गुरुवार, 3 जुलाई 2008

उत्पाती दिमाग की खुराफात

यह मेल मुझे कल मिला, और आज आपकी अदालत में हाजिर है।
यह तस्वीर बनाने वाला मुझे मकबूल फ़िदा हुसैन से प्रभावित दिखता है। जिसने अपने उत्पाती कल्पना कल्पना को साकार रूप देने की खुराफात को अंजाम दिया।

4 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

Thanks. Im Inspired again.

NILAMBUJ ने कहा…

इस गन्दी हरकत की उम्मीद मुहे किसी "हिंदुत्ववादी" से ही हो सकती है. उन्हें और कुछ आता भी तो नहीं साथी. वैसे तुमने ये तस्वीर लगाई क्यों? शायद सहमत हो इस गन्दी हरकत से? साम्यवाद एक आन्दोलन है जिसे ऐसे अधकचरे लोग क्या खा कर ख़त्म करेंगे........................!
किसी ग़लत बात को लेकर कोई विरोध तो समझ मे आता है लेकिन इसके लिए पूरी साम्यवादी कौम को बदनाम करना कहाँ तक उचित है?
मैं मुह खोलना नहीं चाहता क्योंकि यदि कुत्ते आदमी को काटें तो आदमी पलटकर कुत्ते को नहीं काट लेता. कम लिखा ज्यादा समझना.

NILAMBUJ ने कहा…

मकबूल फ़िदा हुसैन और इस कार्टून ( इसे चित्रकार कहने मे संकोच होता है, इसलिए कृति को नहीं बनाने वाले को कार्टून कह रहा हु) कि तुलना करना चित्रकला का अपमान है!

बेनामी ने कहा…

बहुत अच्छा ! मजा आ गया ! हस्ते हस्ते लोट पोट हो गया !

आशीष कुमार 'अंशु'

आशीष कुमार 'अंशु'
वंदे मातरम