कपिल मिश्रा एक युवा है. समाज के लिय सोचने वाली जो आज नई पौध खडी हुई है, उनमें शमिल है. समाजसेवी राजेन्द्र सिंह राणा के 'यमुना सत्याग्रह' में सहभागी है. इस बार इस युवा समाजसेवी की एक कविता:-
हम लोग है ऐसे दीवाने , हम नदी बचाने आये है
तेरा खेलगांव एक साजिश है, हम इसे मिटने आये है
ये नदी नहीं तो क्या दिल्ली,
क्या जीवन क्या सरकार तेरी
ये नदी बिना क्या जीत तेरी,
ये नदी बिना क्या हार मेरी
तुम चांदी की खनक मॆं खोये हुए, हम शंख बजाने आये है I हम लोग ...
यहाँ माल बने यहाँ मयखाने,
ये ख्वाब है या एक पागलपन
ये कुछ भी हमें मंजूर नहीं,
तुझे होश दिलाने आये है I हम लोग ...
यहाँ पेड लगे, यहाँ खेत जुते,
यहाँ पानी हो और हो जीवन
तेरा खेलगांव कहीं और सही,
तुझे ये समझाने आये है I हम लोग ...
तुम नींद में ऐसे खोये हो,
ये स्वप्न नहीं, बेहोशी है
हम सूरज लेकर हाथो में,
तुझे आज जगाने आये है I हम लोग ...
जहाँ भूख से मरती हो जनता,
जहाँ प्यास से मरती हो जनता,
और नेता खेल की बात करें
तब वक़्त है आगे आने का
चलो मिलकर दो दो हाथ करे
ये जनता तुझे ठुकरायेगी, वो दिन भी ज्यादा दूर नहीं
ये जनता की अदालत है, तुझे याद दिलाने आये है I हम लोग ...
हम नदी बचाने आये है
- कपिल मिश्रा , यूथ फॉर जस्टिस
रविवार, 1 जून 2008
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3 टिप्पणियां:
यमुना की मौत हो चुकी है...कविता सामयिक है और सार्थक भी।
***राजीव रंजन प्रसाद
एक उत्तम एवं सार्थक रचना.कपिल जी को बधाई एवं आपका आभार.
बधाई प्रियवर आपके ब्लाग पर आ कर अच्छा लगा कपिल जी की कविता प्रस्तुत कर आपने बिढ़या काम किया साधुवाद
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