बुधवार, 28 नवंबर 2012
मंगलवार, 27 नवंबर 2012
दो नहीं साढे चार हजार ....
प्रतिभा पाटिल और जोस मुजीका में वैसे तुलना जैसी कोई बात नहीं है, लेकिन पिछले दिनों भारत की पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने जब पूणे में बन रहे दो हजार वर्ग फीट के बंगले को अपने लिए छोटा बताया और जब उन्होंने खुद अपनेे लिए साढे चार हजार वर्ग फीट के बंगले की मांग की तो भारतीय शाशन को समझने वालों के लिए यह बात बिल्कुुल असहज करने वाली नहीं थी। लेकिन एक सवाल जरूर एक बार पूर्व राष्ट्रपति से देश जानना चाहेगा कि क्या वे इस देश की गरीबी, अशिक्षा, कुपोषण से परिचित हैं? राष्ट्रपति का अपना किरदार इतना ऊंचा होना चाहिए कि आम आदमी उससे प्रेरणा हासिल करे लेकिन यदि राष्ट्रपति जैसे ऊंचे पद पर बैठे लोग दो हजार वर्ग फीट की जमीन को अपने लिए अपर्याप्त बताएंगे तो इससे देश के आम आदमी के बीच क्या संदेश जाएगा?
वैसे यहां नेता निजी सुरक्षा के नाम पर जब करोडो रूपए लूटा सकते हैं तो फिर एक पूर्व राष्ट्रपति की इस छोटी सी मांग पर सवाल उठाने का सीधा सा अर्थ है, सवाल पूछने वाले की मंशा ठीक नहीं है। इसलिए अन्ना और केजरीवाल ने भी इस मसले को व्यक्तिगत समझकर कुछ भी बोलना ठीक नहीं समझा। ना मीडिया को यह जरूरी विषय लगता हैै। लेकिन जिस काम में देश का पैसा लगाया जाने वाला हो, वह व्यक्तिगत कैसे हो सकता है?
यहां प्रतिभा पाटिल के साथ जोस मुजीका को याद करना महज संयोग नहीं है। जोस जैसा व्यक्तित्व होता ही इसीलिए है कि दूसरों को प्रेरित कर सके। अपनी पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल से भी देश की यही अपेक्षा है कि उनका जीवन दूसरों को प्रेरित करे। खैर, जोस की कहानी से पहले, खबर लिखे जाने तक प्रतिभा पाटिल के साढे चार हजार वर्ग फीट के बंगले की मांग गृह मंत्रालय ने मान ली है और शहरी विकास मंत्रालय से इस दिशा में कदम उठाने की अनुशंसा भी कर दी गई है। भारत भूमि, जिसको त्याग और बलिदान की भूमि कहा जाता है लेकिन समय के साथ अब इस धरती का किरदार भी बदल रहा है।
जोस मुजीका और प्रतिभा पाटिल में तुलना वाली कोई बात तो नहीं हैं लेकिन, कह सकते हैं कि जोस उरूग्वे के वर्तमान राष्टपति हैं और प्रतिभा पाटिल भारत की पूर्व राष्ट्रपति हैं। यह भी जोर सकते हैं कि प्रतिभा पाटिल जिस देश से आती हैं, वह खुद को त्याग और बलिदान का देश कहता हैं, वहां कुपोषण से प्रत्येक साल हजारों बच्चे असमय मौत के मुंह में चले जाते हैं। वहां की तय गरीबी रेखा इतनी कम है कि तय करने वालों को भी बाद में मुंह छुपाना पड़ा और खास बात यह कि वहां की राष्ट्रपति के छह लोगों का परिवार दो हजार वर्ग फीट के बंगले मंे जीवन-यापन नहीं कर पाएगा, ऐसा राष्ट्रपति खुद मानती हैं।
उरूग्वे जो एक बहुत ही छोटा देश है, वहां राष्ट्रपति का पद सफेद हाथी की तरह नहीं होता, वहां राष्ट्रपति, राष्टप्रमुख होता है। जोस मुजीका का जिक्र इसलिए यहां प्रासंगिक है क्योंकि क्यूबा क्रांति से निकले छोटे से देश उरूग्वे के इस राष्ट्रपति ने अपने देश में राष्ट्रपति को मिलने वाली सारी सुविधाएं त्याग दीं। वे सरकारी आलीशान बंगले को छोडकर पत्नी के साथ छोटे से फार्म हाउस मंे रहने चले गए। यह फार्म हाउस उरूग्वे की राजधानी मोनतेविडियो के पास है। उनका वेतन 14 हजार डॉलर के आस-पास है, जिसका नब्बे फीसदी हिस्सा वे दान कर देते हैं। इस दान की बडी रकम वे जरूरतमंद छोटे कारोबारियों को देते हैं। वे सुरक्षा के नाम पर बड़ा तामझाम नहीं रखते और ना ही काफीला लेकर चलना पसंद करते हैं। निजी सुरक्षा के नाम पर उन्होंने सिर्फ दो निजी गार्ड रखा हुआ है। भारत की पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल कोे एक बार जोस मुजीका से मिलना चाहिए। हो सकता है, मिलकर पूर्व राष्ट्रपति कुछ सीखंे और इस देश के लिए भी वे एक आदर्श साबित हों।
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