आज घूमते हुए अफरोज के ओर्कूट प्रोफाइल http://www.orkut.co.in/Main#Scrapbook.aspx?uid=6046693440171440247) पर चला गया. अफरोज लीक से हटकर नाम से एक पत्र भी निकलते हैं. जितना मैं उसे समझ पाया हूँ, उसके पास एक अच्छी समझ है और तमाम मुद्दों पर अपना एक स्पष्ट स्टैंड. जो मुझे अधिक पसंद है. ओर्कूट में जो पढने को मिला-मुझे लगता है -वह अधिक लोगों तक जाना चाहिए. आप इसे पढ़ने के बाद शायद स्पष्ट और निडर अफरोज की उलझन को समझने का प्रयास करेंगे। यही उम्मीद करता हूँ.
सैकडो-हजारों लोग सडको पर जगह-जगह तरह-तरह की बातें कर रहे हैं....पुलिस ने कुरान की बेहुरमती की है.... पुलिस ने जान बुझ कर ऐसा किया होगा........ मेरा ख्याल है की अनजाने में हो गया है ..... सब सरकार करा रही है...... हाँ! तुम सही कह रहे हो, इलेक्शन नजदीक आ रहे हैं.....ये लो नमक! हिम्मत हारने की ज़रूरत नहीं है......लोग पागल हो रहे हैं..... खामोशी के साथ मामले को हल कर लेना चाहिए......
तभी देखता हूँ कुछ लोग एक ज़ख्मी नौजवान को एक ठेले पर भीड़ की तरफ ला रहे हैं. इसे तुंरत नजदीक के एक डिस्पेंसरी में भारती कराया जाता है. लोगों की भीड़ उग्र हो चुकी थी. एक पुलिस वाले को पीट-पीट कर अधमरा कर दिया. इलाके के तीनो थाने आग के हवाले थे.
हालात इतने गंभीर हो चुके थे की कुछ कहा नहीं जा सकता. बी.बी.सी. के पत्रकार मित्र (जो उस समय मेरे साथ ही थे) ने कहा की- आप अपना हैंडीकैम ले आओ. फिर मई एक पत्रकार मित्र के साथ हैंडीकैम ले कर हाज़िर हो गया. तब तक खबर आई की तीन और लोगों को गोली लगी है, उन्हें पास के होली फैमली हॉस्पिटल में भारती कराया गया है. खैर मई रिकॉर्डिंग करने लगा. मेरे यहाँ का हर शॉट बहुत खास था. कैमरा देख कर लोगों में और जोश भर आया. एक बार फिर नारे लगने लगे थे.
तभी अचानक सैकडो लोगों की भीड़ हमारे तरफ बढ़ने लगी. ..... इससे पहले मुझे दूसरी दुनिया में पहुंचा दिया जाता की कुछ लोग मेरी हिफाज़त में खड़े हो गए. दरअसल, ये मेरे अल्लाह के फ़रिश्ते थे. खुद पीटते रहे, लेकिन मुझे एक खरोंच तक नहीं आने दिया. उधर लोग कुछ ज्यादा ही उग्र हो चुके थे. मारो...... मारो...... जासूस है...... मीडिया का आदमी है...... नहीं! नहीं! पुलिस का आदमी है....... अरे नहीं यार! ये अपना लड़का है..... अरे अपना भाई है.....अरे यहीं रहता है.......नहीं! मारो साले को..... कैमरा छीन लो...... तोड़ दो साले को.... अरे पागल हो गए हो क्या....... ये अपना बच्चा है..... जाओ अपना काम करो...अरे ऐसे कैसे छोड़ दे साले को..... हमारी तस्वीरें ले रहा था हरामी......
मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था की मैं क्या करूँ.?मेरे पैरों टेल की ज़मीं खिसक चुकी थी. दिल की धड़कने अपने-आप रुकने लगी थी. मैं समझ चूका था की आज मई बचने वाला नहीं.... तरह-तरह के ख्याल दिमाग में आ रहे थे....... या तो मैं बचूंगा या अपने कैमरे की कुर्बानी देनी होगी. फिर अचानक मैं ने अंतिम हथकंडे के रूप अपने कैमरे से कैसेट निकाल कर उनके हवाले कर दिया. जिसका उन्होंने एक-एक एटम अलग कर दिया होगा. फिर सैकडो लोग अपनी सुरक्षा में मुझे मेरे घर सही-सलामत पहुंचा दिया. मैंने खुदा का शुक्रिया अदा किया.
मेरे मोबाइल की घंटी के बजने का एक ऐसा सिलसिला शुरू हुआ,जो छोटे बच्चे की तरह चुप होने का नाम ही नहीं ले रही है. क्या हो रहा है....... हालात कैसे हैं...... ये सुनने में आ रहा है....... वो सुनने में आ रहा है..... अफवाहों का बाज़ार गरम है...... एक टेलीविजन चैनल वाले का कैमरा छीन लिया गया है......एक रिपोर्टर को लोगों ने मार दिया...... पुलिस ने मीडिया को भगा दिया....... तुम कैसे हो...... ज्यादा काबिल मत बनो....... चुपचाप कल की ट्रेन से वापस घर आ जाओ......ज्यादा हीरो बनने की ज़रूरत नहीं है.......
बाहर अभी भी भागो.... भागो....ठहरो....ठहरो....., नारे-तकबीर की सदा बुलंद हो रही थी. पुलिस भीड़ पर काबू पाने में कामयाब हो गयी. सैकडों लोगों को गिरफ्तार किया जा चूका था. जिन में अभी कुछ की तादाद में लोग जेलों में सड़ रहे हैं. हो सकता है की शायद वो निर्दोष हो..... खैर, बतला हाउस का नया मामला अब सामने है. इसलिए पुराणी कहानी को भूल जाने में ही भलाई है.
सोमवार, 26 जनवरी 2009
शनिवार, 24 जनवरी 2009
मीडिया स्कैन चर्चा में
ब्रजेश भाई का यह लेख दीवान पर मिला. ब्रजेश भाई का परिचय उन्हीं के शब्दों में 'गंगा के दोआब से यमुना के तट पर आना हुआ। दिल्ली विश्वविद्यालय के किरोड़ीमल कालेज में यूं ही वक्त निकल गया। कैंपस के अंग्रेजिदां माहौल में हिन्दी की तरह दिन बीता। पर अब खबरनवीशों की दुनिया ही अपनी दुनिया है।' यहाँ प्रस्तुत है उनका लिखा :
'मीडिया स्कैन' चार पन्नों का मासिक अखबार है। यह छात्रों के बीच खूब चर्चा में है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाइये कि अभी इसकी पीडीएफ फाइल ही पाठकों तक पहुंची है और वे लोग इसपर अपनी प्रतिक्रिया दे रहे हैं। अखबार को कुछ हदतोड़ी पत्रकार बड़ी मेहनत से निकाल रहे हैं। उनसे अपनी भी खूब बनती है। लेकिन वे लोग इस बिनाह पर अखबार में जगह नहीं देते। खैर! इस पर शिकायत फिर कभी। नया अंक ब्लाग के तानेबाने पर आया है। पर अखबार से संपादकीय गायब है। अखबार के संपादक महोदय ने बताया कि ब्लाग की दुनिया से उनका खास परिचय नहीं है। इसलिए वे इस बाबत कुछ वजनी बात करने में असमर्थ थे। इसलिए उन्होंने कुछ भी नहीं लिखा। हालांकि उन्हें हिंदी-ब्लाग के वजन का अनुभव अखबार की पीडीएफ फाइल भेजने के चंद घंटों बाद ही हो गया, जब उन्हें यह तीखी प्रतिक्रिया सुनने को मिली की फलां व्यक्ति पहले पेज पर है.... तो फलां क्यों नहीं। इस पंक्ति के लेखक को भी कुछ लोगों ने फोन कर बताया कि मीडिया स्कैन का ब्लाग अंक आया है। इसे जरूर पढ़ें। यहां सहज ही महसूस होता है कि इसे लेकर कई लोग अपने-अपने तरीके से उत्साहित व नाराज हैं। हालांकि इससे हिंदी ब्लागरों के बीच स्थान को लेकर मची प्रतिस्पर्धा का खूब पता चलता है। वैसे तो हिन्दुस्तानी समाज आज भी प्रिंट का समाज है और यहां प्रकाशित शब्दों पर ज्यादा यकीन किया जाता है। यदि प्रकाशकों का अधिपत्य कम करना है तो ब्लागरों कोअपने स्थान से ज्यादा विषय व उसकी प्रामाणिकता पर खासा ध्यान देना होगा। मीडिया स्कैन को पढ़कर लगा कि ब्लागर्स लुत्फ उठाते हुए ही सही पर गंभीर काम कर रहे हैं।
'मीडिया स्कैन' चार पन्नों का मासिक अखबार है। यह छात्रों के बीच खूब चर्चा में है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाइये कि अभी इसकी पीडीएफ फाइल ही पाठकों तक पहुंची है और वे लोग इसपर अपनी प्रतिक्रिया दे रहे हैं। अखबार को कुछ हदतोड़ी पत्रकार बड़ी मेहनत से निकाल रहे हैं। उनसे अपनी भी खूब बनती है। लेकिन वे लोग इस बिनाह पर अखबार में जगह नहीं देते। खैर! इस पर शिकायत फिर कभी। नया अंक ब्लाग के तानेबाने पर आया है। पर अखबार से संपादकीय गायब है। अखबार के संपादक महोदय ने बताया कि ब्लाग की दुनिया से उनका खास परिचय नहीं है। इसलिए वे इस बाबत कुछ वजनी बात करने में असमर्थ थे। इसलिए उन्होंने कुछ भी नहीं लिखा। हालांकि उन्हें हिंदी-ब्लाग के वजन का अनुभव अखबार की पीडीएफ फाइल भेजने के चंद घंटों बाद ही हो गया, जब उन्हें यह तीखी प्रतिक्रिया सुनने को मिली की फलां व्यक्ति पहले पेज पर है.... तो फलां क्यों नहीं। इस पंक्ति के लेखक को भी कुछ लोगों ने फोन कर बताया कि मीडिया स्कैन का ब्लाग अंक आया है। इसे जरूर पढ़ें। यहां सहज ही महसूस होता है कि इसे लेकर कई लोग अपने-अपने तरीके से उत्साहित व नाराज हैं। हालांकि इससे हिंदी ब्लागरों के बीच स्थान को लेकर मची प्रतिस्पर्धा का खूब पता चलता है। वैसे तो हिन्दुस्तानी समाज आज भी प्रिंट का समाज है और यहां प्रकाशित शब्दों पर ज्यादा यकीन किया जाता है। यदि प्रकाशकों का अधिपत्य कम करना है तो ब्लागरों कोअपने स्थान से ज्यादा विषय व उसकी प्रामाणिकता पर खासा ध्यान देना होगा। मीडिया स्कैन को पढ़कर लगा कि ब्लागर्स लुत्फ उठाते हुए ही सही पर गंभीर काम कर रहे हैं।
गुरुवार, 22 जनवरी 2009
गाहे-बगाहे यह क्या लिख दिया विनीत भाई
कल ही गुवाहाटी से लौटा हूँ, आते ही विनीत भाई के ब्लॉग पर सद्य प्रकाशित पोस्ट 'वो कैंची गिरीन्द्र की नहीं थी' पढने को मिली. पढ़ने के बाद तकलीफ हुई चूकि यह सब जिसने लिखा है, वह विनीत कुमार हैं. जिनकी बातों को कम से कम मैं कभी हल्के में नहीं लेता. वह कैसे इस तरह की हल्की बात लिख सकते हैं. वे 'मीडिया स्कैन' की पूरी टीम को जानते हैं. बहरहाल उन्होंने जो लिखा है वह सार्वजनिक है. आज उनका फोन (09811853307) ना मिलने की वजह से एक मेल उन्हें भेजा है. मेल की एक कॉपी आप ब्लॉग पाठकों के लिय - हमारा पक्ष भी तो पूछा होता - विनीत भाई, आप उन सब लोगों से परिचित हैं जो मीडिया स्कैन टीम के साथ जुड़े हुए हैं। उसके बाद भी आप इस तरह का कोई लेख कैसे लिख सकते हैं? लिखने से पहले कम से कम एक बार बात तो करते। संपादन के मामले में उलट हुआ। यहाँ जो संपादन है वह पूरी तरह से गिरीन्द्र की देखरेख में हुआ है। वह क़यामत की रात (जिस रात को 'मीडिया स्कैन' ने अन्तिम रूप प्राप्त किया ) , अंक के साथ थे. लेख जुटाने में उनके कहने पर जो मदद बन पाई हमने की. लेकिन वह लेख भी लाकर गिरीन्द्र के झोले में ही डाला गया. ( आपने लिखा है - अतिथि संपादक होने के नाते गिरीन्द्र ने अपनी तरफ से लोगों को लिखने के लिए कहा। लोगों ने उसके कहने पर लिखा भी। बाद में उसने एरेंज करके मीडिया स्कैन के लिए स्थायी रुप से काम करनेवालों को सौंप दिया।) अपने मन की लिखने से पहले विनीत भाई आप एक बार बतिया लेते - मुझसे बतियाने में हर्ज था तो तनिक गिरिन्द्र (09868086126) का नंबर ही मिला लेते तो अच्छा होता.
शनिवार, 10 जनवरी 2009
सहयोग की दरकार
अरविन्द सिंह सिकरवाल यूथ फार इक्वालिटी के मध्य प्रदेश के प्रदेश समन्वयक हैं. कल उनका एक मेल मिला. मेल शब्दश आपके सामने रख रहे हैं.. आगे आप ब्लॉग पाठकों की प्रतिक्रया सर आंखों पर ...
वन्दे मातरम मेरे प्रिय हिन्दुस्तानी साथी आज हिंदुस्तान जिन समस्याओं का शिकार है. उनमें जो अहम् और मुख्य समस्या है वो है कि हम अपनी सुरक्षा भी नहीं कर पा रहे हैं आज देखा जाये तो देश में उस वक्त बात चली है सुरक्षा की जब हम पर इतने हमले हो चुके हैं और हम त्रस्त हो गए हैं. चाहे मुंबई में हमला हो ,लोकल ट्रेन के अन्दर मुंबई मैं ही ब्लास्ट हुए हों, संसद पर हमला, वाराणसी ,बंगलोर, अहमदाबाद, जयपुर, दिल्ली, असम में हुए बम ब्लास्ट हों. हमारी सरकार और हमारी सुरक्षा एजेंसियां अपरधियों का क्या कर पाए? सिर्फ कोरी बयान बाजी? आज अगर देखा जाये तो मुंबई हमले से आतंक वाद का मुद्दा तो गरम है इसलिए मीडिया का और हमारा सभी का ध्यान उस ओर है मगर क्या इससे पहले हमले नहीं हुए?क्या हम तब सो रहे थे? आज देश कि सुरक्षा खतरे में हैं हमारी इज्जत खतरे मैं है.........आज देश में हमारी सुरक्षा को लेकर हमारे राजनीतिज्ञ भी चिंतित नहीं हैं. १३ दिसम्बर को संसद हमले कि बरसी पर शहीदों को श्रधांजलि देने मात्र १५ सांसद पहुंचे ......क्या अब आप उम्मीद करते हैं कि ये राजनीतिज्ञ आपकी सुरक्षा कर पाएंगे? अगर नहीं तो क्यों ?प्रिय सथियों हम एक जन आंदोलन करना चाहते हैं .........जिसमें जन चेतना लाकर लोगों को आतंक वाद के ख़िलाफ़ और हमारे इस सुस्त व्यवस्था को सुधरने की मांग कि जायेगी VANDE MATRAM आन्दोलन के मुख्य बिंदु राष्ट्र कि सुरक्षा समस्याएं -------१ आतंकवाद (इसके बारे मैं आप सभी जानते हैं ) २. नक्सलवाद (भारत के २५० जिलों मैं बुरी तरह हावी )३.घुसपैठ ( खुली सीमओं से ) जो कि आतंक वाद का ही रूप है ४ .तस्करी (हथियारों नशीले पदार्थ )५.क्षेत्रवाद (महाराष्ट्र राज ठाकरे ) ६.अलगाववाद (जम्मू कश्मीर मैं )७.नकली नोटों का ISI द्वारा भारतीय अर्थ व्यवस्था को चौपट करना इन सभी मुद्दों पर हम जन समुदाय मैं जाकर जागरूकता लाने हेतु एक विशाल आन्दोलन जो कि राष्ट्रिय स्तर का होगा ;;;;;;;;;;;; वन्दे मतरम हमे इस बात का हर्ष है कि आप भी राष्ट्र हित मैं सोचते हैं हमारा आन्दोलन जनवरी माह मैं प्रस्तावित है प्रिय हमें इस आन्दोलन के लिए आपसे सहयोग चाहिए आपसे सहयोग कि आशा कि साथ आपका अरविन्द सिंह सिकरवार (प्रदेश समन्वयक )यूथ फॉर एकुँलिटी मध्य प्रदेश MOB.09425783165,९३०१११८२८८ vande_matram_arvind@yahoo.co.in vande.matram.arvind@gmail.कॉम
वन्दे मातरम मेरे प्रिय हिन्दुस्तानी साथी आज हिंदुस्तान जिन समस्याओं का शिकार है. उनमें जो अहम् और मुख्य समस्या है वो है कि हम अपनी सुरक्षा भी नहीं कर पा रहे हैं आज देखा जाये तो देश में उस वक्त बात चली है सुरक्षा की जब हम पर इतने हमले हो चुके हैं और हम त्रस्त हो गए हैं. चाहे मुंबई में हमला हो ,लोकल ट्रेन के अन्दर मुंबई मैं ही ब्लास्ट हुए हों, संसद पर हमला, वाराणसी ,बंगलोर, अहमदाबाद, जयपुर, दिल्ली, असम में हुए बम ब्लास्ट हों. हमारी सरकार और हमारी सुरक्षा एजेंसियां अपरधियों का क्या कर पाए? सिर्फ कोरी बयान बाजी? आज अगर देखा जाये तो मुंबई हमले से आतंक वाद का मुद्दा तो गरम है इसलिए मीडिया का और हमारा सभी का ध्यान उस ओर है मगर क्या इससे पहले हमले नहीं हुए?क्या हम तब सो रहे थे? आज देश कि सुरक्षा खतरे में हैं हमारी इज्जत खतरे मैं है.........आज देश में हमारी सुरक्षा को लेकर हमारे राजनीतिज्ञ भी चिंतित नहीं हैं. १३ दिसम्बर को संसद हमले कि बरसी पर शहीदों को श्रधांजलि देने मात्र १५ सांसद पहुंचे ......क्या अब आप उम्मीद करते हैं कि ये राजनीतिज्ञ आपकी सुरक्षा कर पाएंगे? अगर नहीं तो क्यों ?प्रिय सथियों हम एक जन आंदोलन करना चाहते हैं .........जिसमें जन चेतना लाकर लोगों को आतंक वाद के ख़िलाफ़ और हमारे इस सुस्त व्यवस्था को सुधरने की मांग कि जायेगी VANDE MATRAM आन्दोलन के मुख्य बिंदु राष्ट्र कि सुरक्षा समस्याएं -------१ आतंकवाद (इसके बारे मैं आप सभी जानते हैं ) २. नक्सलवाद (भारत के २५० जिलों मैं बुरी तरह हावी )३.घुसपैठ ( खुली सीमओं से ) जो कि आतंक वाद का ही रूप है ४ .तस्करी (हथियारों नशीले पदार्थ )५.क्षेत्रवाद (महाराष्ट्र राज ठाकरे ) ६.अलगाववाद (जम्मू कश्मीर मैं )७.नकली नोटों का ISI द्वारा भारतीय अर्थ व्यवस्था को चौपट करना इन सभी मुद्दों पर हम जन समुदाय मैं जाकर जागरूकता लाने हेतु एक विशाल आन्दोलन जो कि राष्ट्रिय स्तर का होगा ;;;;;;;;;;;; वन्दे मतरम हमे इस बात का हर्ष है कि आप भी राष्ट्र हित मैं सोचते हैं हमारा आन्दोलन जनवरी माह मैं प्रस्तावित है प्रिय हमें इस आन्दोलन के लिए आपसे सहयोग चाहिए आपसे सहयोग कि आशा कि साथ आपका अरविन्द सिंह सिकरवार (प्रदेश समन्वयक )यूथ फॉर एकुँलिटी मध्य प्रदेश MOB.09425783165,९३०१११८२८८ vande_matram_arvind@yahoo.co.in vande.matram.arvind@gmail.कॉम
मंगलवार, 6 जनवरी 2009
'मीडिया स्कैन' का ब्लॉग अंक
(यह 'मीडिया स्कैन' के एक पुराने अंक की तस्वीर है)
'मीडिया स्कैन' का जनवरी अंक 'ब्लॉग स्पेशल' है।
साक्षात्कार : अविनाश, रविश कुमार
आलेख: अनिल पुसदकर, संजय तिवारी, अविनाश वाचस्पति, संजीव कुमार सिन्हा, राकेश कुमार सिंह, विनीत कुमार
दस्तावेज: नारद कथा (लेखक - जीतेन्द्र जी) (इस अंक का संपादन गिरीन्द्र नाथ (०९८६८०८६१२६) ने किया है।) हिमांशु शेखर (संपादक - मीडिया स्कैन) - (०९८९१३२३३८७)
आप चाहें तो अंक के सम्बन्ध में इनसे बात भी कर सकते हैं। उम्मीद है ब्लॉग बंधू -बांधव इस अंक को सराहेंगे।
सोमवार, 5 जनवरी 2009
बुद्ध की नगरी - कृपया सख्ती
शनिवार, 3 जनवरी 2009
अपराधियों के राज्य दिल्ली में आपका स्वागत है
आजकल दिल्ली की सड़कों पर 'यूथ पर इक्वालिटी' का यह पोस्टर लगा हुआ है. यह तस्वीर जितेन जैन नामक किसी सज्जन द्वारा भेजे गए मेल से साभार है. यदि आप में से कोई ब्लोगर इस पोस्टर के सम्बन्ध में कोई सफाई चाहता हो तो इन में से किसी नंबर पर संपर्क कर सकता है.९८६८०३९३९८, ९८६८३४०४२०, ९८६८३८६४५४ वैसे यहाँ यह महत्वपूर्ण नहीं है कि 'यूथ फॉर इक्वालिटी' क्या कहती है. यहाँ महत्वपूर्ण यह है कि आप इस विषय पर क्या सोच रखते हैं?
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