बुधवार, 24 सितंबर 2008

गडियाने को मन करता है ...

आम जन अब तक बिहार की बाढ़ को भूल - भाल गए होंगे। अब मीडिया वालों के लिए बिहार बाढ़ की ख़बर में लस नहीं है। लेकिन जिन लोगों ने इस विभिषिका में अपना सब कुछ खो दिया है, वो कैसे भूला पाएँगे यह सब कुछ. लोकेन्द्र भारतीय बड़े साफ़ शब्द में कहते हैं, कुछ दिनों में तमाम एन जी ओ अपना बोडिया समेट कर बिहार से चले जाएँगे. उस वक़्त यहाँ मदद की असली जरूरत पड़ने वाली है. ज़रा सोचिए कैसे काटेंगे बाढ़ पीड़ित ठण्ड से ठीठूराती काली रातों को . इस परिस्थिति में बिहार के जन प्रतिनिधि और नौकरशाह चैन की नींद सो पाते हैं, तो यह वास्तव में शर्म की बात मानी जानी चाहिए।
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इस रिक्त स्थान में बाढ़ के लिए जिम्मेवार तमाम लोगों को आप जितने अपशब्द बोल सकते हैं, भर लीजिए. वैसे मैं जानता हूँ - उन्हें कुछ ख़ास फर्क नहीं पड़ना इससे भी, क्योंकि वे अब थेथर हो चुके हैं.
जो लोग थेथर शब्द से अपरिचित हों वे इस थेथरपने को निर्लजता का भाई-बंधू ही समझे.







































1 टिप्पणी:

Udan Tashtari ने कहा…

अफसोसजनक स्थितियाँ....

आशीष कुमार 'अंशु'

आशीष कुमार 'अंशु'
वंदे मातरम