यह लेख तो मीडिया स्कैन के लिए लिखा गया था, लेकिन लेखक नहीं चाहते थे कि लेख के साथ उनका नाम भी जाए, इसलिए इसे ब्लौग पर डाल रहा हूँ. चूकि बात आप लोगों तक पहुँचे.
दिल्ली के खजुरीखास इलाके की स्कूल में हुए भगदड़ में सात छात्राओं की मौत की खबर क्या आई... इलेक्ट्रानिक मीडिया के कई दुकानों में जैसे खलबली सी मच गई... जिन चैनलों के पास अपने संसाधन है... उन ने तो जमकर खबर को बेचा... लेकिन कुछ छोटे दर्जे के चैनल को भी तो अपनी दुकान चलानी है.... अभी मैं चैनल पहुंचा ही था कि आउटपुट एडिटर की आवाज मेरे कानो में गुंजी... अरे यार काट लो काट लो... अब आप सोच में पड़ गए होंगे कि आखिर काटना क्या है... चलिए हम ही बता देते है... दरअसल ये सारी कवायद दूसरे चैनल पर आ रहे विजुअल को कैप्चर करने या बिंदास कहे तो उसे चुराने की चल रही थी...अरे भईया मैं ये क्या कह गया.... आखिर मैं भी तो इसी दुकान में काम करता हूं... तो फिर मालिक के खिलाफ ऐसी नाफरमानी... चलिए जब कुछ भड़ास निकलना ही है तो जमकर निकाला जाए... मुझे न तो अपने संस्थान से शिकायत है और न ही इस ग्लैमर की दुनिया से ही कोई गिला... शिकायत तो बस कुकरमुत्ते की तरह उपज रहे इन छोटे दर्जे की चैनलों से है... चैनल के नाम पर इन्हे लाइसेंस तो मिल जाता है लेकिन इनकी पहुंच बस चैनल के मालिकों तक ही सिमटी होती है... कुछ तो ऐसे चैनल भी है जिसका नाम कभी नहीं सुना पर कहने को नेशनल चैनल है...ऐसा नहीं कि इस चैनल में काम करने वालों को सैलरी नहीं मिलती... मिलती है पर कब मिलती और कब खत्म हो जाती इसका तो पता ही नहीं चलता...मतलब नहीं समझे तो लिजिए समझ लिजिए... दरअसल इन चैनलों में वैसे लोग ही आते है जिनकी सोच यहां आने से पहले तो क्लियर रहती है लेकिन जैसे जैसे मीडिया के वास्तवित रुप से रु-ब-रु होते है... एक अलग ही सोच विकसित हो जाती है... फिर भी नहीं समझे... अरे भाई ये लोग इन चैनलों को सफलता की पहली सीढ़ी समझकर इस पर चढ़ तो जाते है लेकिन अगली सीढ़ी के लिए बस तरसते रह जाते है....उसके बाद उम्र से पहले ही बुजुर्ग की तरह मीडिया में आए बस आए नए छात्रों को उपदेश ही देते रह जाते है... कि भईया अभी भी समय है सभंल जाओ... नहीं तो बस फंस गए तो फंस गए।
( लेखक परिचय- लेखक एम एच वन, एस वन, फोकस, आजाद, प्रज्ञा में से किसी एक चॅनल में कार्यरत हैं...)
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