लगभग २ दर्जन से अधिक कुँए और एक दर्जन से अधिक पोखर अपने आस-पास रहने वाले ग्रामीणों के लिए तैयार किया।
उनकी अवस्था ८० के आस-पास थी। अभी तक अपने लिए आए तमाम पत्रों का जवाब वे खुद देते थे। उन्हें नेवला पालने का शौक था, २००७ में हुई उनसे मुलाक़ात में मैंने उनसे इस अनोखे शौक के सम्बन्ध में पूछा तो उनका जवाब बड़ा रोचक था। 'आज जब आस्तीन में सांप पालने लगे हैं तो नेवला पालना ही होगा अपनी सुरक्षा के लिए।' नेवला से उनको इतना प्रेम था कि जब इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगाईं तो लोकेन्द्र भाई नेवले के साथ जेल गए। उन जैसे सहृदय पुरूष का जाना मन व्यथित कर गया.
4 टिप्पणियां:
bhai sach kahun safed nevlaa pahli baar dekha aapke madhyam se
sahraday shrddhaanjali mahamanaa ko
लोकेन्द्र जी को श्रृद्धांजलि!!
सफेद नेवला
इससे तो
नहीं परिचित होंगे
सांप भी
।
सांपों का भी
इस ब्लॉग पर
सफेद नेवलों
को
विलोकने के लिए
स्वागत है।
श्रद्धांजलि
मेरी
और
नुक्कड़ की ओर।
लोकेन्द्र भाई एक बहुत बड़े जमींदार परिवार की पृष्टभूमि से आये ’कांचन मुक्ति’ की भावना से सर्वोदय आन्दोलन से जुड़ गये । उनकी स्मृति को प्रणाम है ।
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