आज मोहल्ला के एक बकवास से पोस्ट पर संजीव भाई की एक सार्थक टिप्पणी देखी तो लगा इसे आप लोगों के साथ सांझा करना चाहिए:-
कुछ दिनों पहले बीबीसी के साथ एक साक्षात्कार में मकबूल फिदा हुसैन से पूछा गया कि ''सबसे विवादास्पद पेंटिंग:मदर इंडिया'' के बारे में आप क्या कहेंगे और उसमें आपने क्या दिखाने की कोशिश की है, तो उनका उत्तर था: ''मैं बचपन से ही देखता था भारत के नक्शे में गुजरात का हिस्सा मुझे औरत के स्तन जैसा दिखता है, इसलिए मैंने स्तन बनाया, फिर उसके पैर बनाए, उसके बाल बिखरे हैं वह हिमालय बन गया है। ये बनाया है मैंने। और ये जो 'भारत माता' नाम है ये मैंने नहीं दिया है, यह मेरा दिया हुआ नाम नहीं है''।जब बीबीसी के संवाददाता ने उनसे यह प्रश्न किया कि ''आपके आलोचक कहते हैं कि हुसैन साहब अपने धर्म की कोई तस्वीर क्यों नहीं बनाते, मक्का-मदीना क्यों नहीं बनाते?'' तो उनका उत्तर था: 'अरे भाई, कमाल करते हैं। हमारे यहां इमेजेज हैं ही नहीं तो कहां से बनाऊंगा। न खुदा का है न किसी और का।''यहां प्रश्न उपजता है कि जब वह हिंदू धर्म से संबंधित देवी-देवताओं के प्रति अपनी कल्पना की उड़ान भर सकते हैं तो अपने धर्म के प्रति उनकी कल्पना की उड़ान ऊची क्यों नहीं जाती? शायद इसका अंजाम वे अच्छी तरह जानते हैं।भारतीय देवियां सरस्वती व दुर्गा लाखों-करोड़ों भारतीयों की माता ही नहीं, अपनी माता से भी ऊपर अधिक सम्माननीय हैं। अपनी अभिव्यक्ति का बहाना लेकर जब श्री हुसैन हिंदू देवियों के नग्न चित्र बनाकर उन्हें अमर बना रहे है तो उन्होंने अपने इस्लाम मजहब और अपने परिवार में से किसी का भी नग्न चित्र बनाकर उन्हें अमर क्यों नहीं किया? हिंदू देवियां पर ही वह इतने मेहरबान क्यों हैं? इसलिये कि वह स्वयं हिन्दू नहीं हैं? यदि ऐसा नहीं है तो वह बतायें कि सच क्या है? चलो कुछ पल के लिये उनके इस तर्क को ही मान लेते हैं कि कि ''हमारे यहां (मुस्लिम धर्म में) इमेजेज़ हैं ही नहीं ....न खुदा का है। न किसी और का ....'' क्या किसी मुस्लिम महिला का भी कोई चित्र या इमेज नहीं है? तो फिर हुसैन साहिब बतायें कि वह केवल हिन्दू देवियों पर ही क्यों मेहरबान हुये और आज तक उन्हों ने किसी मुस्लिम महिला का नंगा चित्र बनाकर उसे अमर क्यों नहीं बनाया?हुसैन से यह पूछा ही जाना चाहिए कि आपने आज तक अपने धर्म की पवित्र हस्तियों के ऐसे ही चित्र बनाने में अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सहारा क्यों नहीं लिया? वह तो शायद इसका उत्तर न दे पर वास्तविकता यही है कि दूसरे की बीवी या मां से तो छेड़छाड़ अच्छी लगती है पर अपनी बीवी और मां से यदि यही व्यवहार हो तो शायद खून खराबा हो जाये।हुसैन और सैकुलर बुद्धिज़ीवियों की विचारधारा पर तरस ही खाया जा सकता हैं, जिन्होंने हमारी हिंदू-मुस्लिम बिरादरी के बीच आग लगा दी है और जिसकी तपिश में हम नाहक ही झुलसने को मजबूर हो गए हैं।
गुरुवार, 23 अप्रैल 2009
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8 टिप्पणियां:
A very valid point. Thanx.
अंशु भाई..कहाँ मकबूल जैसे मानसिक रोगी की बात दिल से लगा बैठे। उन्हे न भारत पता है न माँ....
संजीवजी ने बहुत ही सधे शब्दों में सहज तरीके से हुसैन के दोहरेपन को उजागर कर दिया है।
ये हुसैन और खुशवंत सिंह दोनों मानसिक रोगी है इन्हें अपने धर्म तो प्रिय है दुसरे इन्हें साम्प्रदायिक लगते है !
भाई आपको किसने कह दिया कि मुहल्ले पर बकवास के अलावा भी कुछ आता है . वैसे ये हुसैन अपनी माताश्री का नाम काहे नही लीख देते उस पोस्ट के नीचे . या मुहल्ले के नामाकूल लोग उसे अपनी माताजी की फ़ोटो कह कर अपने घ्र मे काहे नही टांग लेते .
माँ बहन क्या होती है? औरत होती है और उसके स्तन होते है. जो नक्शों में भी दिख जाते है. जिसकी जैसी बुद्धी होगी उसे वैसा ही नजर आएगा और बनाएगा.
इश्क, मुश्क और संघी मानसिकता छुपाये नहीं छुपते.
ये और कुछ नही मकबूल साहब का मानसिक दिवालियापन है...एसे लोगो और उनकी ऐसी हरकतों को एक तों जयादा तूल नही देनी चाहिए...वैसे एसे लोगो को अपने दिमाग का इलाज करना चाहिए|
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