उंगलबाज.कॉम ने तीन महीने के अथक परिश्रम के बाद होली के अवसर पर उस सर्वेक्षण को
आपके सबके बीच लाने का निर्णय ले ही लिया है, जिसका इंतजार ब्रेकिंग और
सिर्फ इसी चैनल पर टाइप पत्रकार कर रहे थे। दो सौ शहरो में ढाई सौ लोगों से
बात करने के बाद यह सर्वेक्षण सामने आया है। इस सर्वेक्षण के परिणाम इतने
चौंकाने वाले हैं कि आप इस पर विश्वास नहीं कर पाएंगे। आप कह सकते हैं कि
सबकुछ पहले से फिक्स है। लेकिन जरा सोचिएगा यह कहने से पहले कि जिस देश में
क्रिकेट मैच तक फिक्स हो सकता है, वहां एक सर्वेक्षण का फिक्स होना कौन सा
नामुमकिन है।
वैसे आरोप तो आप इस सर्वेक्षण पर पेड होने का भी लगा सकते हैं लेकिन जब खबरे पैसे लेकर छप सकती हैं तो सर्वेक्षण के परिणाम पैसे लेकर क्यों नहीं बदले जा सकते।
उंगलबाज.कॉम का यह सर्वेक्षण उस वक्त आप सबके सामने आया है, जब सारे टीवी चैनल और अखबार रिसेशन से बाहर आने की कोशिश कर रहे हैं। हमारे सर्वेक्षण में यह सामने आया है कि देश की सत्तर फीसदी आबादी को पता ही नहीं है कि एबीपी नाम से भी कोई चैनल है। यह सर्वेक्षण उंगलबाज.कॉम का, खबरिया चैनलों के ऊपर सबसे बड़ा सर्वेक्षण है। इस महा सर्वे के परिणाम वास्तव में बड़े चौंकाने वाले हैं। जिससे सहमत हो पाना बहुत मुश्किल है।
इस सर्वेक्षण में हमें कई लोगों से मदद मिली। ब्रेकिंग प्राइवेट लिमिटेड और एक्सक्लूसिव फाउंडेशन ने खास तौर से आर्थिक मदद की। वे चाहते थे कि आने वाले दिनों में ऑन एयर होने वाले चैनल हाहाकार टीवी को अपने सर्वे में हम नंबर एक या नंबर दो की जगह दे दें। यह हमने किया भी है। हम उनमें नहीं हैं कि पैसे भी लें और काम भी ना करें। उंगलबाज.कॉम की विश्वनियता संदिग्ध है, लेकिन ईमानदारी पर कोई शक नहीं कर सकता। हमने जिससे पैसे लिए हैं, उनका काम करके दिया है। आप चाहें तो मार्केट में सर्वेक्षण करा सकते हैं, कहंी किसी तरह की शिकायत नहीं मिलेगी।
इस सर्वेक्षण में यह जानना चौंकाने वाला था कि सीएनबीसी आवाज को लोग आशुतोष और करण थापर से जोड़कर देख रहे है, इतना ही नहंीं इस सर्वेक्षण में हमें आजाद, एस वन, एमएच वन, प्रज्ञा, जैसे चैनल देखने वाले भी मिले।
इस सर्वेक्षण में हमने पाया कि देश की पचास फीसदी आबादी उन लोगों को पत्रकार मानने को तैयार नहीं, जिनका नाम राडिया कांड में नहीं था। एनडीटीवी में रविश और अभिज्ञान को इसीलिए बड़ा पत्रकार इस सर्वेक्षण में नहीं माना गया क्योंकि राडिया उनको नहीं जानतीे थी। इस सर्वेक्षण में बरखा दत्त, नीरा राडिया से अपनी जान पहचान की वजह से एनडीटीवी की सबसे बड़ी पत्रकार मानी गई। आज तक से प्रभू चावला के बलिदान को भी सर्वेक्षण ने बेकार नहीं जाने दिया। सर्वेक्षण में यह बात खुलकर सामने आई कि प्रभू को लाइफ टाइम अचिवमेन्ट अवार्ड देकर पत्रकारिता से सेवानिवृत हो जाना चाहिए।
सर्वेक्षण में सबसे आगे जी न्यूज रहा। सुधीर चौधरी जैसे होनहार पत्रकार की वजह से यह हो पाया। आम जनता की राय है कि सुधीर चौधरी ने साबित किया कि मीडिया को किसी नीरा राडिया की जरूरत नहीं है। जरूरत पड़ने पर मीडियाकर्मी आत्म निर्भर हो सकते हैं और कुछ भी कर सकते हैं। जी न्यूज छोड़ने की वजह से इस सर्वेक्षण में पूण्य प्रसून वाजपेयी का ग्राफ गिरा। उन्होंने उस समय चैनल छोड़ दिया, जब उसे वाजपेयी की सबसे अधिक जरूरत थी।
स्टिंग ऑपरेशन के लिए अनिरूद्ध बहल को जहां सबसे अधिक वोट मिले, वहीं खोजी पत्रकार के तौर पर सबसे आगे अरविन्द केजरीवाल रहे। रॉबर्ट वाड्रा, नितिन गडकरी, रिलायंस जैसे बड़ी खोज अरविन्द के हिस्से है। सर्वेक्षण में शामिल कुछ बड़े उद्योगपतियों ने कहा कि यदि अरविन्द पार्टी की जगह अपना चैनल खोलें तो वे उसमें पैसा लगा सकते हैं।
सर्वेक्षण में शामिल अस्सी फीसदी लोग कमर वाहिद नकवी और राहुल देव जैसे पत्रकारों का नाम नहीं जानते। अरविन्द मोहन को कुछ लोगों ने जरूर टीवी पत्रकार के तौर पर पहचाना और कुछ लोगांें का मानना यह भी है कि संजय झा को वेवसाइट संभालने की जगह कोई चैनल ही संभालना चाहिए।
सर्वेक्षण में शामिल एक भी व्यक्ति यह नहीं बता पाया कि एक बड़े पत्रकार पंकज पचौरी अचानक टीवी पर दिखना बंद क्यों हो गए। एक व्यक्ति का जवाब दिलचस्प था, इंडिया टीवी ने अभी तक उनकी तलाश क्यों नहीं की? क्या वह चैनल सिर्फ अभिनेत्रियों को ही ढूंढ़ता रहेगा? अपने बीच का एक पत्रकार नहीं मिल रहा, उसे क्यों नहीं तलाशते?
अंजना ओम कश्यप का नाम सत्तर फीसदी लोगों ने सुन रखा था लेकिन वह किस चैनल में हैं, यह बीस फीसदी लोग भी सही-सही नहीं बता पाए। दस फीसदी सर्वेक्षण में शामिल लोगों ने उनका नंबर हमारे सर्वेक्षणकर्ताओं से मांगा, जिसे हमारे सर्वेक्षण टीम के होनहार युवाओं ने खुबसूरती से टाल दिया।
सर्वेक्षण में शामिल पचपन फीसदी लोगों का मानना था कि रजत शर्मा अच्छे भले पत्रकार है, इंडिया टीवी में अपना कॅरियर क्यों खराब कर रहे हैं? टीआरपी सबकुछ नहीं होता। उन्हें आजतक या एनडीटीवी में होना चाहिए। वैसे दीपक चौरसिया को लेकर अब भी लोगों में भ्रम है कि वे इंडिया टीवी में गए हैं या फिर इंडिया न्यूज में। सुनने में आया है कि एक गुटखा कंपनी ने दीपक को ऑफर दिया है कि वे चैनल पर ऑन एयर उनकी कंपनी का गुटखा खाते हुए समाचार पढ़े तो गुटखा कंपनी उन्हें एक करोड़ रुपए साल का दे सकती है। (वैधानिक चेतावनीः गुटखा खाना सेहत के लिए अच्छा नहीं है।)
इस सर्वेक्षण को लेकर कुछ लोगों की आपत्ति हो सकती है लेकिन खबरिया चैनल वाले स्वर्ग का दरवाजा ढूंढ़ निकालते हैं और हम एक सर्वेक्षण भी नहीं कर सकते।
(हमारी विश्वनियता संदिग्ध है, बुरा ना मानों होली है)
वैसे आरोप तो आप इस सर्वेक्षण पर पेड होने का भी लगा सकते हैं लेकिन जब खबरे पैसे लेकर छप सकती हैं तो सर्वेक्षण के परिणाम पैसे लेकर क्यों नहीं बदले जा सकते।
उंगलबाज.कॉम का यह सर्वेक्षण उस वक्त आप सबके सामने आया है, जब सारे टीवी चैनल और अखबार रिसेशन से बाहर आने की कोशिश कर रहे हैं। हमारे सर्वेक्षण में यह सामने आया है कि देश की सत्तर फीसदी आबादी को पता ही नहीं है कि एबीपी नाम से भी कोई चैनल है। यह सर्वेक्षण उंगलबाज.कॉम का, खबरिया चैनलों के ऊपर सबसे बड़ा सर्वेक्षण है। इस महा सर्वे के परिणाम वास्तव में बड़े चौंकाने वाले हैं। जिससे सहमत हो पाना बहुत मुश्किल है।
इस सर्वेक्षण में हमें कई लोगों से मदद मिली। ब्रेकिंग प्राइवेट लिमिटेड और एक्सक्लूसिव फाउंडेशन ने खास तौर से आर्थिक मदद की। वे चाहते थे कि आने वाले दिनों में ऑन एयर होने वाले चैनल हाहाकार टीवी को अपने सर्वे में हम नंबर एक या नंबर दो की जगह दे दें। यह हमने किया भी है। हम उनमें नहीं हैं कि पैसे भी लें और काम भी ना करें। उंगलबाज.कॉम की विश्वनियता संदिग्ध है, लेकिन ईमानदारी पर कोई शक नहीं कर सकता। हमने जिससे पैसे लिए हैं, उनका काम करके दिया है। आप चाहें तो मार्केट में सर्वेक्षण करा सकते हैं, कहंी किसी तरह की शिकायत नहीं मिलेगी।
इस सर्वेक्षण में यह जानना चौंकाने वाला था कि सीएनबीसी आवाज को लोग आशुतोष और करण थापर से जोड़कर देख रहे है, इतना ही नहंीं इस सर्वेक्षण में हमें आजाद, एस वन, एमएच वन, प्रज्ञा, जैसे चैनल देखने वाले भी मिले।
इस सर्वेक्षण में हमने पाया कि देश की पचास फीसदी आबादी उन लोगों को पत्रकार मानने को तैयार नहीं, जिनका नाम राडिया कांड में नहीं था। एनडीटीवी में रविश और अभिज्ञान को इसीलिए बड़ा पत्रकार इस सर्वेक्षण में नहीं माना गया क्योंकि राडिया उनको नहीं जानतीे थी। इस सर्वेक्षण में बरखा दत्त, नीरा राडिया से अपनी जान पहचान की वजह से एनडीटीवी की सबसे बड़ी पत्रकार मानी गई। आज तक से प्रभू चावला के बलिदान को भी सर्वेक्षण ने बेकार नहीं जाने दिया। सर्वेक्षण में यह बात खुलकर सामने आई कि प्रभू को लाइफ टाइम अचिवमेन्ट अवार्ड देकर पत्रकारिता से सेवानिवृत हो जाना चाहिए।
सर्वेक्षण में सबसे आगे जी न्यूज रहा। सुधीर चौधरी जैसे होनहार पत्रकार की वजह से यह हो पाया। आम जनता की राय है कि सुधीर चौधरी ने साबित किया कि मीडिया को किसी नीरा राडिया की जरूरत नहीं है। जरूरत पड़ने पर मीडियाकर्मी आत्म निर्भर हो सकते हैं और कुछ भी कर सकते हैं। जी न्यूज छोड़ने की वजह से इस सर्वेक्षण में पूण्य प्रसून वाजपेयी का ग्राफ गिरा। उन्होंने उस समय चैनल छोड़ दिया, जब उसे वाजपेयी की सबसे अधिक जरूरत थी।
स्टिंग ऑपरेशन के लिए अनिरूद्ध बहल को जहां सबसे अधिक वोट मिले, वहीं खोजी पत्रकार के तौर पर सबसे आगे अरविन्द केजरीवाल रहे। रॉबर्ट वाड्रा, नितिन गडकरी, रिलायंस जैसे बड़ी खोज अरविन्द के हिस्से है। सर्वेक्षण में शामिल कुछ बड़े उद्योगपतियों ने कहा कि यदि अरविन्द पार्टी की जगह अपना चैनल खोलें तो वे उसमें पैसा लगा सकते हैं।
सर्वेक्षण में शामिल अस्सी फीसदी लोग कमर वाहिद नकवी और राहुल देव जैसे पत्रकारों का नाम नहीं जानते। अरविन्द मोहन को कुछ लोगों ने जरूर टीवी पत्रकार के तौर पर पहचाना और कुछ लोगांें का मानना यह भी है कि संजय झा को वेवसाइट संभालने की जगह कोई चैनल ही संभालना चाहिए।
सर्वेक्षण में शामिल एक भी व्यक्ति यह नहीं बता पाया कि एक बड़े पत्रकार पंकज पचौरी अचानक टीवी पर दिखना बंद क्यों हो गए। एक व्यक्ति का जवाब दिलचस्प था, इंडिया टीवी ने अभी तक उनकी तलाश क्यों नहीं की? क्या वह चैनल सिर्फ अभिनेत्रियों को ही ढूंढ़ता रहेगा? अपने बीच का एक पत्रकार नहीं मिल रहा, उसे क्यों नहीं तलाशते?
अंजना ओम कश्यप का नाम सत्तर फीसदी लोगों ने सुन रखा था लेकिन वह किस चैनल में हैं, यह बीस फीसदी लोग भी सही-सही नहीं बता पाए। दस फीसदी सर्वेक्षण में शामिल लोगों ने उनका नंबर हमारे सर्वेक्षणकर्ताओं से मांगा, जिसे हमारे सर्वेक्षण टीम के होनहार युवाओं ने खुबसूरती से टाल दिया।
सर्वेक्षण में शामिल पचपन फीसदी लोगों का मानना था कि रजत शर्मा अच्छे भले पत्रकार है, इंडिया टीवी में अपना कॅरियर क्यों खराब कर रहे हैं? टीआरपी सबकुछ नहीं होता। उन्हें आजतक या एनडीटीवी में होना चाहिए। वैसे दीपक चौरसिया को लेकर अब भी लोगों में भ्रम है कि वे इंडिया टीवी में गए हैं या फिर इंडिया न्यूज में। सुनने में आया है कि एक गुटखा कंपनी ने दीपक को ऑफर दिया है कि वे चैनल पर ऑन एयर उनकी कंपनी का गुटखा खाते हुए समाचार पढ़े तो गुटखा कंपनी उन्हें एक करोड़ रुपए साल का दे सकती है। (वैधानिक चेतावनीः गुटखा खाना सेहत के लिए अच्छा नहीं है।)
इस सर्वेक्षण को लेकर कुछ लोगों की आपत्ति हो सकती है लेकिन खबरिया चैनल वाले स्वर्ग का दरवाजा ढूंढ़ निकालते हैं और हम एक सर्वेक्षण भी नहीं कर सकते।
(हमारी विश्वनियता संदिग्ध है, बुरा ना मानों होली है)
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आज की ब्लॉग बुलेटिन चटगांव विद्रोह के नायक - "मास्टर दा" - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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