उन्होंने इस ब्लॉग के लिए अपनी दो कविताएं उपलब्ध कराई। आभार
खाली हाथ
चमेली की जो बेल
लगाई थी तुमने
दूसरी मंजिल पर
दरवाजे तक आ गई है
तुम्हारे जाने के बाद
बिना फूलों के
जैसे बरसों बाद
कोई घर लौटे
खाली हाथ
और ठिठक कर
खड़ा रह जाए
दरवाजे पर।
भूख
अब तक है याद
उस आलू का स्वाद
जो तुम्हारे खाने
से उठाकर खाया
और लगा कि
आलू का एक छोटा सा
टूकडा भी
मिटा सकता है
सदियों की भूख
जो नहीं मिटा सकती
जो नहीं मिट सकती
दुनिया भर के खाद्यान से।
3 टिप्पणियां:
बहुत खूबसूरत कवितायें हैं. ब्रजेश्वर मदान जी के इस पहलू को कभी नहीं देखा था.
बहुत अच्छा लगा.
आलू का एक छोटा सा
टूकडा भी
मिटा सकता है
सदियों की भूख
kya baat hai...ati sundar ehsaas.
"really beautiful poetry"
Regards
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