एक्स-वाई किसी दूसरे ग्रह से आए जीव नहीं हैं, यह हमारे-आपके बीच से निकले हैं. कहते हैं ना, 'हरी अनंत-हरी कथा अनन्ता'. उसी प्रकार एक्स-वाई अनंत हैं और उनकी कथा अनन्ता. हक़
एक्स-वाई के बार-बार फोन से तंग आ गई थी। तंग आकर एक दिन (३० जनवरी २००८, रात १० बजकर ०८ मीनट पर) कह दिया- 'तुम्हारी तरह मेरी जिंदगी में १८ लोग और हैं।'यह एक ऐसा ब्रह्म-अस्त्र-वाक्य था जो किसी भी प्रेम की ह्त्या कर सकता था। अथवा अपने साध्य के प्रति नफ़रत से भर सकता था। लेकिन अपना वाई तो किसी और मिट्टी का बना था। वह खुश था, चूंकि एक्स के प्रेम के १९ वें हिस्से पर उसका हक़ अब भी जो बरकरार था। (याद कीजिए 'हमारा दागिस्तान' के लेखक रसूल हमजातव को- 'अगर हजार आदमी करते होंगे तुमसे प्यार तो उनमें एक होगा रसूल हमजातव।')
गुरुवार, 19 मार्च 2009
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4 टिप्पणियां:
रोचक ..उम्मीद का दमन नहीं छुटता .इसके बारे में और है तो और लिखे ..शुक्रिया
बहुत रोचक प्रसंग रहा!
वाह !!! क्या बात कही !! सचमुच अनूठी..और शायद यही है प्यार...
आपका ब्लॉग सुदर्शना है. देखते रहने को मन करता है.
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