रविवार, 8 जून 2008

आज खबर नहीं है,
किसी समाज की तरक्की,
किसी शहर का अमन,
किसी मासूम चेहरे की हँसी,
किसी बेरोजगार स्त्री का
किसी भी कस्टिंग काउच से
साफ़ बच निकलना खबर नहीं है।

खबर है हत्या, लूट, घोटाले,
बेईमनी और बलात्कार,
रविना, उर्मिला करीना के गॉशिप्स,
युवतियों के शरीर पर कम होते कपडे,
खबर है,
होटल में करते व्यभिचार
दो गए पकडे।

भाईजानमेहरबान, कद्रदान,
यह युग खबरों का नहीं है,
यह युग है सनसनी का,
यह युग समाचार का नहीं है,
यह युग है टी आर पी का।

मतलब साफ है स्पष्ट है,
बाजार में समाचार नहीं बिकता
सनसनी बिकती है।

5 टिप्‍पणियां:

tarun mishra ने कहा…

नियाजे -इश्क की ऐसी भी एक मंजिल है ।
जहाँ है शुक्र शिकायत किसी को क्या मालूम । ।

बालकिशन ने कहा…

बहुत खूब.
सही लिखा.
सहमत हूँ

Udan Tashtari ने कहा…

सही है. समाचार चैनलों को देखकर यह आभास तो था, आज आपने भी मोहर लगा दी. आभार.

संत शर्मा ने कहा…

Bhai iske liye shota se jayada aap media wale hi jimmewar hai.

Renu Sharma ने कहा…

bahut sundar rachana hai.

आशीष कुमार 'अंशु'

आशीष कुमार 'अंशु'
वंदे मातरम