रविवार, 8 नवंबर 2015

जीता महागठबंधन - क्यों ‘हारा’ बिहार

सीता की जन्मभूमि ये बिहार, गांधी की कर्मभूमि ये बिहार, 
सम्राट अशोक की शक्तिभूमि-धर्मभूमि ये बिहार-ये बिहार।
वाल्मिकी ने रची रामायण, लव कूश को जाने संसार
ये है मेरा बिहार हां ये मेरा बिहार

ई टीवी के दर्शक इस बिहार गीत से जरूर परिचित होंगे। यह गीत किसी भी बिहारी को गौरवान्वित करता है। लेकिन क्या 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव के जो परिणाम आए हैं, उसके बाद ऐसा नहीं लग रहा है कि यह जीत महागठबंधन की है लेकिन बिहार हार गया।
लालू प्रसाद के जंगलराज की वजह से ही बिहार से पलायन बढ़ा। बिहारी संबोधन को गाली बना देना लालूराज की एक बड़ी देन है बिहार को। उसी जंगलराज के खिलाफ नीतीश कुमार को बिहार की जनता ने चुना। उनके काम काज की वजह से ही उन्हें पूरे देश ने सुशासन बाबू के तौर पर स्वीकार किया। लेकिन यह कॉकटेल किसकी समझ में आ सकता था कि सुशासन बाबू और जंगलराज के मुखिया सत्ता के लिए मिल सकते हैं। यह राजनीति है यहां ना कोई परमानेन्ट दुश्मन है और ना दोस्त। यदि कल को नीतीश और भारतीय जनता पार्टी फिर मिल जाएं तो आश्चर्य ना कीजिएगा। 
वास्तव में यह सब इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि बिहार में नई सरकार की जीत को सभी सेलीब्रेट कर रहे हैं। ऐसे समय में हमें बिहार की हुई हार को नहीं भूलना चाहिए। इस चुनाव के बाद बीजेपी गठबंधन की जीत भी होती तो भी बिहार की हार होती। 
यह पूरा चुनाव लड़ा किन मुद्दों पर गया है? गाय, अखलाक जैसे मुद्दे। शिक्षा, रोजगार, सुरक्षा जैसे मुद्दों की मानों किसी को सुध ही नहीं थी। भारतीय जनता पार्टी को यह नहीं भूलना चाहिए कि साम्प्रदायिक ध्रूवीकरण के मास्टर इस देश में धर्म निरपेक्षता के पैरोकार हैं। उन्होंने पिछले साठ से अधिक सालों में देश में हिन्दू विरोधी माहौल ही बनाया है। तस्लीमा भी कहती है कि भारत में धर्म निरपेक्षता का अर्थ मुस्लिम तुष्टीकरण है। देश में सरकार किसी भी पार्टी की बनती हो, ध्रूव दो ही हैं। एक भारतीय जनता पार्टी और दूसरी भारतीय जनता पार्टी विरोधी। यह स्थिति उस समय भी थी जब पार्टी के खाते में गिनती के सांसद होते थे। 
नरेन्द्र मोदी की जीत की बड़ी वजह 2014 में यही थी कि उन्होंने धर्म और जाति को चुनाव का मुद्दा नहीं बनने दिया। बिहार चुनाव में अखलाक की मौत और असहिष्णुता के नाम पर जो माहौल देश में बनाया गया और उससे जिस तरह महागठबंधन को फायदा मिला, उससे संदेह यही होता है कि कथित हिन्दू संगठन को पैसे देकर खड़ा तो नहीं किया गया था। पैसों के दम पर यह कर पाना बहुत मुश्किल काम नहीं है आज के समय में।
जगत झा ने सही लिखा है बिहार के चुनाव का विश्लेषण करते हुए कि भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय नेता नरेन्द्र मोदी के चुनावी सभाओं की तैयारी में लगे रहे। जमीनी कार्यकर्ताओं की बात नेतृत्व तक पहुंच ही नहीं पाई। वास्तव में केन्द्रिय नेतृत्व के भरोसे विधायकी का चुनाव नहीं जीता जाता। क्षेत्रीय नेतृत्व को उभरने नहीं दिया गया। 
कहा यह भी जा रहा है कि अमित शाह ने गुजरात के चुनाव की तरह बिहार के चुनाव को लड़ा। चुनाव की नीति में स्थानीय नेताओं से समन्वय पर अध्यक्षजी का प्रबंधन हावी रहा। वास्तव में यह चुनाव अपने रंग रूप से भारतीय जनता पार्टी गठबंधन के राष्ट्रीय नेता बनाम महागठबंधन के क्षेत्रीय नेता हो गया था। अमित शाह बिहार को और बिहार की राजनीति को सही प्रकार से नहीं समझते और लालू प्रसाद-नीतीश कुमार बिहार की राजनीति के पुराने उस्ताद हैं। 
बिहार के स्थानीय नेताओं को हासिए पर डाल कर बिहार फतह कैसे किया जा सकता है? सिन्हा साहब और सिंह साहब की नाराजगी चुनाव प्रचार के दौरान ही मीडिया में आ गई थी। उसके बाद भी इसे गम्भीरता से नही लिया गया। 
बिहार चुनाव 2015 एक ऐसी हारी हुई बाजी बनती गई अन्तिम चरण के चुनाव तक, जिसमें जीत की कोई सूरत नजर नहीं आ रही थी।
वैसे नीतीश-लालू गठबंधन के सामने चुनौतीयां कई है। आने वाले पांच साल आसान नहीं है। खबर यह भी आ रही है कि नीतीश और लालू मिलकर नई पार्टी बनाएंगे। आने वाले सालों में नीतीश केन्द्र की राजनीति के लिए तैयार किए जाएंगे और लालूजी के दोनों लाल बिहार पर राज करने की तैयारी करेंगे।

गुरुवार, 5 नवंबर 2015

किताब वापसी अभियानः ‘विरोध’ के स्वर को कौन दबा रहा है

देश में इस तरह का माहौल बनाने की कोशिश की गई मानो इस वक्त देश में कानून का शासन ना रह गया हो। असहिष्णुता जैसा एक शब्द उन लोगों द्वारा चुन कर लाया गया जो सरकार पर दबाव बनाना चाहते थे। ये सभी वह लोग हैं जो नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पहले ही यह घोषणा कर चुके थे कि यदि नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बनते हैं तो देश की सहिष्णुता खतरे में पड़ जाएगी। उनके इस विरोध को जनता ने अधिक तवज्जो नहीं दिया।
 इस वक्त मीडिया में इन मुट्ठी भर लोगों ने ऐसा माहौल बना दिया है, मानों पूरा देश वास्तव में किसी असहिष्णुता शिकार है। यहां हम उन लेखकों और बुद्धिजीवियों के नाम आपके साथ साझा कर रहे हैं, जो इस बात से सहमत नहीं हैं कि देश में साम्प्रदायिक सद्भाव कम हुआ है। समाज में किसी तरह की दूरी है। आप मित्रो से अपील है कि समाज को तोड़ने वालों के साथ नहीं बल्कि उन लोगों के साथ जुड़िए जो समाज को जोड़ना चाहते हैं। (यहां दिए गए नाम वरियता के क्रम में नहीं हैं) -

01. अनुपम खेर
02. गोपाल दास नीरज,
03. विवेकी राय
04. मनु शर्मा
05. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी
06. डॉ नामवर सिंह
06. नरेन्द्र कोहली
07. गोविन्द मिश्र
08. विनोद शुक्ल
09. चित्रा मुद्गल
10. नरेन्द्र कोहली
11.कमल किशोर गोयनका
12. मृदुला गर्ग
13. तेजेन्द्र शर्मा
14. गिरीश पंकज
15. अशोक चक्रधर
16. सुधीश पचौरी
17. तेजेन्द्र शर्मा
18. आशीष कुमार ‘अंशु’
19. वेद प्रताप वैदिक
20. तवलीन सिंह
21. मनमोहन शर्मा
22. राजीव रंजन प्रसाद
23. डा दिलीप अग्निहोत्री
24. मृत्युंजय दीक्षित
25. डॉ मयंक चतुर्वेदी
26. संदीप देव
27. सुरेश चिपलूनकर
28. डा. अरूण भगत
29. सुधांशु त्रिवेदी
30. संजीव सिन्हा
31.तरुण विजय
32. हितेश शंकर
33. बलबीर पूंज
34. अरुण जेटली
35. अनिल पांडेय
36. चेतन भगत
37. हर्षवर्द्धन त्रिपाठी
38. प्रसून जोशी
39. व्यालोक पाठक
40. शिवानंद द्विवेदी सहर
41. डॉ सौरभ मालवीय
42. हरीश चंद्र वर्णवाल
42. हरगोविंद विश्वकर्मा
43. शिवशक्ति बख्शी
44. आभा खन्ना
45. पवन श्रीवास्तव
46. स्वामी आदित्य चैतन्य
47. अनुज अग्रवाल
48. डॉ प्रवीण तिवारी
49. कुलदीपचंद अग्निहोत्री
50. पश्यंति शुक्ला
51. राजीव सचान
52. प्रभु जोशी
53. डॉ जयकृष्ण गौड़
54. प्रमोद भार्गव
55. संजय द्विवेदी
56. अवधेश कुमार
57. अकांक्षा पारे
58. दिनेश मिश्र
59. संजय बेंगानी
60. आदर्श तिवारी
61. समन्वय नंद
62. पंकज झा
63. अकांक्षा अनन्या
64. अरुण कुमार जैमिनी
65. सुबोध के श्रीवास्तव
66. विक्की सैनी
67. संजीव कुमार
68. सुभाष चंद्र
69. निशांत नवीन
70. सुभाष शुक्ला
71. मनुकांत दीक्षित
72. मदन मोहन समर
73. आलोक राज
74. रामजी बाली
75. डॉ अविनाश सिंह
76. तारिक अनवर
77. नरेश कुमार चतुर्वेदी
78. वीनू कुमार वर्मा
79. प्रदीप अरोड़ा
80. दीपक झा
81. धीरज कुमार झा
82. अभय कुमार गुप्ता
83. कुणाल श्रीवास्तव
84. श्वेतांक रतनाम्बर
85. नागेन्द्र कौशिक
86. विवेक श्रीवास्तव
87. अशोक एस उपध्याय
88. गोपाल कुमार झा
89. विशाल भटनागर
90. सविता राज हिरेमठ
91. पंडित हरी प्रसाद चौरसिया
92. मधुर भंडारकर
93. विवेक अग्निहोत्री
94. विद्या बालन
95. एस एल भयरप्पा
96. श्याम बेनेगल
94 कमल हसन
95. अनूप जलोटा
96. मनिष मुन्द्रा
97. पंडित चेतन जोशी
98. दया प्रकाश सिन्हा
99. नरेश शांडिल्य
100. अमिष त्रिपाठी
101. चिदानंद मूर्ति
102. पाटिल पूतप्पा
103. पी वलसारा
104. यूए खादर
105. पी नारायण कुरुप
106. रवीना टंडन
107. विकास सिन्हा
108. सुदर्शन पटनायक
109. जी माधव नायर
110. हरीश चन्द्र वर्मा
111. प्रियदर्शन
112. अक्कीतम
113. एस रमेशन नायर
114. जी श्रीदत नायर
115. पी परमेश्वरन
116. थुरावूर विश्वम्बरन
117. प्रो मेलाथू चन्द्रशेखरन
118. के बी श्रीदेवी
119. सुरेशगोपी
120. मेजर रवि
121. अलप्पा रंगनाथ
122. जया विजया
123. विशेष गुप्ता
124. फिरोज बख्त अहमद
125. सुधांशु रंजन
126. उमेश चतुर्वेदी
127. भवदीप कांग
128. अनंत विजय
129. शोबरी गांगूली
130. हरीश कुमार
131. चन्द्रकांत प्रसाद सिंह
132. अशोक ज्योति







आशीष कुमार 'अंशु'

आशीष कुमार 'अंशु'
वंदे मातरम