रविवार, 3 अगस्त 2008
ऐसे भी समाजसेवी ...
वह किसी ट्रस्ट का मालिक नहीं है. वह कोई एन जी ओ नहीं चलाता. उससे मेरी मुलाकात हुई थी शाहबाद (कुरूक्षेत्र के पास) के एक स्कुल में. वह एक डाक्टर के पास सहायक के तौर पर काम करता है. लेकिन यह काम तो वह रोटी के लिए करता है. इसके अलावा वह कई काम और करता है, जो उसकी भाषा में वह अपने लिए करता है. और मेरी भाषा में समाज के लिए करता है. वह शाहाबाद के लगभग आधा दर्जन बुजुर्गों के लिए प्रतिदिन अपने घर से खाना बनवाकर सुबह-शाम उनके पास पहूंचता है. यह सभी वे बुजुर्ग हैं जिनके घर में अब कोई नहीं है. इसी तरह वह बुजुर्गों के लिए प्रतिदिन सुबह-शाम निशुल्क दवा-वितरित करता है. यह दवा वह स्थानीय डाक्टरों के सहयोग से एकत्रित करता है। इसी तरह वह एक वृधाश्रम बनाने की तैयारी में है, जो सामान्य वृधाश्रमों की तरह, बुजुर्गों के रहने और खाने का ठिकाना मात्र नहीं होगा. यहाँ उनके मनोरंजन का भी पूरा बंदोबस्त होगा. उनकी पत्नी भी इस काम में उनकी मदद कर रही है. उन्हें प्रति दिन सात-आठ अतिरिक्त लोगों का खाना सुबह-शाम बनाने में कोई कोफ्त नहीं होती. वह कहती हैं, मुझे लगता है मेरे परिवार में कुछ लोग बढ़ गए. इसलिए मुझे कभी परेशानी नहीं हुई. मैं उस व्यक्ति के लिए कुछ लिखना चाहता था, लेकिन उसने जो कहा उसकी वजह से उसका नाम नहीं दे रहा. लेकिन वह जो काम कर रहा है, उसे देखने के बाद उसके विषय में बताने का लोभ भी संवरण नहीं कर सका. उसने मुझे कहा था, मेरे लिए कुछ मत लिखिए- आप लिखेंगे तो मेरे काम की पवित्रता कम होगी. वह व्यक्ति अब तक १०० से अधिक बार रक्त दान कर चूका है. यदि आप उस महापुरूष से मिलना चाहें तो शाहबाद जा सकते हैं. शाहबाद एक छोटा सा कस्बा है, वहाँ उसे खोज निकलना बहूत मुश्किल नहीं है.
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7 टिप्पणियां:
यह एक पुजा हे, ओर ऎसे लोग नही चाहते अपनी चर्चा करवाना, सच मे विग्घ्न पडता हे इन की पुजा मे,यह लोग ना तो शोर मचाते हे, ना बालॊग पर अपनी बडाई चाहते हे, ना ही अखवारो की सुर्खिया बनाना चाहते हे, बस अपने कर्म मे मस्त हे, ओर हमारी जिम्मेदारी हे इन्हे मस्त रहने दो, जिस दिन हमारा गन्दा मिडिया इन तक पहुच गया, इन की पुजा मे ग्रहण लग जाता हे,एक तरफ़ ऎसे लोग हे जो अपना सब कुछ सेवा मे लगाते हे, दुसरी ओर वो सडियल जो सब कुछ अपनी सेवा मे लगवाते हे,कभी ऎसे इन्सान मिले तो उन के चरण जरुर छुने चाहिये,हो सकता हे हमे भी कुछ सद बुद्धि इन से मिल जाये,
आप का धन्यवाद एक इन्सान से मिलाने के लिये
भाई आपके तीनों ब्लॉग देखे.आपकी कोशिशों और काविशों की दाद देनी पड़ेगी.
और इस बात कही के क्या कहने.
कोई तो हमज़बाँ मिला.
http:हमज़बाँ.blogspot.com/ का नारा है:
कशमकश !!!किससे कहें हालेदिल ?
कैसे करें दर्दे बयां ?
ज़बां मिली है मगर
हमज़बां नहीं मिलता
यह मंच उन सभी का है,
जो चकाचौंध से घबराते हैं
और चांदनी की
हल्की छुअन
जिन्हें सराबोर कर देती है
सलाम इस जज्बे को....
वाह!! यही सच्ची सेवा है. आभार इनसे मिलवाने का.
achchha laga. koshish karen ki har mahine aise kisi vyakti ke bare me jaroor batasyen.
kaun kehta hai ki insaan ke pas dil naam ki cheez nahi reh gayi hai... aise udahran... aise farishton ko mera salaam... :)
नेकी कर और कुवे में डाल....... सच्चे कर्मयोगी की यही एक पहचान है.....
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