आप कभी उत्तरांचल जाएँ तो वहाँ जगह-जगह चल रही मशीनी गतिविधियों को देखकर आप सोच सकते हैं कि राज्य का विकास हो रहा है. लेकिन यह विकास नहीं है. यह साफ़ तौर से उत्तराँचल के पहाड़, नदियों और जंगल के साथ बलात्कार है. जमकर यहाँ नदियों का दोहन किया गया, जंगल काटे गए. और पहाडो को खोद-खोदकर खनिज निकाला गया. यह नया दौर है नदियों को सुरंगों से पाटने का. उत्तराँचल में फैल रहे प्रदुषण की वजह से प्रशाशन ने गौमुख तक यात्रियों के जाने पर रोक लगा दी है. गोमुख सिकुरता जा रहा है। गौमुख नहीं होगा तो गंगा को बचाना मुश्किल होगा. अब जिनको गौमुख तक जाना है उनके लिए परमिट बनाना अनिवार्य कर दिया गया है.
आम लोगों को तो रोक दिया गया लेकिन जिन परियोजनाओं की वजह से पहाड़ की सबसे ज्यादा ऐसी-तैसी हुई है कोई उन परियोजनाओं पर प्रतिबन्ध लगाने की बात क्यों नहीं सोचता?
सोमवार, 28 जुलाई 2008
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2 टिप्पणियां:
क्या सच मे हम तरक्की कर रहे हे ????
आप का लेख आंखे खोलने के लिये काफ़ी हे,बहुत अच्छा लिखा हे धन्यवाद
विचारणीय-विकास और पर्यावरण के बीच सामन्जस्य बैठा कर ही सही प्रगति की दिशा मिलेगी. ऐसे तो सब बर्बादी ही हाथ आयेगी.
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