गुरुवार, 30 अक्तूबर 2008
मेधा पाटेकर चुप क्यों है?
इस बात को लेकर मुझे बेहद दुःख हुआ कि महाराष्ट्र जैसे जागरूक राज्य में एक दर्जन भी मराठी सामाजिक कार्यकर्ता राज ठाकरे के विरोध में खड़े नहीं हुए. यह शर्मनाक था. सबसे ज्यादा तकलीफ मेधा पाटेकर को लेकर हुई. जो उत्तर भारतीय भगाओ दंगे के समय मुम्बई में ही थी. वह हर वक़्त अन्याय के विरोध में खरी दिखती हैं, बंगाल के नंदीग्राम से लेकर बिहार के बाढ़ तक हर जगह वह मदद के लिय खड़ी होती हैं. अन्याय के ख़िलाफ़ हल्ला बोलने वाली एक सशक्त महिला हैं. उन्होंने क्यों नहीं आगे बढ़कर बोला कि यह बिहार के लोग भी किसी दूसरी भूमि के पुत्र नहीं हैं. इसी भारत भूमि के पुत्र हैं. वह इस बात को बोलती तो लोगों के समझ में आसानी से आती क्योंकि वह खुद भी इसी मराठा भूमि से हैं. क्या मुझे कोई बतायगा कि कौन सी मजबूरी ने मेधा पाटेकर को चुप रहने में भलाई की राह दिखाई. है?
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5 टिप्पणियां:
उनकी मजबूरी हमें तो नहीं मालूम , आपको पता हो तो बताओ।
आशीष तुम्हारा ब्लॉग देखकर तो अच्छा लगा लेकिन इस पर खास राजनीतिक शेड के लिंक देखकर हैरानी हो रही है। बाकी दोस्त-मित्र अच्छे हैं?
वाजिब सवाल है दोस्त ,सिर्फ़ मेधा पाटकर ही नही कितने बुद्दिजीवी अपने अपने हिस्से की चुप्पी लिए बैठे है
कया पता क्या मजबूरी रही होगी!!
मेघा पाटकर हो या सीतलवाद इन सबको अपना धंधा करना है, अपनी रोटियां सेकनी है | देश के लोगों से इन्हें कोई सरोकार नहीं है |
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