बुधवार, 7 नवंबर 2007

पत्रकारिता के एक छात्र का दर्द

उसका नाम आदेश है, दिल्ली विश्वविद्यालय के खालसा कॉलेज से उसने पत्रकारिता की पढाई पूरी की है। इन दिनों वह नौकरी की तलाश में है।
'भाई दो-चार हजार की नौकरी भी कर लूंगा।'
सपने बडे नहीं है उसके मगर वह पत्रकारिता करना चाहता है, मीडिया में कहीं नौकरी चाहता है। वह खुद कहता है, आज से ४ साल पहले जब उसने कॉलेज में दाखिला लिया था, उस वक़्त मानों सारी दुनिया उसकी जेब में थी। उसे लगता था, जिस दिन उसने कॉलेज छोडा, उसी दिन आज तक वाले उसे अपने साथ ले जायेगे और दीपक चौरसिया या आई बी एन सेवेन में उसे राजदीप सरदेसाई की जगह बिठा दिया जायेगा। लेकिन आज हालत यह है कि आदेश को टोटल, आजाद, साधना, जैन और सुदर्शन चॅनल के भी चक्कर काटने पड़ रहे हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि वहाँ भी जगह नहीं है, जगह है भी तो इन्टर्न वालों के लिय अर्थात बेगार करने वालों के लिय।
यह सिर्फ एक आदेश की कहानी नहीं है, भारत भर में ना जाने कितने आदेश होंगे। आदेश कहता है, 'भाई अब हम तो किसी काम के नहीं रह गय, पत्रकारिता में कोई काम हमारे लिय है नहीं और बाहर वाले काम देते नहीं। सब यही कहते हैं, इतना अच्छा कोर्स किया है, अच्छी नौकरी करो। अब भाई मैं क्या करू?'

आप चाहे तो आदेश से बात कर सकते हैं, उसकी कोई मदद कर सकते हैं - 09899040183

8 टिप्‍पणियां:

Ashish Maharishi ने कहा…

ashish ji aadarsh se kahiye ki apna Cv mujeh ashish.maharishi@gmail.com par bhej de....aur ek baar http://bolhalla.blogspot.com bhi dekh sakta hain

abhishek ने कहा…

भाई, वाकई पांच साल पहले जब हमने मीडिया में कदम रखा था तब हमारे सीनियर हमें बताते थे कि यह डगर नहीं आसां। उन्होंने बहुत परिश्रम ईमानदारी से इस पेशे को पेशा बनाया है। अब तो मीडिया भी एक करियर हो गया है। तमाम बड़े विश्वविद्यालयों में पत्रकारिता के सेल्फ फाइनेंस कोर्स खुल गए हैं। हर साल हजारों लोग डिग्री हाथ में लेकर पत्रकार बनने निकल पड़े हैं। मैं रोज एेसे कई नवोदित पत्रकारों से रूबरू होता हूं। जो सोचते हैं कि डिग्री हाथ में आते ही वे बहुत जोरदार धांसू पत्रकार हो गए हैं। इनमें इस राह की ठोकरें खाने का माद्दा नहीं होता । पत्रकारिता के सहज स्वाभिमान को वे इतनी आसानी से अपना मिथ्या अहमं बना लेते हैं कि मानों शीशे के बने हों । कुछ कहना नहीं की फिर देखिए । पुराने लोगों से पुछिए की कितनी की तपस्या की है। आज जो लोग शीर्ष पर हैं उन्होंने कितेने शीर्षासन किए हैं। खैर, इस सबका मतलब सिर्फ इतना की किसी कॉलेज से डिग्री करने से पत्रकार नहीं बना जाता । कहीं न कहीं ट्रेिनंग लेनी ही पड़ती है। अब इसे बेगार कहें या कुछ और .... बालक से कहिए प्रसास करता रहे । कहीं न कहीं बात बन ही जाएगी।

संजीव कुमार सिन्‍हा ने कहा…

आशीषजी, धन्‍यवाद। गंभीर विषय की ओर आपने ध्‍यान आकर्षित किया है। लेकिन मुझे ये रोना-धोना अच्‍छा नहीं लगा। मेरा मानना है कि आपमें पत्रकारिता का जज्‍बा है तो देर-सबेर सफलता आपके कदम चूमेगी ही। बशर्ते आप भीड का हिस्‍सा बनकर पत्रकारिता के हमसफर नहीं बने हो। संघर्ष से दूर भागना नहीं चाहिए।

Kirtish Bhatt ने कहा…

अभिषेक जी में संजीव जी कि बात से बिल्कुल सहमत हूँ।
पत्रकारिता जुझारू लोगों का काम है। अपने मित्र से कहें इतनी जल्दी निराश न होवें । अभी तो शुरूआत है। बस लगे रहें। सफलता अवश्य मिलेगी। शुभकामनाएं ।

Udan Tashtari ने कहा…

आपके मित्र के लिये मेरी शुभकामनायें हैं. उनसे कहें कि प्रयास और परिश्रम जारी रखें.

Sanjay Karere ने कहा…

पत्रकारिता कमजोरों के लिए नहीं है भाई. यदि लड़ कर अपने लिए जगह नहीं बना सकते तो पत्रकार बनने का ख्‍वाब मत देखो. और हां..डिग्रियों से पत्रकार नहीं बनते.

बेनामी ने कहा…

patrakarita bahut himmat, sahas aur sangharsha ka pesha hai. Aur sirf degree le lene se journalist ki naukari pakki nahee ho jaati. Yadi kisi ko sangharsha se dar lagta hai to use is peshe me aana he nahi chahiye.
Jitna glamour yahan dikhata hai, uski bharee keemat chukaani padati hai.

ऋतेश पाठक ने कहा…

is adesh ko aj se teen maheene pahle maine bataya tha ki ek local akbar me kam mil jaega. teen hajar tak starting me milana tha. lekin usane islie naka diya ki ek to akbar local doosare salary maatra teen hajaar. vaise bhee un dino vah DD News ka chakkar kat raha tha.......

आशीष कुमार 'अंशु'

आशीष कुमार 'अंशु'
वंदे मातरम