यदि अण्णा का आंदोलन भ्रष्टाचार के खिलाफ है
तो खबर का सौदा करने वाले अखबार
और चैनल दोनों को
कायदे से अण्णा के खिलाफ होना चाहिए।
यदि वास्तव में यह आंदोलन भ्रष्टाचार के खिलाफ है
तो देश के उद्योगपतियों और धनबलियों को
इस आंदोलन के खिलाफ होना चाहिए,
यदि वास्तव में यह आंदोलन भ्रष्टाचार के खिलाफ है
तो जिन एनजीओ के खुद के अकाउंट
दुरुस्त ना हों,
जिन एनजीओ में हिसाब किताब को लेकर
पारदर्शिता ना बरती जाती हो,
उन सबको इस आंदोलन से डरना चाहिए,
यदि आंदोलन भ्रष्टाचार के खिलाफ है
तो विकास के पैसों के कमिशन से
अपना धन जोड़ने वाले नेताओं को
इससे दूर रहना चाहिए।
क्या ऐसा हो रहा है
यदि नहीं तो आंदोलन कागजी सफलता पा ले
लेकिन उसकी वास्तविक सफलता संदिग्ध होगी।
शुक्रवार, 8 अप्रैल 2011
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4 टिप्पणियां:
बहुत खूब
आशीष भाई आपने बिल्कुल सही सवाल उठाए है। एसा नहीं है कि इस बिल के आने से भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा,लेकिन इतना तो जरुर है कि आरटीआई की तरह इसका भी इस्तेमाल होगा।
मैं बहुत खूब नहीं कहूंगा, मैं अनुभव और सत्य के परिणाम की प्रतिक्षा में हूं..तुरंत प्रतिक्रिया देना आसान है लेकिन उस प्रतिक्रिया से केवल कयास ही लगाए जा सकते हैं.
क्या आपने हिंदी संस्थानों की बदहाली से संबंधित यह आलेख देखा
http://irdgird.blogspot.com/2011/04/blog-post_07.html
शायद नहीं देखा होगा। क्यों कि हम अकसर भष्ट्राचार को संसद के गलियारों में ही ढूँढते हैं।
सादर
एक साथी
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