पेट की आग को आंसू से बुझाया न करो
ये कतरे खून के हैं इनको यूं जाया न करो
ये कतरे खून के हैं इनको यूं जाया न करो
अगर होता है ज़ुल्म-ओ-ज़ोर तो लड़ना सीखो
सिर कटाया न करो गरचे झुकाया न करो
सिर कटाया न करो गरचे झुकाया न करो
फिजा यहाँ की सुना है बड़ी बारुदी है
बातों बातों में अग्निबान चलाया न करो
गिरे आंसू तो कई राज़ छलक जायेंगे
अपनी आंखों को सरे आम भिगाया न करो
लोग कहने लगें कि "आप तो गऊ हैं मियां"
करो वादे मगर इतने भी निभाया न करो
एक बस्ती है जहाँ पर सभी फ़रिश्ते हैं
तुम हो इंसान देखो उस तरफ़ जाया न करो
(दाद तो देते जाएँ सरकार )
12 टिप्पणियां:
अगर होता है ज़ुल्म-ओ-ज़ोर तो लड़ना सीखो
सिर कटाया न करो गरचे झुकाया न करो
वाह.....
गिरे आंसू तो कई राज़ छलक जायेंगे
अपनी आंखों को सरे आम भिगाया न करो
बहुत बढ़िया ...शुक्रिया
वाक़ई दाद के हक़दार तो हो!
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गुलाबी कोंपलें
चाँद, बादल और शाम
पेट की आग को आंसू से बुझाया न करो
ये कतरे खून के हैं इनको यूं जाया न करो..
Waah ! Waah ! Waah !
Lajawaab Gazal...sare sher ek se badhkar ek..behtareen...
दाद तो मिलेगी ही दादा जब नीलाम्बुज ऐसी बात कह रहे हैं। सचमुच पेट की आग को आंसू से नहीं बुझाना चाहिए और आंखों को सरेआम भींगाना भी नहीं चाहिए।
वाह वो भी दिल से..............
बहुत बढ़िया आशीष जी.
कमाल की गज़ल, एक एक शेर सुंदर (गुर्राता हुआ )।
आप सब लोगों का शुक्रिया. हौसला अफजाई के लिए.
मित्र अंशु को क्या कहूँ, हरिओम जी के शब्द उधर ले के यही कहूँगा---
"किसी भी अक्स में ढलती नहीं सूरत उसकी,
वो एक शख्श खुदा की तराश था शायद."
पेट की आग को आंसू से बुझाया न करो
ये कतरे खून के हैं इनको यूं जाया न करो
Waah ji balle balle...!!
बजा फरमाया.
आप सब लोगों का शुक्रिया. हौसला अफजाई के लिए.
मित्र अंशु को क्या कहूँ, हरिओम जी के शब्द उधर ले के यही कहूँगा---
"किसी भी अक्स में ढलती नहीं सूरत उसकी,
वो एक शख्श खुदा की तराश था शायद."
Bahut khoob. dil aur dimag ko choo lenewali kavita.
lage rahiye.
Madhavi
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