गुरुवार, 31 जुलाई 2008
उजाड़ने और बसाने का खेल है
पूरण सिंह राणा टिहरी से विस्थापित हैं. वह विकास की परिभाषा इन शब्दों में देते हैं,जब अमीर लोग अपनी सुविधा के लिए किसी बड़ी परियोजना के नाम पर गरीबों की बस्तियों को उजाड़ते हैं तो इसे बस्ती का विकास होना कहते हैं. उन्हें टिहरी से उजाड़ कर हरिद्वार के पास ज्वालापुर में वन विभाग की जमीन पर बसाया गया है. कितनी समझदारी है इस उजाड़ने और बसाने के खेल में? उसे इस बात से समझा जा सकता है कि एक तरफ़ टिहरी विस्थापितों को बसाने के लिए वन विभाग ने ज्वालापुर में जंगल की कटाई की दूसरी तरफ़ यही सरकार देहरादून के पास हरकीदून (उत्तरकाशी) में गोविन्दविहार, गंगोत्री में गंगोत्री नॅशनल पार्क और जोशी मठ के पास नंदादेवी नॅशनल पार्क बनाने के नाम पर बड़ी संख्या में गाँव वालों को उजाड़
रही है।
अंत में एक बात यह कि पूरण ने ज्वालापुर वाले अपने घर को छाम गाँव का नाम दिया है। यह उनका पैतृक गाँव है, जिसे छोड़कर टिहरी से उन्हें यहाँ आना पडा था.
मंगलवार, 29 जुलाई 2008
औरंगजेब और फिरंगजेब की कथा
आज आपको मुजफ्फरपुर के पतियासी गाँव के औरंगजेब और फिरंगजेब की कथा सुनाते हैं. दोनों भाई हैं. तस्वीर में जो ऊपर दिख रहा है, वह औरंगजेब है और जो नीचे है वह छोटा भाई फिरंगजेब. दोनों स्कुल में पढ़ते हैं. आज मुजफ्फरपुर में बारिश हुई. अब्बू की तबियत थोडी ख़राब थी फ़िर क्या दोनों भाई उतर गए अपने खेत में. फसल बोने के लिए. अच्छा है ना. एक बात और बातचीत में फिरंगजेब ने बताया की उसे अपना नाम पसंद नहीं है. वह इसे बदलना चाहता है. खैर, आपके पास कोई अच्छा नाम हो फिरंजेब के लिए तो बताइएगा.
सोमवार, 28 जुलाई 2008
उतारांचल: पहाड़, नदियों और जंगल के साथ बलात्कार
आप कभी उत्तरांचल जाएँ तो वहाँ जगह-जगह चल रही मशीनी गतिविधियों को देखकर आप सोच सकते हैं कि राज्य का विकास हो रहा है. लेकिन यह विकास नहीं है. यह साफ़ तौर से उत्तराँचल के पहाड़, नदियों और जंगल के साथ बलात्कार है. जमकर यहाँ नदियों का दोहन किया गया, जंगल काटे गए. और पहाडो को खोद-खोदकर खनिज निकाला गया. यह नया दौर है नदियों को सुरंगों से पाटने का. उत्तराँचल में फैल रहे प्रदुषण की वजह से प्रशाशन ने गौमुख तक यात्रियों के जाने पर रोक लगा दी है. गोमुख सिकुरता जा रहा है। गौमुख नहीं होगा तो गंगा को बचाना मुश्किल होगा. अब जिनको गौमुख तक जाना है उनके लिए परमिट बनाना अनिवार्य कर दिया गया है.
आम लोगों को तो रोक दिया गया लेकिन जिन परियोजनाओं की वजह से पहाड़ की सबसे ज्यादा ऐसी-तैसी हुई है कोई उन परियोजनाओं पर प्रतिबन्ध लगाने की बात क्यों नहीं सोचता?
आम लोगों को तो रोक दिया गया लेकिन जिन परियोजनाओं की वजह से पहाड़ की सबसे ज्यादा ऐसी-तैसी हुई है कोई उन परियोजनाओं पर प्रतिबन्ध लगाने की बात क्यों नहीं सोचता?
रविवार, 27 जुलाई 2008
अश्लील सी डी का खुला बाजार
दिल्ली के पालिका बाजार से अहमदाबाद तक हर जगह छुप-छूपा कर अश्लील सीडियों का बाजार फल-फूल रहा है। बीच में ऐसे बाजारों में छापे मारकर पुलिस हजार- दो हजार सीडियां जप्त कर समाज को अपनी उपस्थिति का अहसास भी दिलाती है. लेकिन कोलकाता पुलिस उदारता के मामले में देश भर की पुलिस से दो कदम आगे है. तभी तो दूकानदार बंधुओं को यहाँ इस तरह की सी डी छूपा कर नहीं बेचनी पड़ती. आप ग्राहक हैं और वे दूकानदार, अपने मतलब की चीज लीजिए और दाम दीजिए - चलते बनिए.
:-यह तस्वीरें कोलकाता के सीआलदह रेलवे स्टेशन परिसर की हैं.
शुक्रवार, 25 जुलाई 2008
मुजफ्फरपुर में सरसों से लहराते बाल
मुजफ्फरपुर रेलवे स्टेशन से छाता चौक वाया नया टोला जाते हुए रास्ते में यह अद्भूत विज्ञापन देखने को मिला. अदभूत इस मायने में की बालों में लगाने के लिए सरसों तेल का यह मेरी जानकारी में पहला विज्ञापन है। और एक बात यह कि इसमें किसी सरसों तेल कंपनी का उल्लेख नहीं है. इसलिए भाव समाजसेवा के लगते हैं. लेकिन जिसने भी इस विज्ञापन की कॉपी लिखी है, उसने थोडी सी असावधानी की जिस वजह से उसका संदेश सही - सही संप्रेषित नहीं हो पा रहा। 'सरसों से लहराते बाल बिना चिप चिप' के कई अर्थ हो सकते हैं.
वैसे मुजफ्फरपुर में इस संबंध में मैंने कई लोगों से बातचीत की। और उन्हें अर्थ समझने में कोई कठिनाई नहीं आई, अच्छी बात है। जिनके लिए विज्ञापन तैयार किया गया है वे इसे समझ पा रहे हैं.
वैसे मुजफ्फरपुर में इस संबंध में मैंने कई लोगों से बातचीत की। और उन्हें अर्थ समझने में कोई कठिनाई नहीं आई, अच्छी बात है। जिनके लिए विज्ञापन तैयार किया गया है वे इसे समझ पा रहे हैं.
गुरुवार, 24 जुलाई 2008
देश के प्रथम राष्ट्रपति की जन्मकुंडली
यह जन्मकुंडली देवप्रयाग स्थित चक्रधर जोशी जी के वेद्शाला से उपलब्ध हो पाई। चक्रधर जोशी जी देश के जाने - माने ज्योतिषियों में रहे हैं। आज भी उनके वेद्शाला में सैकडों दुर्लभ पुस्तकों की पांडुलिपियाँ प्रकाशक का इंतजार कर रही हैं।
चक्रधर जी के देहावसान के बाद पांडुलिपियों का साज-संभाल का काम उनके छोटे बेटे प्रभाकर जोशी देख रहे हैं। प्रभाकर जी पेशे से पत्रकार हैं।
गुरुवार, 17 जुलाई 2008
नई टिहरी से एक शुभ समाचार
इस बार एक अच्छी ख़बर नई टिहरी से. उन तमाम बुरी खबरों के बीच जो १९७८ से वहाँ से आ रहीं हैं. यहाँ गौरतलब है कि टिहरी में पहला विस्थापन बाँध की वजह से १९७८ में हुआ था. (पुरानी टिहरी में विस्थापन के बाद ही नई टिहरी का निर्माण हुआ) उसके बाद से यह सिलसिला अब तक कायम है. यह हर युग की कहानी है, गरीबों की आवाज हर समाज, हर सरकार द्वारा दबाई गई है. खैर, बात अच्छी ख़बर की करते हैं. पूरे टिहरी शहर में पौलिथिन के इस्तेमाल पर पाबन्दी लगा दी गई है. उस शहर में आपको किसी चौराहे पर लिखा बोर्ड मिल सकता है. 'यहाँ पौलिथिन का इस्तेमाल दंडनीय अपराध है. इस तरह के प्रयास की सराहना होनी चाहिए. और इसे कोई अन्य शहर भी अपने यहाँ प्रयोग में लाए तो यह एक अच्छा प्रयोग होगा. यदि मेरी सुने तो मैं देशभर में इसके इस्तेमाल के पाबंदी के समर्थकों में हूँ.
सोमवार, 14 जुलाई 2008
मामला लो प्रोफाइल केस का ...
लगभग एक सप्ताह पहले कीर्ति नगर में एक दस वर्षीय बच्चे अफारान की मौत किसी चॅनल के लिए बड़ी ख़बर नहीं बनी. उस बच्चे के साथ दो लोगों ने अप्राकृतिक यौनाचार किया. पत्रकार योगेन्द्र ने यह जानकारी देते हुए बताया, जबरदस्ती किए जाने की वजह से बच्चे की नस भींच गई. जिससे घटनास्थल पर ही बच्चे की मौत हो गई. जिन दो लोगों ने बच्चे के साथ जबरदस्ती की, वे एक फक्ट्री में मजदूरी करते हैं. अफारान के अब्बू भी मजदूर हैं. योगेन्द्र के अनुसार- वह इस स्टोरी को अपने चैनल के लिए करके वापस लौटा. लेकिन स्टोरी नहीं चली. क्योंकि यह लो प्रोफाइल केस था. योगेन्द्र ने बताया, 'मेरे बॉस ने साफ़ शब्दों में कहा- 'इस ख़बर को किसके लिए चलावोगे. यह लो प्रोफाइल केस है. कौन देखेगा इसे. साथ में उन्होंने यह भी कहा, अगर बच्चे के साथ तुम्हारी बहूत सहानुभूति है तो टिकर चलवा दो. और इस संवाद के साथ उस ख़बर का भी अंत हुआ. अर्थात ख़बर रूक गई.
शुक्रवार, 11 जुलाई 2008
एक पूर्व नक्सली के बयान
समर दास पश्चीम बंगाल में नक्सल आन्दोलन के समर्थकों में गिने जाते रहे हैं। लेकिन अब उनका इस व्यवस्था से मोहभंग हो गया है। उनका मानना है, आन्दोलन अपने राह से भटक गया है. वे कहते हैं, अपनी जान बचाने के लिए आप किसी की जान लेते हैं तो इसे दुनिया का कोई न्याय शास्त्र ग़लत नहीं कहेगा. लेकिन आप सिर्फ़ अपना आतंक कायम करने के लिए इस तरह की गतिविधियों को अंजाम देते हैं तो इसे किसी भी तरह से उचित नहीं कहा जा सकता. सिर्फ़ हाथ में हथियार उठा लेने से कोई नक्सली नहीं हो जाता. हथियार तो दुनिया भर के आतंकी संगठनों ने भी उठा रखा है. फ़िर नक्सल आन्दोलन उनसे अलग कैसे है? आज इसी सवाल का जवाब देना इस आन्दोलन के सामने सबसे बड़ी मुश्किल है. और चुनौती भी. वे आजकल विभिन्न सामाजिक संगठनों के साथ मिलकर पश्चीम बंगाल में अलग-अलग मुद्दों पर जागरूकता अभियान चला रहे हैं. सिगूर का नैनों कार प्रोजेक्ट हो या नंदीग्राम का एस ई जेड या फ़िर आमार बंगाली और गोरखाओं के बीच चलने वाला शीत युद्ध. हर विषय पर उनका अपना पक्ष है. वे सेज क्षेत्र में जाने क्र लिए बनने वाले अनुमति पत्र को वीजा और पासपोर्ट की संज्ञा देते हैं. वे कहते हैं, जिन मजदूरों के हक की बात करके बंगाल की सरकार ने इतने दिनों तक शाशन किया, सरकार उन्हीं मजदूरों के हितों को भूल गई. एस ई जेड में किसी प्रकार का लेबर क़ानून नहीं होगा.
उन्होंने कहा - 'आशीष, एक समय बंगाल में मजदूर हड़ताल पर जाते थे, अब परंपरा बदल गई है। अब यहाँ मालिक लोग लॉक आउट करने लगे हैं.'
मैं समझ नहीं पाया यह कहते हुए वे रो रहे थे या हंस रहे थे.
उन्होंने कहा - 'आशीष, एक समय बंगाल में मजदूर हड़ताल पर जाते थे, अब परंपरा बदल गई है। अब यहाँ मालिक लोग लॉक आउट करने लगे हैं.'
मैं समझ नहीं पाया यह कहते हुए वे रो रहे थे या हंस रहे थे.
अदभुत गीता सार (नक्कालों से सावधान)
बुधवार, 9 जुलाई 2008
मसला श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड - चुप क्यों हैं डा. कर्ण सिंह
हुर्रियत कांफ्रेस के कथित उदारवादी अध्यक्ष मीरवायज उमर फारुख ने कहा है कि 'श्राइन बोर्ड को जमीन देकर भारत सरकार कश्मीर में हिन्दू कालोनी बनाकर जनसंख्या अनुपात को बदलना चाहती है।'
यासीन मलिक ने चेतावनी दी कि यदि भूमि हस्तांतरण आदेश वापस नहीं लिया गया तो वह आमरण अनशन शुरू करेंगे।
अलगाववादी नेता अली शाह गीलानी का कहना है कि बोर्ड को ज़मीन देना ग़ैर-कश्मीरी हिंदुओं को घाटी में बसाने की एक साज़िश है ताकि मुस्लिम समुदाय घाटी में अल्पसंख्यक हो जाए।
मुफ्ती मोहम्मद सईद और उनकी पुत्री पीडीपी की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती के अनुसार अमरनाथ यात्रा से कश्मीर में प्रदूषण फैलता है।
पूर्व मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला ने कहा कि उनकी हुकूमत आई तो बोर्ड को दी जाने वाली जमीन वापस ले ली जाएगी।
यासीन मलिक ने चेतावनी दी कि यदि भूमि हस्तांतरण आदेश वापस नहीं लिया गया तो वह आमरण अनशन शुरू करेंगे।
अलगाववादी नेता अली शाह गीलानी का कहना है कि बोर्ड को ज़मीन देना ग़ैर-कश्मीरी हिंदुओं को घाटी में बसाने की एक साज़िश है ताकि मुस्लिम समुदाय घाटी में अल्पसंख्यक हो जाए।
मुफ्ती मोहम्मद सईद और उनकी पुत्री पीडीपी की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती के अनुसार अमरनाथ यात्रा से कश्मीर में प्रदूषण फैलता है।
पूर्व मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला ने कहा कि उनकी हुकूमत आई तो बोर्ड को दी जाने वाली जमीन वापस ले ली जाएगी।
गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर स्थित प्रसिध्द तीर्थस्थल श्री अमरनाथ मंदिर को 40 हेक्टेयर ज़मीन हस्तांतरित करने पर विवाद गहरा रहा है। राज्य सरकार ने कैबिनेट बैठक करके यह जमीन श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड को दी, ताकि वह यात्रियों के लिए मूलभूत सुविधाओं की स्थायी व्यवस्था कर सके। इसके विरोध में अलगाववादी संगठनों द्वारा कश्मीर में हिंसक प्रदर्शनों का सिलसिला जारी है। अंतत: अलगाववादियों की धमकी के आगे गुलाब नबी सरकार ने घुटने टेक दिए। गौरतलब है कि पीडीपी के समर्थन वापस ले लेने से राज्य की कांग्रेस-नीत सरकार भी अल्पमत में आ गई है। हालांकि आवंटित भूमि को राज्य सरकार ने वापस ले लिया है। बोर्ड को दिए गए भूमि आवंटन को रद्द किया जाना अलगाववादियों के सामने सरकार का समर्पण है।
(यहाँ तक की बात मैंने जिन लोगों को श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड का मामला ना पता हो उन्हें विषय वस्तु से अवगत कराने के लिए संजीव भाई के ब्लॉग 'हितचिन्तक' से उधार - साभार भी कह सकते हैं- लिया है।)
(यहाँ तक की बात मैंने जिन लोगों को श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड का मामला ना पता हो उन्हें विषय वस्तु से अवगत कराने के लिए संजीव भाई के ब्लॉग 'हितचिन्तक' से उधार - साभार भी कह सकते हैं- लिया है।)
खैर विषय पर आते हैं।
हर तरफ़ बयानबाजी और आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा है। लेकिन इस मामले में जिसकी राय सबसे अहम मानी जाती वे हैं डा कर्ण सिंह। लेकिन वे खामोश रहे। कुछ भी नहीं बोले। क्या जम्मू में जो चल रहा, उनसे उन्हें तकलीफ नहीं। फ़िर कौन सी मजबूरी है, जिसने उन्हें खामोश रहने पर मजबूर किया है।
कल एक अखबार के प्रतिनिधि के तौर पर उनसे बात करने की कोशिश की थी। उनके सहयोगी मोहन सिंह और गंगाधर शर्मा के संपर्क में सुबह से शाम तक रहा। श्री शर्मा ने थोडी कोशिश भी की, मेरी बात इस मुद्दे पर डा सिंह से हो जाए मगर वे असफल रहे।
इस देश में डा सिंह उन चंद नेताओं में से हैं जिन्हें पार्टी और राजनीति से ऊपर देखा जाता है। लेकिन श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड के मामले में वे पार्टी लाइन से ऊपर नहीं उठ पाए इसीलिए शायद उन्हें खामोशी अख्तियार करनी पड़ी।
याद कीजिए अपनीइसी बेलाग टिप्पणियों की वजह से वे राष्ट्रपति पद की दावेदारी में वामपंथियों की पसंद नहीं बन सके थे।
उन्हें इस विषय पर अपनी बात जरूर जनता के सामने रखनी चाहिए। भारत की आवाम उनका पक्ष जानना चाहती है।
मंगलवार, 8 जुलाई 2008
'मेरी माँ एक वेश्या है'
उस लड़की ने मिलने पर बताया था, उसकी माँ एक वेश्या है। जिससे मेरी मुलाक़ात २० जून २००८ को कोलकाता के एक एन जी ओ के दफ्तर में हुई थी। फ़िर उस १५-१६ वर्षीय बच्ची ने हंसते हुए कहा था, 'कल आप हमारे सांस्कृतिक कार्यक्रम में आएँगे।'
वह यह सब बताते हुए बिल्कुल असहज नहीं थी।
उस ने खुद ही अपनी बात को आगे बढाते हुए बोला, 'कल हम कुछ वेश्याओ के बच्चे मिलकर एक सांस्कृतिक कार्यक्रम कराने वाले हैं।'
उसने यह भी कहा- 'इस कार्यक्रम में हम अपने अधिकार की बात पूछेगे। '
उस बच्ची का उत्साह और साहस दोनों देखने योग्य था।
मुझे असमंजस की स्थिति में देखकर उसने आश्वस्त किया, 'वहाँ देखने वाले सब अच्छे घराने के लोग होंगे। आप चिंता ना कीजिए सिर्फ़ तमाशा करने वाले हमलोग होंगे। '
यह सब कहते हुए उसकी आंखों में पानी उतर आया था, जिसे उसने बड़ी होशियारी के साथ अपने आंखों के कोर पर छूपा लिया था।
उसकी मासूम सी बातचीत में मैं सहभागी नहीं हो पा रहा था। मैं चलने को हुआ, निकलते वक़्त उसने मुझसे सिर्फ़ इतना ही पुछा था, 'अगर मेरा जन्म एक वेश्या के घर में हुआ है तो इसमें मेरा कसूर क्या है?'
'कुछ भी नहीं। '
मेरा जवाब था।
'फ़िर आपका समाज हम बच्चों को सामान्य बच्चों की तरह जीने की इजाजत क्यों नहीं देता। '
इस सवाल का जवाब मैं नहीं दे पाया। आपके पास कोई जवाब हो तो दीजिएगा।
सोमवार, 7 जुलाई 2008
सीहोर एक्सप्रेस की तेज रफ़्तार
मध्य प्रदेश जहाँ की आवाम ने हमेशा अच्छे खिलाड़ियों को आंखों पर बिठाकर रखा। जहाँ की सरकार भी गाँव और छोटे कस्बों से खेल के क्षेत्र में बेहतर करने की सम्भावना वाली प्रतिभाओं को तलाशने के लिए प्रयत्नशील है। जिससे इन खिलाड़ियों की प्रतिभा को योग्य कोच की देखरेख में बेहतर प्रशिक्षण देकर और निखारा जा सके।
इन तमाम तरह के सरकारी-गैरसरकारी प्रयासों की नजर ना जाने कैसे मध्य प्रदेश के 'सीहोर एक्सप्रेस' मुनिस अंसारी पर अब तक नहीं पड़ी। जबकि इस खिलाड़ी की तेज रफ़्तार गेंद की सनसनाहट को सिर्फ़ भोपाल ने नहीं बल्कि 'ऑल इंडिया इस्कोर्पियो स्पीड स्टार कांटेस्ट' के माध्यम से देशभर ने महसूस किया। वह राज्य की राजधानी भोपाल से महज २५-३० किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक छोटे से कस्बे सीहोर से ताल्लुक रखता है। उसने सीहोर की गलियों में बल्ले और गेंद के साथ खेलना उसी तरह शुरू किया जैसे उसके बहूत सारे साथियों ने किया था। हो सकता था वह भी अपने तमाम साथियों की तरह गुमनामी में खो जाता। यदि उसे स्पीड स्टार कोंटेस्ट की जानकारी नहीं मिलती।
सीहोर की गलियों के इस तेज गेंदबाज की गेंद का सामना करने मुम्बई के मैदान में हरभजन सिंह आए। पहली गेंद हरभजन समझ नहीं पाए। दूसरी गेंद ने हरभजन के बल्ले को तोड़ दिया। तीसरी गेंद पर उनके हाथ से बल्ला छिटक कर दूर जा गिरा। औसतन वे १४० किलोमीटर प्रति घंटा की रफ़्तार से वह गेंद फेंक रहा था। उसकी गेंदबाजी की प्रतिभा को देखकर उस समय bharatiy team के कोच ग्रेग चैपल, कप्तान राहुल द्रविड़, वसीम अकरम, किरण मोरे खास प्रभावित हुए थे। बावजूद इसके मध्य प्रदेश की क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड उसे रणजी खेलने लायक भी नहीं समझती।
मुनिस कहता है - 'अगर मेरा कोई गाड फादर होता तो मैं अबतक नेसनल खेल चुका होता।'
मुनिस का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ। उसके पिता मुस्तकीन अंसारी एक दिहाडी मजदूर हैं। परिवार की हालत अच्छी नहीं होने की वजह से वर्ष २००० में मुनिस ने क्रिकेट खेलना छोड़ दिया। ०४ साल उसने 'ऑयल फीड' कंपनी में बतौर सेक्युरिटी गार्ड काम किया। यह मुनिस की जिंदगी का वह वक़्त था। जब दीवान बाग़ क्रिकेट क्लब और क्रिकेट कहीं पीछे छूट गए थे। और वह रोटी कमाने की मशक्कत में जूट गया था। उसका क्रिकेट के साथ रिश्ता ख़त्म ही जाता यदि स्टार ई एस पी एन पर तेज गेंदबाजों की तलाश सम्बन्धी विज्ञापन नहीं आया होता। इस विज्ञापन को देखने के बाद बड़े भाई युनूस अंसारी ने मुनिस को प्रतियोगिता में जाने के लिए प्रेरित किया। ग्वालियर में ४००० गेंदबाजों के बीच पूरे मध्य प्रदेश से इकलौते मुनिस का चयन इस प्रतियोगिता के लिए हुआ।
'ऑल इंडिया स्कोर्पियो स्पीडस्टार कोंटेस्ट ' का प्रसारण चैनल सेवेन पर हुआ। (अब आई बी एन सेवेन) पर हुआ ने किया। यह क्रिकेट प्रेमियों के बीच बेहद लोकप्रिय कार्यक्रम था। तीन साल पहले हुए इस कोंटेस्ट के बाद सीहोर एक्सप्रेस मुनिस का नाम मध्य प्रदेश के क्रिकेट प्रेमियों की जुबान पर छा गया, बस इस नाम को प्रदेश रणजी समिती की चयन समिति नहीं सून पाई। वरना बात आश्वासन तक ना रूकती। मुनिस का चयन भी किया जाता।
खेलने की उम्र निश्चित होती है, अपनी युवा अवस्था में एक खिलाड़ी अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन दे सकता है। ऐसे में मुनिस जैसे अच्छे खिलाड़ी की उपेक्षा करके हम अपनी क्रिकेट टीम को ही कमजोड बना रहे हैं।
इन तमाम तरह के सरकारी-गैरसरकारी प्रयासों की नजर ना जाने कैसे मध्य प्रदेश के 'सीहोर एक्सप्रेस' मुनिस अंसारी पर अब तक नहीं पड़ी। जबकि इस खिलाड़ी की तेज रफ़्तार गेंद की सनसनाहट को सिर्फ़ भोपाल ने नहीं बल्कि 'ऑल इंडिया इस्कोर्पियो स्पीड स्टार कांटेस्ट' के माध्यम से देशभर ने महसूस किया। वह राज्य की राजधानी भोपाल से महज २५-३० किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक छोटे से कस्बे सीहोर से ताल्लुक रखता है। उसने सीहोर की गलियों में बल्ले और गेंद के साथ खेलना उसी तरह शुरू किया जैसे उसके बहूत सारे साथियों ने किया था। हो सकता था वह भी अपने तमाम साथियों की तरह गुमनामी में खो जाता। यदि उसे स्पीड स्टार कोंटेस्ट की जानकारी नहीं मिलती।
सीहोर की गलियों के इस तेज गेंदबाज की गेंद का सामना करने मुम्बई के मैदान में हरभजन सिंह आए। पहली गेंद हरभजन समझ नहीं पाए। दूसरी गेंद ने हरभजन के बल्ले को तोड़ दिया। तीसरी गेंद पर उनके हाथ से बल्ला छिटक कर दूर जा गिरा। औसतन वे १४० किलोमीटर प्रति घंटा की रफ़्तार से वह गेंद फेंक रहा था। उसकी गेंदबाजी की प्रतिभा को देखकर उस समय bharatiy team के कोच ग्रेग चैपल, कप्तान राहुल द्रविड़, वसीम अकरम, किरण मोरे खास प्रभावित हुए थे। बावजूद इसके मध्य प्रदेश की क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड उसे रणजी खेलने लायक भी नहीं समझती।
मुनिस कहता है - 'अगर मेरा कोई गाड फादर होता तो मैं अबतक नेसनल खेल चुका होता।'
मुनिस का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ। उसके पिता मुस्तकीन अंसारी एक दिहाडी मजदूर हैं। परिवार की हालत अच्छी नहीं होने की वजह से वर्ष २००० में मुनिस ने क्रिकेट खेलना छोड़ दिया। ०४ साल उसने 'ऑयल फीड' कंपनी में बतौर सेक्युरिटी गार्ड काम किया। यह मुनिस की जिंदगी का वह वक़्त था। जब दीवान बाग़ क्रिकेट क्लब और क्रिकेट कहीं पीछे छूट गए थे। और वह रोटी कमाने की मशक्कत में जूट गया था। उसका क्रिकेट के साथ रिश्ता ख़त्म ही जाता यदि स्टार ई एस पी एन पर तेज गेंदबाजों की तलाश सम्बन्धी विज्ञापन नहीं आया होता। इस विज्ञापन को देखने के बाद बड़े भाई युनूस अंसारी ने मुनिस को प्रतियोगिता में जाने के लिए प्रेरित किया। ग्वालियर में ४००० गेंदबाजों के बीच पूरे मध्य प्रदेश से इकलौते मुनिस का चयन इस प्रतियोगिता के लिए हुआ।
'ऑल इंडिया स्कोर्पियो स्पीडस्टार कोंटेस्ट ' का प्रसारण चैनल सेवेन पर हुआ। (अब आई बी एन सेवेन) पर हुआ ने किया। यह क्रिकेट प्रेमियों के बीच बेहद लोकप्रिय कार्यक्रम था। तीन साल पहले हुए इस कोंटेस्ट के बाद सीहोर एक्सप्रेस मुनिस का नाम मध्य प्रदेश के क्रिकेट प्रेमियों की जुबान पर छा गया, बस इस नाम को प्रदेश रणजी समिती की चयन समिति नहीं सून पाई। वरना बात आश्वासन तक ना रूकती। मुनिस का चयन भी किया जाता।
खेलने की उम्र निश्चित होती है, अपनी युवा अवस्था में एक खिलाड़ी अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन दे सकता है। ऐसे में मुनिस जैसे अच्छे खिलाड़ी की उपेक्षा करके हम अपनी क्रिकेट टीम को ही कमजोड बना रहे हैं।
रविवार, 6 जुलाई 2008
दुनिया का नंबर वन अखबार
गुरुवार, 3 जुलाई 2008
उत्पाती दिमाग की खुराफात
बुधवार, 2 जुलाई 2008
जीत कर भी हार गई मीनू
आज के दौर में जब हर तरफ़ इंडियन आयडल, लाफ्टर और अच्छे चेहरों की तलाश है। ऐसे में गरीब बच्चों के लिए काम करने वाली संस्था 'चेतना' ने 'श्यामक डावर इन्स्टिट्यूट फार परफोर्मिंग आर्ट्स' के साथ मिलकर 'छूपे रुस्तम' नाम के कारनामे को अंजाम दिया। इन्होने छूपे रुस्तम कार्यक्रम के माध्यम से उन प्रतिभाशाली बच्चों को तलाशने का प्रयास किया जो झुग्गी बस्तियों में रहते हैं। गलियों में आवारागर्दी करते हैं। या फ़िर किसी मालिक की दूकान पर काम करते हैं। भीख मांगते हैं या मजदूरी करते हैं।
इस कार्यक्रम में २५ गैर सरकारी संस्थाओं के माध्यम से लगभग ४०० बच्चों ने भाग लिया। इस कार्यक्रम में लड़कियों के ग्रुप में 'सोशल एक्शन फॉर ट्रेनिंग' की तरफ़ से आई मीनू को प्रथम स्थान मिला। वह अली गाँव के पास गौतम पूरी की झुग्गियों में रहती है। दूसरे के घरों में चूल्हे चौका का काम करती है। वह बड़ी होकर एक डांसर बनाना चाहती है।
यह रिपोर्ट मैंने लगभग एक साल पहले मीनू के लिए लिखी थी। कल चेतना के संजय गुप्ता से बात हुई, तो मीनू का हाल पुछा उन्होंने बड़े बूझे हुए मन से कहा 'मीनू नहीं गई क्योंकि उसके परिवार वाले तैयार नहीं हुए। वह चाहते कि वह डांस में अपना कैरियर बनाए। '
'क्यों? इसमें बुराई क्या है? '
मैं समझ नहीं पाया इतना अच्छा अवसर कोई कैसे छोड़ सकता है।
संजय भाई का जवाब था,
'उन्होंने कहा लड़की है कहाँ जाएगी।'
आज के समय में भी इस तरह की घटनाएं दिल्ली जैसे शहरों में हो रही है, क्या आपको कुछ कहना है।
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