वह यह सब बताते हुए बिल्कुल असहज नहीं थी।
उस ने खुद ही अपनी बात को आगे बढाते हुए बोला, 'कल हम कुछ वेश्याओ के बच्चे मिलकर एक सांस्कृतिक कार्यक्रम कराने वाले हैं।'
उसने यह भी कहा- 'इस कार्यक्रम में हम अपने अधिकार की बात पूछेगे। '
उस बच्ची का उत्साह और साहस दोनों देखने योग्य था।
मुझे असमंजस की स्थिति में देखकर उसने आश्वस्त किया, 'वहाँ देखने वाले सब अच्छे घराने के लोग होंगे। आप चिंता ना कीजिए सिर्फ़ तमाशा करने वाले हमलोग होंगे। '
यह सब कहते हुए उसकी आंखों में पानी उतर आया था, जिसे उसने बड़ी होशियारी के साथ अपने आंखों के कोर पर छूपा लिया था।
उसकी मासूम सी बातचीत में मैं सहभागी नहीं हो पा रहा था। मैं चलने को हुआ, निकलते वक़्त उसने मुझसे सिर्फ़ इतना ही पुछा था, 'अगर मेरा जन्म एक वेश्या के घर में हुआ है तो इसमें मेरा कसूर क्या है?'
'कुछ भी नहीं। '
मेरा जवाब था।
'फ़िर आपका समाज हम बच्चों को सामान्य बच्चों की तरह जीने की इजाजत क्यों नहीं देता। '
इस सवाल का जवाब मैं नहीं दे पाया। आपके पास कोई जवाब हो तो दीजिएगा।
7 टिप्पणियां:
hmmm .....
जवाब तो जानते हैं आप भी आशीष , इस को उठाने से ही मिल जाता है जवाब ।
hum bhartiy log abhi sankraman kaal me hain,inhe bhi inka hak milega..kas wah wqt bhi aaye jab application form me kinnaron ko bhi asthan mile.
लड़की का पूछा प्रश्न हमारे समाज के मुहं पर कड़ा तमाचा है...वैश्या भी हमीं बनाते हैं और उनसे नफरत भी हम ही करते हैं...कैसा अजीब दोगला पन है हमारी सोच में.
नीरज
वेश्याओं के बच्चों के लिए भी अच्छे कार्य किए जाने चाहिए, उन्हें भी सामान्य बच्चों की तरह सारी सुविधाएं मिलनी चाहिए, ताकि वे बड़े होकर देश का नाम रोशन करें और अपनी उस दूषित पहचान से अलग एक नयी पहचान बनाएं.
जहाँ तक बच्ची के सवाल के जवाब की बात है तो भले ही उस बच्ची को वही जवाब देता जो आपने दिया पर इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि वह एक वेश्या की बच्ची है.
और यह उस की गलती है कि वह ग़लत तरीके से पैदा हुई.
यदि एक वेश्या और एक पति के साथ जिंदगी गुजारने वाली स्त्री में अन्तर नहीं किया जायेगा तो समाज का अस्तित्व नहीं रह पायेगा और परिवार कैसे टिकेंगे !!!
कोई बच्चा किस के घर जन्मेगा क्या सचमुच इसमें उसकी इच्छा होती है क्या
एक वेश्या और एक पति के साथ जिंदगी गुजारने वाली स्त्री में चारू जी आप शौक से अंतर कीजिए लेकिन इसका दंड़ वह बच्चा क्यों भुगते जिसका अपनी जन्म की प्रक्रिया में कोई योगदान ही नहीं है.
सवाल तो सिर्फ़ इतना सा है...
हमलोग सवाल बहुत करते है ! समस्या सुलझाने के बजाय उलझा देते है.... आशीष जी, दोष किसका है, हम निर्धारण करने वाले कौन होते है ! और होंगे भी क्यों.... लेकिन इस प्रश्न का उतर ठीक उसी तरह है ? पहले मुर्गी या अंडा ?
हम सब अपनी गलतियों का ठीकरा समाज के ऊपर फोड़ देते है, लेकिन ये समझने की कोशिश नहीं करते है की आखिर हम भी उसी समाज के हिस्सा है ! खैर मैं इतना जरुर कहूँगा कि हम सब अपनी अपनी जिम्मेदारी और सीमाए जान ले तो समस्या का समाधान आसन हो सकता है !
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