मध्य प्रदेश जहां की आवाम ने हमेशा अच्छे खिलाड़ियों को आंखों पर बिठाकर रखा है। जहां की सरकार भी गांव और छोटे कस्बों से खेल के क्षेत्र में बेहतर करने की संभावना वाले कम उम्र की प्रतिभाओं को तलाशने के लिए प्रयत्नशील है। जिससे इन खिलाड़ियों की प्रतिभा को योग्य कोच की देखरेख में बेहतर प्रशिक्षण देकर निखारा जा सके। आज विश्व कप के रोमांच में जब पूरा देश डूबा है तो कुछ बातें आप सब के साथ सांझा करने को दिल करता है। चूंकि यह मौका माकूल है, कभी और ये कहानी आपके सामने आई तो हो सकता है, असामयिक कहकर उसे आप खारिज कर दें।
मुद्दे की बात पर आता हूं, मैं आप सबके साथ ‘सीहोर एक्सप्रेस’ मुनीस अंसारी की कहानी सांझा करना चाहता हूं। जिस पर ना जाने कैसे मध्य प्रदेश में चल रहे तमाम सरकारी गैर सरकारी प्रयासों की नजर ना अब तक नहीं पड़ी। जबकि इस खिलाड़ी के तेज रफ्तार गेन्द की सनसनाहट को सिर्फ भोपाल ने नहीं बल्कि ऑल इंडिया स्कॉर्पियो स्पीड स्टार कांटेस्ट के माध्यम से देश भर ने महसूस किया। वह राज्य की राजधानी भोपाल से महज 25-30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक छोटे से कस्बे सीहोर से ताल्लुक रखता है। उसने भी सीहोर की गलियों में बल्ले और गेन्द के साथ उसी तरह खेलना शुरु किया था जैसे उसके बहुत से साथियों ने किया था। लेकिन वह अपने साथियों की तरह यह खेल सिर्फ टाईम पास के लिए नहीं खेल रहा था। क्रिकेट देखते ही देखते उसके लिए जुनून बन गया।
सीहोर की गलियों में क्रिकेट खेलने वाला मुनीस कभी सीहोर एक्सप्रेस नहीं बनता, यदि उसे स्पीड स्टार कांटेस्ट की जानकारी नहीं मिलती। सीहोर की गलियों के इस तेज गेन्दबाज के गेन्द का सामना करने के लिए मुम्बई के एक बड़े से मैदान में स्पीड स्टार मुकाबले के फाइनल में हरभजन सिंह उतरे। सिहोर एक्सप्रेस की पहली गेन्द को हरभजन समझ नहीं पाए और उनके तीनों विकेट हवा में बिखर गए। दूसरी गेन्द में हरभजन के हाथ का बल्ला दो टूकड़ों में बंट गया और तीसरी गेन्द पर हरभजन के हाथ का बल्ला छीटक कर दूर जा गिरा। मुनिस उस दिन 134 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से गेन्द फेंक रहे थे। उनके गेन्द की अधिकतम रफ्तार 145 किलोमीटर प्रतिघंटा थी। जिसे खेल पाना किसी भी बल्लेबाज के लिए मुश्किल की बात होगी। उसकी गेन्दबाजी की प्रतिभा को देखकर मैदान में मौजूद उस समय भारतीय टीम के कोच ग्रेग चैपल, कप्तान राहुल द्रविड़, वसीम अकरम, जोन्टी रोट्स, और किरण मोरे खासे प्रभावित हुए। दक्षिण अफ्रिका के खिलाड़ी जोंटी रोट्स ने तो मुनीस के खेल को देखकर क्षेत्र रक्षण (फिल्डिंग) के लिए दस में से नौ अंक दिए। बावजूद इसके मध्य प्रदेश की सरकार ने उसे आज तक रणजी खेलने के लायक भी नहीं समझा।
मुनीस के अनुसार उसका चयन अब तक राष्ट्रीय टीम में हो चुका होता, यदि उसका भी कोई गॉड फादर होता। उसका जन्म एक गरीब परिवार में हुआ। उसके पिता मुस्तकीन अंसारी एक दिहाड़ी मजदूर हैं। परिवार की हालत अच्छी नहीं होने की वजह से वर्ष 2000 में मुनीस ने क्रिकेट खेलना छोड़ दिया था। चार साल उसने एक कंपनी में बतौर सीक्यूरिटी गार्ड काम किया। यह मुनीस की जिन्दगी के वे चार साल थे जब ‘दीवान बाग क्रिकेट क्लब’ और क्रिकेट कही पिछे छूट गया और मुनीस रोटी के लिए मशक्कत में लग गया था। उसका क्रिकेट के साथ रिश्ता खत्म ही हो जाता यदि इसी बीच एक टेलीविजन चैनल पर तेज गेन्दबाजों की तलाश के संबंध में विज्ञापन नही आया होता। इस विज्ञापन को देखने के बाद बड़े भाई युनूस अंसारी ने मुनीस को क्रिकेट में भाग लेने के लिए प्रेरित किया। ग्वालियर में चार हजार गेन्दबाजों के बीच पूरे मध्य प्रदेश से इकलौते मुनीस का चयन इस प्रतियोगिता में हुआ।
ऑल इंडिया स्कॉर्पियो स्पीडस्टार कांटेस्ट’ रियालिटी शो का प्रसारण चैनल सेवन (अब आईबीएन सेवन) ने किया। यह कार्यक्रम क्रिकेट प्रेमियो के बीच बेहद लोकप्रिय हुआ था। पांच साल पहले हुए इस कांटेस्ट के बाद मुनीस का नाम मध्य प्रदेश के क्रिकेट प्रेमियो की जुबान पर छा गया। सिर्फ इस नाम को प्रदेश रणजी ट्राफी की चयन समिति नहीं सुन पाई। वरना बात आश्वासनों तक दब कर नहीं रह जाती। मुनीस का चयन भी होता।
खेलने की उम्र निश्चित होती है। ऐसे में मुनीस जैसे अच्छे खिलाड़ियों को मौका ना देकर हम अपनी टीम को कमजोर बना रहे हैं। बीच में यह चर्चा तेज थी कि उसे राजस्थान रॉयल की टीम में स्थान मिलने वाला है, लेकिन यह हो नहीं सका। इसके लिए भी उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि ही जिम्मेवार होगी। या फिर अब तक क्रिकेट की दुनिया में अपने लिए कोई खुदा-पापा (गॉड फादर) ना बना पाने की गलती की वह सजा भूगत रहा है।
बहरहाल भारत में मौका तो नहीं मिला, तो वह इन दिनों ओमान की राष्ट्रीय टीम के लिए क्रिकेट खेल रहा है।
मंगलवार, 22 मार्च 2011
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