पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन अक्सर जाना होता है। दिल्ली पब्लिक लायब्रेरी पुरानी दिल्ली स्टेशन के बिल्कुल सामने है और अपनी यात्राओं के लिए टिकट बनाने पुरानी दिल्ली स्टेशन के रिजर्वेशन टिकट काउंटर पर भी जाता हूं। बार-बार पुरानी दिल्ली के रेलवे रिजर्वेशन काउंटर पर इस उम्मीद से जाता हूं कि इस बार दिल्ली का यह टिकट काउंटर दलाल मुक्त हो गया होगा। हर बार निराश होकर ही लौटा हूं। दिल्ली में सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त टिकट एजेन्ट भी उसी कतार में खड़े होकर टिकट लेते हैं, जिसमें आम लोगों को टिकट लेना होता है।
पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के एक काउंटर पर खड़े एजेन्ट ने ही बताया कि लगभग बारह सौ से लेकर पन्द्रह सौ एजेन्ट पुरानी दिल्ली में टिकट बेचने के लिए सक्रिय हैं। यह एजेन्ट जब इंटरनेट पर बुकिंग बंद दिखला रहा हो, उस समय भी अंतिम समय में टिकट करा सकते हैं। पैसे आप उन्हें वह दीजिए, जो उनको चाहिए और टिकट वे आपको वह दिला देंगे, जो आपको चाहिए। कई बार आपको भ्रम हो सकता है, यह टिकट के दलाल हैं या फिर जादूगर।
इन टिकट दलालों की शक्ति देखनी हो तो आप कभी पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के रिजर्वेशन काउंटर पर चले जाइए और देखिए वहां टिकट दलालों ने क्या हाल बना रखा है? दुखद यह है कि काउंटर पर बैठे टिकट बनाने वाले सरकारी कर्मचारी भी मानों उन्हीं के लिए अंदर बैठे हैं। इन टिकट दलालों द्वारा पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर फैलाई जा रही अव्यवस्था हर किसी को नजर आता है लेकिन ना जाने क्यों जीआरपी, सीआरपीएफ या फिर रेलवे इंटेलिजेन्स को यह बस क्यों नजर नहीं आता?
नियम से एक व्यक्ति को रेलवे काउंटर पर एक बार में दो से अधिक टिकट नहीं मिलनी चाहिए। लेकिन पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर मानों यह कानून तो आम आदमी के लिए है, टिकट एजेन्ट पर कोई नियम लागू नहीं होता। पैसों के इस लेन-देन का खुला खेल कोई भी आम आदमी समझ सकता है लेकिन रेलवे इंटेलीजेन्स की समझ में ना जाने यह सारी बात क्यों नही आती?
दो तीन दिन पहले जब मैं अपना रेलवे टिकट वापस करने गया था, इसी तरह एक टिकट काउंटर पर कतार में लगे लोगों की अनदेखी करके जब काउंटर पर बैठे व्यक्ति ने एक टिकट दलाल के लिए दो-तीन-चार-पांच-छह टिकट बना लिया तो उसका विरोध करना लाजमी था। मैने विरोध में बोला। यह देखकर दो तीन लोगों ने, जो कतार में लगे थे, मेरा साथ दिया।
इस शोर शराबे से स्थिति थोड़ी संभली। लेकिन यह स्थिति संभली सिर्फ एक काउंटर पर, जिस पर यह शोर शराबा हुआ था। उस वक्त शायद ही पुरानी दिल्ली में ऐसी कोई कतार हो, जिसमें सात-आठ ऐसे लोग ना हो, जो टिकट की दलाली करते हैं।
पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन नीयमित जाने की वजह से कई ऐसे चेहरे अब पहचानने लगा हूं, जो सुबह से देर रात तक पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर ही रहते हैं। संभव है, ये सब रेलवे द्वारा अधिकृत एजेन्ट के प्रतिनिधि हों।
इसी रेलवे स्टेशन पर सुनने को मिला, ‘
‘ये जो लोग काउंटर पर दलालों के खिलाफ शोर मचा रहे हैं, ये सभी अरविन्द (केजरीवाल) के लोग हैं।’
यह सुनकर एक रेलवे टिकट दलाल बोला- ‘अरविन्द तो गए। अमेठी से उसके कवि की जमानत जप्त हो गई। अब अच्छें दिन आए हैं।’
इसका मतलब क्या, दिल्ली में बेईमानी के खिलाफ बोलने वाला हर एक व्यक्ति आम आदमी पार्टी का कार्यकर्ता माना जाएगा। यह सवाल मेरे लिए महत्वपूर्ण था। आम आदमी पार्टी और अरविन्द से तमाम असहतियों के बावजूद यह स्वीकार करना होगा कि दिल्ली में भ्रष्टाचार के खिलाफ उठने वाली हर एक आवाज की पहचान, आम आदमी पार्टी बन गई है।
इस बात पर भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों को सोचना चाहिए।
आज यह सवाल मेरे लिए जरूर अहम है, देश की राजधानी दिल्ली जब इतने प्रयासों के बावजूद दलाल मुक्त नहीं हो पा रही तो देश के दूसरे हिस्सों का मालिक अल्लाह ही होगा!
पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के एक काउंटर पर खड़े एजेन्ट ने ही बताया कि लगभग बारह सौ से लेकर पन्द्रह सौ एजेन्ट पुरानी दिल्ली में टिकट बेचने के लिए सक्रिय हैं। यह एजेन्ट जब इंटरनेट पर बुकिंग बंद दिखला रहा हो, उस समय भी अंतिम समय में टिकट करा सकते हैं। पैसे आप उन्हें वह दीजिए, जो उनको चाहिए और टिकट वे आपको वह दिला देंगे, जो आपको चाहिए। कई बार आपको भ्रम हो सकता है, यह टिकट के दलाल हैं या फिर जादूगर।
इन टिकट दलालों की शक्ति देखनी हो तो आप कभी पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के रिजर्वेशन काउंटर पर चले जाइए और देखिए वहां टिकट दलालों ने क्या हाल बना रखा है? दुखद यह है कि काउंटर पर बैठे टिकट बनाने वाले सरकारी कर्मचारी भी मानों उन्हीं के लिए अंदर बैठे हैं। इन टिकट दलालों द्वारा पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर फैलाई जा रही अव्यवस्था हर किसी को नजर आता है लेकिन ना जाने क्यों जीआरपी, सीआरपीएफ या फिर रेलवे इंटेलिजेन्स को यह बस क्यों नजर नहीं आता?
नियम से एक व्यक्ति को रेलवे काउंटर पर एक बार में दो से अधिक टिकट नहीं मिलनी चाहिए। लेकिन पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर मानों यह कानून तो आम आदमी के लिए है, टिकट एजेन्ट पर कोई नियम लागू नहीं होता। पैसों के इस लेन-देन का खुला खेल कोई भी आम आदमी समझ सकता है लेकिन रेलवे इंटेलीजेन्स की समझ में ना जाने यह सारी बात क्यों नही आती?
दो तीन दिन पहले जब मैं अपना रेलवे टिकट वापस करने गया था, इसी तरह एक टिकट काउंटर पर कतार में लगे लोगों की अनदेखी करके जब काउंटर पर बैठे व्यक्ति ने एक टिकट दलाल के लिए दो-तीन-चार-पांच-छह टिकट बना लिया तो उसका विरोध करना लाजमी था। मैने विरोध में बोला। यह देखकर दो तीन लोगों ने, जो कतार में लगे थे, मेरा साथ दिया।
इस शोर शराबे से स्थिति थोड़ी संभली। लेकिन यह स्थिति संभली सिर्फ एक काउंटर पर, जिस पर यह शोर शराबा हुआ था। उस वक्त शायद ही पुरानी दिल्ली में ऐसी कोई कतार हो, जिसमें सात-आठ ऐसे लोग ना हो, जो टिकट की दलाली करते हैं।
पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन नीयमित जाने की वजह से कई ऐसे चेहरे अब पहचानने लगा हूं, जो सुबह से देर रात तक पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर ही रहते हैं। संभव है, ये सब रेलवे द्वारा अधिकृत एजेन्ट के प्रतिनिधि हों।
इसी रेलवे स्टेशन पर सुनने को मिला, ‘
‘ये जो लोग काउंटर पर दलालों के खिलाफ शोर मचा रहे हैं, ये सभी अरविन्द (केजरीवाल) के लोग हैं।’
यह सुनकर एक रेलवे टिकट दलाल बोला- ‘अरविन्द तो गए। अमेठी से उसके कवि की जमानत जप्त हो गई। अब अच्छें दिन आए हैं।’
इसका मतलब क्या, दिल्ली में बेईमानी के खिलाफ बोलने वाला हर एक व्यक्ति आम आदमी पार्टी का कार्यकर्ता माना जाएगा। यह सवाल मेरे लिए महत्वपूर्ण था। आम आदमी पार्टी और अरविन्द से तमाम असहतियों के बावजूद यह स्वीकार करना होगा कि दिल्ली में भ्रष्टाचार के खिलाफ उठने वाली हर एक आवाज की पहचान, आम आदमी पार्टी बन गई है।
इस बात पर भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों को सोचना चाहिए।
आज यह सवाल मेरे लिए जरूर अहम है, देश की राजधानी दिल्ली जब इतने प्रयासों के बावजूद दलाल मुक्त नहीं हो पा रही तो देश के दूसरे हिस्सों का मालिक अल्लाह ही होगा!
3 टिप्पणियां:
भोपाल में भी यही हाल है. रायपुर में भी, और तो और उप-स्टेशन बैरागढ़ में भी.
और, यह तब तक ठीक नहीं होगा, जब तक कि यात्रियों से अधिक संख्या में सीटें न हों - यानी सप्लाई ज्यादा हो, डिमांड कम.
रेल्वे को आमूलचूल परिवर्तन करना होगा. लोकलुभावन रेलों के साथ साथ रेल्वे प्रीमियम और एक्स्ट्रा प्रीमियम जैसी ट्रेनें चलवाए - जिसमें ऐन यात्रा के समय तक भी (जाहिर है, प्रीमियम किराए में) सीट कन्फर्म मिलने की गारंटी हो तो आम आदमी दलालों के पीछे क्यों जाए?
अच्छे दिन आयें हैं !!
यही हालत कमोबेश हर बडे स्टेशन पर है
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