इस कार्यक्रम में २५ गैर सरकारी संस्थाओं के माध्यम से लगभग ४०० बच्चों ने भाग लिया। इस कार्यक्रम में लड़कियों के ग्रुप में 'सोशल एक्शन फॉर ट्रेनिंग' की तरफ़ से आई मीनू को प्रथम स्थान मिला। वह अली गाँव के पास गौतम पूरी की झुग्गियों में रहती है। दूसरे के घरों में चूल्हे चौका का काम करती है। वह बड़ी होकर एक डांसर बनाना चाहती है।
यह रिपोर्ट मैंने लगभग एक साल पहले मीनू के लिए लिखी थी। कल चेतना के संजय गुप्ता से बात हुई, तो मीनू का हाल पुछा उन्होंने बड़े बूझे हुए मन से कहा 'मीनू नहीं गई क्योंकि उसके परिवार वाले तैयार नहीं हुए। वह चाहते कि वह डांस में अपना कैरियर बनाए। '
'क्यों? इसमें बुराई क्या है? '
मैं समझ नहीं पाया इतना अच्छा अवसर कोई कैसे छोड़ सकता है।
संजय भाई का जवाब था,
'उन्होंने कहा लड़की है कहाँ जाएगी।'
आज के समय में भी इस तरह की घटनाएं दिल्ली जैसे शहरों में हो रही है, क्या आपको कुछ कहना है।
7 टिप्पणियां:
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लड़कियों को लेकर एक तरह की मानसिकता है. लेकिन इस तरह की मानसिकता के पीछे सारे कारण खोखले हैं, ऐसी बात नहीं. फिर भी कोशिश की जानी चाहिए माँ-बाप को समझाने की. आख़िर केवल इस तरह के विचार की वजह से प्रतिभा की मौत ठीक नहीं है.
शिव भाई से सहमत हूँ.
" bhut dukhdayee hai"
Regards
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