग्रेसी भी खुश और अनुयायी भी खुश। अगले दो चार सालों में सरकार को खुश करके वे अपने 1177 करोड़ के ट्रस्ट को 2354 करोड़ तक पहुंचा सकते थे। उनके अपने कंपनियों से होने वाली आमदनी अलग से होती। क्या कभी आपने सुना है, मूर्ति, टाटा, अंबानी, बिरलाजी को काले धन के ऊपर बात करते हुए। बाबा विशुद्ध व्यावसायी नहीं है, इसलिए बात कर दी। विशुद्ध राजनेता भी नहीं है, इसलिए प्रेस के सामने दिए जाने वाले बयानों में योजना नजर नहीं आती है। जो एक परिपक्व राजनेता में होनी चाहिए। विशुद्ध सन्यासी भी नहीं हैं, जिसकी वजह से वे राम राज्यम पार्टी बनाने की मंशा जताकर चर्चा में रहे।
यदि आप पूरी कहानी पर गौर करें तो इसमें बाबा की भूमिका जो भी रही हो लेकिन सरकार इन्द्र की भूमिका में साफ नजर आती है। इसलिए बाबा के अनशनाशन (अनशन ़ आशन) को चौबीस घंटे भी नहीं हुए थे, सरकार की कुर्सी हिलने लगी। इसी भय में सरकार ने पांच तारिख की सुबह को अपने अलोकतांत्रिक कार्यवाही से कलंकित किया। उस घटना के बाद सरकारी विमान से बाबा को हरिद्वार पहुंचा दिया गया और एक नई कहानी शुरू हो गई। अब प्रतिदिन सरकार आरोप दर आरोप लगा रही है और बाबा के दिन उनके सभी सवालों के जवाब देते देते गुजर रहे हैं। लेकिन इन सवाल जवाब में जो मूल प्रश्न भ्रष्टाचार का था। वह कहीं पिछे छूटता जा रहा है। बाबा के व्यक्तिगत चरित्र की परीक्षा तो बाद में भी हो सकती है। उनके लिए कैरेक्टर सर्टिफिकेट तो बाद में भी जारी किया जा सकता है। लेकिन क्या अभी हम लोग इस बात पर केन्द्रित चर्चा नहीं कर सकते कि उनकी मांग सही है, या गलत?
शुक्रवार, 10 जून 2011
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
2 टिप्पणियां:
वाह बहुत खूब , आशीष भाई , पूरा धो डाला है आपने , यही तेवर बनाए रखिए
केन्द्र की वर्तमान सरकार देश की सेहत लिये केंसर रोग की तरह है जो बाबा और अन्ना के माकूल ईलाज के बाद भी ठीक नहीं होता दीख रहा है। मृत्यु निश्चित जान पडती है।
एक टिप्पणी भेजें