शुक्रवार, 27 फ़रवरी 2009

नीलाम्बुज की गजलनुमा कविता


पेट की आग को आंसू से बुझाया न करो
ये कतरे खून के हैं इनको यूं जाया न करो

अगर होता है ज़ुल्म-ओ-ज़ोर तो लड़ना सीखो
सिर कटाया न करो गरचे झुकाया न करो

फिजा यहाँ की सुना है बड़ी बारुदी है
बातों बातों में अग्निबान चलाया न करो

गिरे आंसू तो कई राज़ छलक जायेंगे
अपनी आंखों को सरे आम भिगाया न करो

लोग कहने लगें कि "आप तो गऊ हैं मियां"
करो वादे मगर इतने भी निभाया न करो

एक बस्ती है जहाँ पर सभी फ़रिश्ते हैं
तुम हो इंसान देखो उस तरफ़ जाया न करो
(दाद तो देते जाएँ सरकार )

12 टिप्‍पणियां:

सुशील छौक्कर ने कहा…

अगर होता है ज़ुल्म-ओ-ज़ोर तो लड़ना सीखो
सिर कटाया न करो गरचे झुकाया न करो

वाह.....

रंजू भाटिया ने कहा…

गिरे आंसू तो कई राज़ छलक जायेंगे
अपनी आंखों को सरे आम भिगाया न करो

बहुत बढ़िया ...शुक्रिया

Vinay ने कहा…

वाक़ई दाद के हक़दार तो हो!

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गुलाबी कोंपलें
चाँद, बादल और शाम

रंजना ने कहा…

पेट की आग को आंसू से बुझाया न करो
ये कतरे खून के हैं इनको यूं जाया न करो..

Waah ! Waah ! Waah !

Lajawaab Gazal...sare sher ek se badhkar ek..behtareen...

Girindra Nath Jha/ गिरीन्द्र नाथ झा ने कहा…

दाद तो मिलेगी ही दादा जब नीलाम्बुज ऐसी बात कह रहे हैं। सचमुच पेट की आग को आंसू से नहीं बुझाना चाहिए और आंखों को सरेआम भींगाना भी नहीं चाहिए।

वाह वो भी दिल से..............

नीरज मुसाफ़िर ने कहा…

बहुत बढ़िया आशीष जी.

Asha Joglekar ने कहा…

कमाल की गज़ल, एक एक शेर सुंदर (गुर्राता हुआ )।

बेनामी ने कहा…

आप सब लोगों का शुक्रिया. हौसला अफजाई के लिए.
मित्र अंशु को क्या कहूँ, हरिओम जी के शब्द उधर ले के यही कहूँगा---
"किसी भी अक्स में ढलती नहीं सूरत उसकी,
वो एक शख्श खुदा की तराश था शायद."

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

पेट की आग को आंसू से बुझाया न करो
ये कतरे खून के हैं इनको यूं जाया न करो

Waah ji balle balle...!!

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

बजा फरमाया.

NILAMBUJ ने कहा…

आप सब लोगों का शुक्रिया. हौसला अफजाई के लिए.
मित्र अंशु को क्या कहूँ, हरिओम जी के शब्द उधर ले के यही कहूँगा---
"किसी भी अक्स में ढलती नहीं सूरत उसकी,
वो एक शख्श खुदा की तराश था शायद."

imnindian ने कहा…

Bahut khoob. dil aur dimag ko choo lenewali kavita.
lage rahiye.
Madhavi

आशीष कुमार 'अंशु'

आशीष कुमार 'अंशु'
वंदे मातरम