जब मैं सोफिया वीश्वविद्यालय में हिंदी पढ़ाने के लिय भारत से आ रहा था तो कई लोगों ने मुझसे पूछा कि बुलगारिया में हिंदी ! लोग क्यों पढ़ते हैं हिंदी, जबकि अंगरेजी को छोर कर बाकि भाषाओं कि दुर्गति हो रही है; उन्हें कोई पूछने वाला नहीं। असल में यह भारतीय अनुभव है, यूरोपीय संसार इससे बिल्कुल अलग है। यहाँ हर देश कि अपनी भाषा है और वे अपनी भाषा में ही काम करना पसंद करते हैं। इससे मुझ जैसे बाहर से आय लोगों को कठिनाई तो होती है, पर इनके लिय अपनी भाषा को छोरना दरअसल, अपनी संस्कृति को त्यागना है। भारत मे हिंदी बोलना, हिंदी मे बात करना दोयम दर्जे की बात हो सकती है, बुल्गारिया मे नहीं। यहाँ लोग अपनी भाषा से प्रेम करते हैं, हिंदी का सम्मान करते हैं क्योंकि यह भारत की भाषा है ओर वे भारत से आगाध प्रेम करते हैं।
-१२ जून २००७, को जनसत्ता में जैसा छपा
सोमवार, 11 जून 2007
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