सोमवार, 4 जून 2007

हिंदी के प्रति अडिग संकल्प की अभिव्यक्ति

आठवें विश्व हिंदी सम्मेलन का केंद्रीय विषय (थीम) है- विश्व मंच पर हिंदी।


बहुभाषी भारत की राष्ट्रभाषा हिंदी अपनी भाषिक विशेषताओं, सरलता, सहजता, शाब्दिक उदारता और साहित्यिक समृद्धि के कारण भारत की भौगोलिक सीमाओं के भीतर और बाहर निरंतर लोकप्रिय हो रही है। हिंदी एक ऐसी समृद्ध भाषिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक परंपरा की वाहिनी है, जो न सिर्फ भारतीयता की भावना को मजबूत करती है बल्कि वैश्विक सद्भाव में भी योगदान देती है। यह भारतवासियों, भारतवंशियों और विश्व भर में फैले अन्य हिंदीप्रेमियों को एक सूत्र में बांधती है। हिंदी की इस विशालता और व्यापकता के पीछे सरकारी और गैरसरकारी संस्थाओं के प्रयासों का ही नहीं, विदेशों में रह रहे भारतीयों, हिंदी विद्वानों और मनीषियों का भी महत्वपूर्ण योगदान है। शायद ही विश्व का कोई देश हो जहां कोई हिंदीभाषी या हिंदीप्रेमी न हो।
हिंदी सही मायनों में विश्व भाषा बनने की ओर अग्रसर है। हालांकि उसकी यात्रा चुनौतियों से रहित नहीं है। लेकिन हिंदी और हिंदीप्रेमियों में इन चुनौतियों का सामना करने की क्षमता है, उनसे जूझने का जज्बा है और वह अडिग संकल्प है जो हिंदी की विकास यात्रा में विराम नहीं आने देता। विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन हिंदी के प्रति इसी संकल्प की अभिव्यक्ति है। यह एक अवसर है हिंदी की अच्छाइयों और कमियों का आकलन करने का, उसकी सफलताओं तथा विफलताओं की पूर्वाग्रह-मुक्त समीक्षा करने का, उसमें आने वाले दिलचस्प बदलावों और रुझानों के अध्ययन का, उसके समक्ष मौजूद चिंताओं और चुनौतियों का व्यावहारिक समाधान ढूंढने का, काल की रफ्तार से ताल मिलाने का और हिंदी विद्वानों, शिक्षाविदों तथा मनीषियों के योगदान को मान्यता देने का।
पहले विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन 1975 में नागपुर में हुआ था। दूसरा सम्मेलन 1976 में पोर्ट लुई (मॉरीशस), तीसरा 1983 में नई दिल्ली, चौथा 1993 में पुनः पोर्ट लुई (मॉरीशस), पांचवां 1996 में पोर्ट ऑफ स्पेन (त्रिनिदाद एवं टोबैगो), छठा 1999 में लंदन (इंग्लैंड) और सातवां 2003 में पारामारिबो (सूरीनाम) में आयोजित किया गया। संसार भर के हिंदी विद्वानों और हिंदी प्रेमियों ने उत्साह से भाग लेकर इन सम्मेलनों को सफल बनाया। अब आठवां सम्मेलन न्यूयॉर्क में 13 से 15 जुलाई तक आयोजित होने जा रहा है।

विश्व- समुदाय के हृदय से जुड़े हिंदी
विश्व के विभिन्न भागों में हिंदी के प्रयोग और प्रचार-प्रसार पर बल देने के साथ-साथ सम्मेलन का उद्देश्य हमारी विश्व हिंदी विरासत को सुदृढ़ बनाए रखना है। विश्व हिंदी सम्मेलन के माध्यम से विश्व भर में फैले हिंदी प्रेमियों और विद्वानों को ऐसा मंच उपलब्ध होता है जहां वे भौगोलिक सीमाओं से मुक्त होकर हमारी राष्ट्रभाषा के विकास की दूरगामी और विश्वव्यापी प्रक्रिया को प्रत्यक्ष अनुभव कर सकें। हिंदी को सद्भाव और समरसता की भाषा के रूप में विश्वभर में लोगों के हृदयों तक पहुंचाने का हमारा साझा लक्ष्य उसे स्थान या भूगोल की सीमाओं से मुक्त कर देता है। विश्व हिंदी सम्मेलन उस परिवार की भांति हैं जिसमें उपस्थित होकर विभिन्न देशों और राष्ट्रीयताओं वाले हिंदी प्रेमी एक अद्भुत, किंतु सार्थक व सौद्देश्य एकात्मता का अनुभव करते हैं।
विश्व हिंदी सम्मेलनों के कुछ अन्य उद्देश्य हैं- अंतरराष्ट्रीय भाषा के रूप में हिंदी की भूमिका को उजागर करना, विभिन्न देशों में विदेशी भाषा के रूप में हिंदी के शिक्षण की स्थिति का आकलन करना और सुधार लाने के तौर-तरीकों का सुझाव देना, हिंदी भाषा और साहित्य में विदेशी विद्वानों के योगदान को मान्यता प्रदान करना, प्रवासी भारतीयों के बीच अभिव्यक्ति के माध्यम के रूप में हिंदी का विकास करना, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, आर्थिक विकास और संचार के क्षेत्रों में हिंदी के प्रयोग को बढ़ावा देना और सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हिंदी का विकास। यह सम्मेलन विदेशों में भारतीय मूल के लोगों, विशेषकर हिंदी भाषा-भाषी लोगों के साथ संपर्कों को सुदृढ़ करने, भारतीय मूल के लोगों को सांस्कृतिक समारोहों में भागीदारी के लिए प्रोत्साहित करने, सांस्कृतिक राजनय का उपयोग एक साधन के रूप में करने और विश्व के चुनिंदा क्षेत्रों में बसे भारतीय मूल के समुदायों के प्रति सद्भावना का प्रदर्शन करने का अवसर भी प्रदान करता है।
यूं तो इन सम्मेलनों के आयोजन में विदेश मंत्रालय की प्रधान भूमिका होती है किंतु संबंधित राष्ट्र की हिंदी सेवी संस्थाएं भी इनमें सक्रिय भूमिका निभाती हैं। इस बार के सम्मेलन के आयोजन में भी न्यूयॉर्क में स्थित भारतीय विद्या भवन महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

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आशीष कुमार 'अंशु'

आशीष कुमार 'अंशु'
वंदे मातरम