मंगलवार, 7 सितंबर 2010
कैसा हो स्कूल हमारा: गिरीश तिवारी गिर्दा
कैसा हो स्कूल हमारा
जहां न बस्ता कंधा तोड़े, ऐसा हो स्कूल हमारा
जहां न पटरी माथा फोड़े, ऐसा हो स्कूल हमारा
जहां न अक्षर कान उखाड़े, ऐसा हो स्कूल हमारा
जहां न भाषा जख़्म उघाड़े, ऐसा हो स्कूल हमारा
कैसा हो स्कूल हमारा
जहां अंक सच-सच बतलाएं, ऐसा हो स्कूल हमारा
जहां प्रश्न हल तक पहुंचाएं, ऐसा हो स्कूल हमारा
जहां न हो झूठ का दिखव्वा, ऐसा हो स्कूल हमारा
जहां न सूट-बूट का हव्वा, ऐसा हो स्कूल हमारा
कैसा हो स्कूल हमारा
जहां किताबें निर्भय बोलें, ऐसा हो स्कूल हमारा
मन के पन्ने-पन्ने खोलें, ऐसा हो स्कूल हमारा
जहां न कोई बात छुपाये, ऐसा हो स्कूल हमारा
जहां न कोई दर्द दुखाये, ऐसा हो स्कूल हमारा
कैसा हो स्कूल हमारा
जहां न मन में मन-मुटाव हो, जहां न चेहरों में तनाव हो
जहां न आंखों में दुराव हो, जहां न कोई भेद-भाव हो
जहां फूल स्वाभाविक महके, ऐसा हो स्कूल हमारा
जहां बालपन जी भर चहके, ऐसा हो स्कूल हमारा
जहां न अक्षर कान उखाड़े, ऐसा हो स्कूल हमारा
जहां न भाषा जख्म उघाड़ें, ऐसा हो स्कूल हमारा
ऐसा हो स्कूल हमारा
श्रोत - मोहल्ला
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3 टिप्पणियां:
और जो गिरदा के ख्वाबों का स्कूल ना मिले...तो,
पढ़य से अच्छे घरे रहउ, जेबिम कट्टा धरे रहउ...। हा हा हा...।
ये सिर्फ ह्यूमरस श्रद्धांजलि है गिर्दा को, जिनके ख्वाबों के पूरा होने में बहुत वक्त बाकी है...और जिन्हें पूर्ण करने के लिए हम सबको बतकुच्चन छोड़कर क्रियान्वयन में जुटना होगा।
अच्छी प्रस्तुति के लिए अंशु को बधाई।
क्या आप ब्लॉग संकलक हमारीवाणी.कॉम के सदस्य हैं?
सार्थक पोस्ट बहुत बहुत बधाई
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