हुर्रियत कांफ्रेस के कथित उदारवादी अध्यक्ष मीरवायज उमर फारुख ने कहा है कि
'श्राइन बोर्ड को जमीन देकर भारत सरकार कश्मीर में हिन्दू कालोनी बनाकर जनसंख्या अनुपात को बदलना चाहती है।'यासीन मलिक ने चेतावनी दी कि
यदि भूमि हस्तांतरण आदेश वापस नहीं लिया गया तो वह आमरण अनशन शुरू करेंगे।अलगाववादी नेता अली शाह गीलानी का कहना है कि
बोर्ड को ज़मीन देना ग़ैर-कश्मीरी हिंदुओं को घाटी में बसाने की एक साज़िश है ताकि मुस्लिम समुदाय घाटी में अल्पसंख्यक हो जाए।
मुफ्ती मोहम्मद सईद और उनकी पुत्री पीडीपी की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती के अनुसार
अमरनाथ यात्रा से कश्मीर में प्रदूषण फैलता है।पूर्व मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला ने कहा कि
उनकी हुकूमत आई तो बोर्ड को दी जाने वाली जमीन वापस ले ली जाएगी। गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर स्थित प्रसिध्द तीर्थस्थल श्री अमरनाथ मंदिर को 40 हेक्टेयर ज़मीन हस्तांतरित करने पर विवाद गहरा रहा है। राज्य सरकार ने कैबिनेट बैठक करके यह जमीन श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड को दी, ताकि वह यात्रियों के लिए मूलभूत सुविधाओं की स्थायी व्यवस्था कर सके। इसके विरोध में अलगाववादी संगठनों द्वारा कश्मीर में हिंसक प्रदर्शनों का सिलसिला जारी है। अंतत: अलगाववादियों की धमकी के आगे गुलाब नबी सरकार ने घुटने टेक दिए। गौरतलब है कि पीडीपी के समर्थन वापस ले लेने से राज्य की कांग्रेस-नीत सरकार भी अल्पमत में आ गई है। हालांकि आवंटित भूमि को राज्य सरकार ने वापस ले लिया है। बोर्ड को दिए गए भूमि आवंटन को रद्द किया जाना अलगाववादियों के सामने सरकार का समर्पण है।
(यहाँ तक की बात मैंने जिन लोगों को श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड का मामला ना पता हो उन्हें विषय वस्तु से अवगत कराने के लिए संजीव भाई के ब्लॉग 'हितचिन्तक' से उधार - साभार भी कह सकते हैं- लिया है।)
खैर विषय पर आते हैं।
हर तरफ़ बयानबाजी और आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा है। लेकिन इस मामले में जिसकी राय सबसे अहम मानी जाती वे हैं डा कर्ण सिंह। लेकिन वे खामोश रहे। कुछ भी नहीं बोले। क्या जम्मू में जो चल रहा, उनसे उन्हें तकलीफ नहीं। फ़िर कौन सी मजबूरी है, जिसने उन्हें खामोश रहने पर मजबूर किया है।
कल एक अखबार के प्रतिनिधि के तौर पर उनसे बात करने की कोशिश की थी। उनके सहयोगी मोहन सिंह और गंगाधर शर्मा के संपर्क में सुबह से शाम तक रहा। श्री शर्मा ने थोडी कोशिश भी की, मेरी बात इस मुद्दे पर डा सिंह से हो जाए मगर वे असफल रहे।
इस देश में डा सिंह उन चंद नेताओं में से हैं जिन्हें पार्टी और राजनीति से ऊपर देखा जाता है। लेकिन श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड के मामले में वे पार्टी लाइन से ऊपर नहीं उठ पाए इसीलिए शायद उन्हें खामोशी अख्तियार करनी पड़ी।
याद कीजिए अपनीइसी बेलाग टिप्पणियों की वजह से वे राष्ट्रपति पद की दावेदारी में वामपंथियों की पसंद नहीं बन सके थे।
उन्हें इस विषय पर अपनी बात जरूर जनता के सामने रखनी चाहिए। भारत की आवाम उनका पक्ष जानना चाहती है।