शुक्रवार, 28 नवंबर 2008

मुंबई में शहीद हुए सेना के जवानों के लिए ...


दो शब्द
एक नमन, एक प्रणाम
मुम्बई हो या अक्षरधाम,
खाकी वर्दी की कुर्बानी
याद रखेगा हिन्दुस्तान.
--राजेश चेतन

मंगलवार, 25 नवंबर 2008

जयपुर के हाथी वैश्विक मंदी के शिकार













जयपुर के हाथी आजकल वैश्विक मंदी के शिकार हैं. अक्टूबर से मार्च तक का समय जो इनके लिय सबसे ख़ास होता था. इस बार मंदी की वजह से गड़बड़ है. आमेर गाँव के रहने वाले महावत इरफान ने बताया कि हर एक हाथी को अपने बच्चे की तरह पालना पङता है. इनपर हर साल पाँच लाख रूपये का खर्च आ जाता है. अब जब विदेशी पर्यटक इस मंदी में आएँगे नहीं तो कैसे इन हाथियों का लालन पालन होगा. एक जमाने में आमेर किले के एक दिन में १७-१७ राउंड लगा चुके हाथियों को इन दिनों दो राउंड लगाना भी मुश्किल पड़ रहा है. जयपुर में विदेशी पर्यटकों की नई बुकिंग ना के बराबर है.

सोमवार, 10 नवंबर 2008

मीनाक्षी (दि.वि.) का आभार

हाल में मेरी प्रकाशित कहानी 'एक्स-वाई की कहानियाँ' के लिए दोस्तों के खूब सारे फ़ोन आए। यह कहानी कभी ना लिखी जाती यदि मीनाक्षी ना होती. उसके स्वभाव के दोहरेपन या कहें व्यवहार की वैविध्यता ने इस कहानी को मुकम्मल बनाया. मीनाक्षी का आभार.

एक्स -वाई की एक कहानी

एक्स के हर्ट रूम में ऐ, बी, सी, डी, ई, ऍफ़, जी ...... वाई जैसे ना जाने कितने स्विच थे. वह जब चाहती एक स्विच को ऑन करती और ऑन स्विच को जी भर कर दुलार करती. फ़िर उस स्विच को ऑफ कर दिया जाता. यह सिलसिला चलता हुआ वाई तक पहुंचा. उसे जी भर कर एक्स का दुलार मिला. जब बारी स्विच ऑफ की आई तो वह ऑफ होने को तैयार नहीं हुआ. वाई कोई विद्रोही किस्म का जीव जान पङता था. और एक्स को विद्रोह पसंद नहीं था. उसने फ़ौरन अपने हर्ट रूम के स्विच बोर्ड से वाई नामक स्विच को उखार फेंका. सुना है आजकल किसी 'क' नाम के स्विच ने वाई की जगह ले ली है. और 'ऑन' होने के लिए मचल रहा है.

मंगलवार, 4 नवंबर 2008

एक सिन्धी का दर्द

डा। रविप्रकाश टेकचन्दानी, दिल्ली विश्वविद्यालय में सिन्धी विषय के वरिष्ठ व्याख्याता हैं. अपनी कविता 'एक सिन्धी के दर्द' में उन्होंने सिन्धी समाज के एक प्रतिनिधि के नाते अपनी बात कही है. बकौल टेकचन्दानी- ४७ का मतलब पूरे देश के लिए आज़ादी हो सकती है लेकिन सिन्धी समाज को मिला विखण्डित भारत. हमारा सबकुछ पाकिस्तान के सिंध प्रान्त में छूट गया. ' आज सिन्धी समाज के लोग अपने ही देश में विस्थापितों की तरह जीने को मजबूर हैं. सरकार कुछ सोच रही है इस समाज के लिए.
आइय कविता के माध्यम से उस समाज के दर्द को समझने का प्रयत्न करें।

'एक सिन्धी का दर्द'
करते हो याद साल दर साल आजादी को
सैंतालिस की काली रात भी याद कर तो देखो,
खून, बलात्कार, बिछोह, खुद बखुद नजर आएगा
किसी सिन्धी की आंखों में झांक के तो देखो.

कहते हो क्या हुआ जो सिंध छोड़ आए
अपने मोहल्ले को ज़रा छोड़ कर तो देखो,
बिछोह के दर्द का एहसास अभी-अभी हो जाएगा
अपनी माँ से दो पल दूर होकर तो देखो.

पढ़ते हो हर रोज सिंध को अखबारों के अक्षरों में
कभी करांची या सक्खर घूम कर तो देखो,
विभाजन के खँडहर साफ़-साफ़ दिखा जाएंगे
आजादी की नींव में लगा पत्थर तो देखो.

उठाते हो बेजा सवाल देश भक्ति का,
मिलेगा कहाँ ऐसा मिसाल खोजकर देखो,
सिंधियों के सामर्थ्य के तप का अनुभव हो जाएगा
किसी सिन्धी महिला के गर्भ से जन्म लेकर तो देखो.

करते हो पैदा डर की मीट जाएंगे
हवाओं में ये डर पैदा कर तो देखो,
जर्रे-जर्रे में 'रवि' हयात नजर आएँगे
पूरी कायनात में सर उठाकर तो देखो.

शनिवार, 1 नवंबर 2008

खंडवा में भूख से मरते बच्चे


मध्य प्रदेश में लगातार हालात बिगड़ते जा रहे हैं. यहाँ लगातार हो रही भूख से मौत शर्मनाक है. जिसकी तरफ़ सरकार ध्यान देने को तैयार नहीं है. उसकी एक ही दलील है, मौत भूख से नहीं बीमारी से हो रही है. जबकि सर्वेक्षण और गैर सरकारी आंकड़े सरकार की असफलता की कहानी कह रहे हैं. मध्य प्रदेश में खंडवा जिलान्तर्गत खलवा प्रखंड कोरकू आदिवासियों का प्रखंड है. यहाँ इनकी संख्या अधिक है. यहाँ कुपोषण की भयावहता सारी सीमा रेखाओं के बाहर है. यहाँ पिछले कई वर्षों से कुपोषण की वजह से लगातार मौतें हो रही हैं. और आदिवासी समाज के लोग त्राहीमाम-त्राहीमाम कर रहे हैं. लेकिन भोपाल तक उनकी आवाज पहुँच नहीं रही है. या अनसुनी कर दी जा रही है. यह बात तो चौहान (श्योराज सिंह) साहब समझे. खंडवा जिलान्तर्गत रोशनी अस्पताल के ३ किलोमीटर के वृत्त में पड़ने वाले तीन गाँव मोहालखडी, सालीधना और अम्बरा में १२ बच्चों की मौत लगातार हुई है.

आशीष कुमार 'अंशु'

आशीष कुमार 'अंशु'
वंदे मातरम