![](http://3.bp.blogspot.com/_w0i8ZCWf9H8/SED0QjaqftI/AAAAAAAAAhA/GSsO0raxJbg/s320/BHopal+355.jpg)
शुक्रवार, 30 मई 2008
शूटिंग-स्केटिंग साथ-साथ - बधाई हो बिलाल
![](http://3.bp.blogspot.com/_w0i8ZCWf9H8/SED0QjaqftI/AAAAAAAAAhA/GSsO0raxJbg/s320/BHopal+355.jpg)
गुरुवार, 29 मई 2008
ब्रेकिंग न्यूज़
सूखे सर होंगे तर
![](http://4.bp.blogspot.com/_w0i8ZCWf9H8/SD5x0gOhazI/AAAAAAAAAgo/pxWJk_uMTbA/s320/BUNDELKHND+135.jpg)
आदमी के माथे की गाद हट जाए तो तालाब की गाद साफ होते देर नहीं लगती। बुन्देलखण्ड में जगह-जगह तालाबों के पुनर्जीवन का अभियान जोर पकड़ रहा है।
माथे की गाद हटी तो तालाब चमककर आंचल पसारे पानी धारण करने के लिए फिर से तैयार हो रहे हैं. महोबा का चरखारी तालाबों के आंचल में सिमटा कस्बा है. लेकिन समय बीता तो तालाब के आंचल मटमैले हो गये. इसकी कीमत चरखारी को भी चुकानी पड़ी. लेकिन अब चरखारी के आस-पास के मलखान सागर, जयसागर रपट तलैया, गोलाघाट तालाब, सुरम्य कोठी तालाब, रतन सागर, टोला ताल, देहुलिया तालाब, मंडना और गुमान बिहारी जैसे तालाब चमककर निखरने लगे हैं. चरखारी में तालाबों की सफाई का यह काम समाज अपने से कर रहा है क्योंकि सूखे की मार सरकार पर नहीं समाज पर है. बात फैली तो संचित सहयोग की भावना हिलोरे मारकर जागृत हो गयी. आसपास के लोगों ने सुना कि तालाब की गाद साफ हो रही है तो जालौन, हमीरपुर, बांदा, चित्रकूट, महोबा और झांसी के लोग भी यहां श्रमदान करने आये.
![](http://4.bp.blogspot.com/_w0i8ZCWf9H8/SD5xZgOhayI/AAAAAAAAAgg/aTIe5IgA4iU/s320/BUNDELKHND+048.jpg)
पुष्पेन्द्र भाई केवल चरखारी तक ही अपना अभियान नहीं रखना चाहते. वे पूरे बुन्देलखण्ड के तालाबों का पुनरूत्थान करना चाहते हैं. इस काम में समाज जुटे और इसे अपना काम समझकर इसमें शामिल हो जाए इसके लिए उनके जैसे लोग कई स्तरों पर कोशिश कर रहे हैं.इनमें सर्वोदय सेवा आश्रम के अभिमन्यु सिंह, राजस्थान लोक सेवा आयोग की नौकरी छोड़कर आये प्रेम सिंह, लोकन्द्र भाई, डॉ भारतेन्दु प्रकाश और सरकारी नुमांईदे सरदार प्यारा सिंह जैसे लोग भी हैं जो बुन्देलखण्ड को उसका गौरव पानी उसे वापिस दिलाना चाहते हैं.
छतरपुर (मध्य प्रदेश) जिले में तालाबों की सफाई का अभियान जोरों पर है. छतरपुर नगरपालिका के अध्यक्ष सरदार प्यारा सिंह ने तालाबों की सफाई का जिम्मा अपने हिस्से ले लिया है. वे बताते हैं "छतरपुर में ग्वाल मगरा, प्रताप सागर, रानी तलैया, किशोर सागर जैसे कई तालाब हैं. मैंने संकल्प लिया है कि अपना कार्यकाल खत्म होने के पहले इन सारे तालाबों की सफाई पूरी कराऊंगा." कुछ इसी तरह का संकल्प लोकेन्द्र भाई का भी है. वे झांसी से हैं और बिनोबा भावे के सर्वोदय सत्याग्रह से जुड़े रहे हैं. उन्होंने अपने घर बिजना को केन्द्र बनाकर 25 किलोमीटर के दायरे में जो कुएं और तालाब बनवाएं हैं वे इस भयंकर सूखे के दौर में भी लोगों को तर कर रहे हैं. लोकेन्द्र भाई पानी तलाशने की उस परंपरागत तकनीकि के बारे में भी बताते हैं जिसके सहारे यह समाज हमेशा पानीदार बना रहा है. वे कहते हैं कि मेंहन्दी की लकड़ी, अरहड़ की झाड़ या बेंत के माध्यम से पानी तलाशना सरल है. बस आपको थोड़ी तपस्या करनी होगी कि इन प्राकृतिक औजारों के भरोसे आप पानी तक कैसे पहुंच सकते हैं. जिन्हें यह पता है वे जानते हैं कि धरती मां के गर्भ में कहां पानी है और कितने गहरे पर है।
(http://visfot.com/index.php?news=185) विस्फोट से साभार
बुधवार, 28 मई 2008
कवि राजेश चेतन की दोहा-सेवा
![](http://1.bp.blogspot.com/_w0i8ZCWf9H8/SD445wOhaxI/AAAAAAAAAgY/mqVruK1bzyE/s320/Rajesh-Chetan.jpg)
फ़ोन नंबर है - 09811048542
रविवार, 25 मई 2008
एक खतरनाक शादी में आप सब आमंत्रित हैं
शनिवार, 24 मई 2008
दिमागी तौर पर अवयस्क इस पोस्ट को ना देखें
![](http://2.bp.blogspot.com/_w0i8ZCWf9H8/SDfPcwOhavI/AAAAAAAAAgI/WCHcK1QZUy4/s320/DURING+THE+PLAY+(1).jpg)
यह तस्वीरें मुझे मेल टुडे के फोटो पत्रकार राहुल ईरानी ने उपलब्ध कराई हैं।
यह एन एस डी (मंड़ी हाउस, दिल्ली) में हुय। एक प्ले (नाटक) का दृश्य है।
यह कलाकार उज़बेकिस्तान से भारत इस प्ले के सिलसिले में आय थे।
जैसा कि आप जानते हैं उज़बेकिस्तान एक इस्लाम बहुल देश है। और हमारे समाज में यह धारणा है कि दुनिया
![](http://3.bp.blogspot.com/_w0i8ZCWf9H8/SDfPRAOhauI/AAAAAAAAAgA/tQ0gtdrn6cA/s320/DURING+THE+PLAY+(2).jpg)
छुपाया (बुर्के में रखा) गया है।
इस प्ले ने इस मीथ को तोडा है।
इन दृश्यों में देखने वालों को अश्लीलता इस नजर नहीं आई क्योंकि यह कलाकार जो दृश्य अभिनीत कर रही है,
वह प्ले की मांग है।
आज के हिन्दी फिल्मों की तरह सिर्फ़ दिखावा के लिय यह दृश्य नहीं है।
![](http://3.bp.blogspot.com/_w0i8ZCWf9H8/SDfO9AOhatI/AAAAAAAAAf4/jyWRnASr73M/s320/DURING+THE+PLAY+(3).jpg)
मुझे विश्वास है सुधी ब्लॉग पाठकों को इन तस्वीरों से कोई आपत्ति नहीं होगी।
![](http://4.bp.blogspot.com/_w0i8ZCWf9H8/SDfOwQOhasI/AAAAAAAAAfw/nTucFhrlf-s/s320/DURING+THE+PLAY.jpg)
जो भी है आपके सूझाव मेरे लिय महत्वपूर्ण हैं।
शुक्रवार, 23 मई 2008
जम्मू में १९ साल के बाद गणपति उत्सव
![](http://3.bp.blogspot.com/_w0i8ZCWf9H8/SDehcAOharI/AAAAAAAAAfo/0MLy-9NxAjg/s320/tn_Ganesh%2520jee_160.jpg)
गुरुवार, 22 मई 2008
खुला पत्र
![](http://2.bp.blogspot.com/_w0i8ZCWf9H8/SDUiIQOhaqI/AAAAAAAAAfg/l01JM4Gchxo/s320/Endless_Love_Painting.jpg)
और मैं हर बार मिला सिर्फ़ तुमसे,
तुमने हर बार खुद को हसीन समझा
मैंने हर तुम्हे जहीन देखा।
क्रूशेड के नाम पर तुमने कि मेरी हत्या,
और मैं चश्मदीद गवाह बना अपनी ही मौत का।
![](http://1.bp.blogspot.com/_w0i8ZCWf9H8/SDUgpAOhapI/AAAAAAAAAfY/ZEELamx5-FU/s320/0406_Desert.jpg)
मंगलवार, 20 मई 2008
भोपाल में भी है पानी की हाय-तौबा
के लोग गर्व से कहा करते थे, ताल में भोपाल ताल, बाकी सब तलैया। आज भी शायद कहते हों। ख़ैर भोपाल में एक जगह है एम पी नगर, वही है एक सिनेमा हाल - जिसका नाम है सरगम सिनेमा। उसी सिनेमा हाल के पास ही बहने वाले एक नाले से लगकर कुछ लोग रात को लगभग १२ बजे एक पाईप से पानी भरते मिले।
![](http://2.bp.blogspot.com/_w0i8ZCWf9H8/SDKf1XJwXAI/AAAAAAAAAfQ/olRVvCKez1g/s320/BUNDELKHND+941.jpg)
इसलिय अपने साले के ऑटो पर रोज यहाँ पानी लेने आ जाता हूँ।
उई पेशे से पलंबर हैं।
सोमवार, 19 मई 2008
तेजिंदर, शर्मा (यू के) की एक कविता गिलहरी
![](http://3.bp.blogspot.com/_w0i8ZCWf9H8/SDFZe3JwW_I/AAAAAAAAAfI/5d8Yp3qGzgo/s320/Gilhari.jpg)
गिलहरी
रहती है मेरे घर के पीछे
बाग़ के एक दरख़्त पर
उछलती, कूदती, फरफराती
एक डाल से दूसरी पर
बंदरिया-सी छलांग लगाती।
ये मेरे बाग़ की गिलहरी है।
इस देश के गोरे नागरिकों की
करती है नकल, अपनी
फ़रदार पूंछ को हिलाती है
अलग-अलग दिशा में नचाती है
चेहरे पर रोब लाए
करती है प्रदर्शन, अपनी
अमीरी का, अपनी सुन्दरता का
हां, ये मेरे बाग़ की गिलहरी है।
अपने आगे के पैरों को देती है
हाथों-सी शक्ल और वैसा ही कामकुतरती है सेब,
मेरे ही बाग़ के
ऐंठती हुई करती है अठखेलियां
पेड़ों से टकराती ब्यार से
उफ़! ये मेरे बाग़ की गिलहरी।
जब जी चाहे पहुंच जाती है
मेरे ज़ीने पर,
मेरे स्टोर में
कुतर डालती है,
दिखाई देता है जो भी
मैं, बस सुनता हूं आवाज़ें
घबराता हूं, मांगता हूं दुआ
पुस्तकों की ख़ैरियत की।
मुझे भक्त बना देती है
ये जो है मेरे बाग़ की गिलहरी।
एक दिन सपने में मेरे आ खड़ी होती है
चेहरे पर दंभ, रूप से सराबोर
गदराया बदन, दबी मुस्कुराहट
आज आने वाली है
उससे मिलने
उसकी दूर की एक रिश्तेदार!
उस शहर से जहां बीता था मेरा बचपन
हां, वो भी तो एक गिलहरी ही है।
ग़रीबी के बोझ से दबी
सिमटी, सकुचाई, शरमाई
अपने सलोने रंग से सन्तुष्ट
संग लाई है अपने अमरूद
बस वही ला सकती थी
महक मेरे शहर की मिट्टी की
पाता हूं वही महक कभी अमरूद में
तो कभी उसमे जो मेरे शहर की गिलहरी है।
मेरे बाग़ की गिलहरी को नहीं भाती
गंवई महक अमरूद की, या फिर
मेरे शहर की मिट्टी की वो गंध
जो मेरे शहर की गिलहरी ले आई है
अपने साथ, अपने शरीर अपनी सांसों में।
वह रखती है अपनी मेहमान के सामने
केक, चीज़ और ड्राई फ़्रूट
कितनी भी खा ले, पूरी है छूट
कितने बड़े दिल की मालकिन है
वो जो मेरे बाग़ की गिलहरी है।
मेरे शहर की गिलहरी सीधी है सादी-सीनिकट है
प्रकृति के, सरल और मासूम
बस खाती है पेड़ों के फल, कैसे पचाए
केक, चीज़ और ड्राई-फ़्रूट
देखती है, मुस्कुराती है, पूछती है हाल
अपनी मेज़बान के,
उसके परिवार के।
परिवार यहां नहीं होता,
सब रहते हैं
अलग-अलग, यह मस्त देश है
ऊंचे कुल की दिखती है वो
जो मेरे बाग़ की गिलहरी है।
“सुनो, तुम यह सब नहीं खाती हो
इसी लिये सेहत नहीं बना पाती हो
मुझे देखो, कितना ख़ूबसूरत देश है मेरा
कैसा है मेरा स्वरूप, रंग रूप।॥
देखो
मेरे बाग़ में कितने सुन्दर पेड़ हैं
रंग-बिरंगी पत्तियों वाले पौधे!
यहां का हरा रंग कितना गहरा है!
यहीं आ बसो,
यहां है कितना सुखकितनी शान, मौज है मस्ती है।”
आत्ममुग्ध हो जाती है, जोमेरे बाग़ की गिलहरी है।
चुप नहीं हो पाती है,
जारी हैबोलना उसका और इठलाना।
मेरे देश में इन्सान से अधिक
होती है परवाह हमारी
यही है वो देश जहां कभी
अस्त नहीं होता था सूर्य
जब कभी उदय होता है पूर्व में
तब भी चमकता है मेरा यह
पश्चिम का देश
और चमकने लगता है चेहरा,
मेरे बाग़ की गिलहरी का।
शांत किन्तु दृढ़ आवाज़ में
देती है जवाब, गिलहरी मेरे शहर की।
माना कि तुम हो बहुत सुन्दर और सुगठित
धन और धान्य से भरपूर है शहर तुम्हारा
तुम्हारे देश में हैं सुख,
सुविधाएं और आराम
देखो मेरी ओर,
देखो मेरे इस साधारण बदन को,
यह तीन उंगलियां जिसकी हैं
उसका नाम है राम!
इस तरह देती है सुख
मुझे असीम,
वो जो मेरे शहर की गिलहरी है।
रविवार, 18 मई 2008
प्रदीप भाई के घर से अक्ल की चोरी
शुक्रवार, 16 मई 2008
कुछ अख़बारों के दुर्लभ अंक
बुधवार, 14 मई 2008
जेबकतरों से नहीं कुछ जेब कटों से भी परेशान
बुधवार, 7 मई 2008
भारत के लोग अधिक खा रहे हैं
![](http://3.bp.blogspot.com/_w0i8ZCWf9H8/SCKYdjA0lZI/AAAAAAAAAbk/MQshslW0dUI/s320/BUNDELKHND+936.jpg)
भारत को हमेशा दुष्यंत की नजर से देखा है मैंने। यहाँ तो सिर्फ़ भूखे और नंगे लोग रहते हैं .... वाले दुष्यंत। या फ़िर पी साईनाथ की नजर से, जिन्होंने हमेशा देश के सबसे पिछडे पांच फीसदी लोगों के सम्बन्ध में लिखा, उनके हित की बात की।
लेकिन अब पता चला यह सारी तस्वीर झूठी थी। भारत में गरीबी नहीं हैं। यहाँ के लोग अधिक खाने लगे हैं। फ़िर से यहाँ दूध की नदियाँ बहने लगी हैं।
अगर इस वर्ग को भर पेट भोजन मिले तो हालत क्या होंगे?
मंगलवार, 6 मई 2008
यह लोग इसी देश में रहते हैं
![](http://3.bp.blogspot.com/_w0i8ZCWf9H8/SCBNlbvPRZI/AAAAAAAAAbU/v8XVF4oGEi8/s320/BUNDELKHND+930.jpg)
वह पत्थर उठाने का काम कर रही थी। उसके हाथ बुरी तरह छिले हुय थे। आपके हाथों की यह हालत है फ़िर आप काम क्यों करती हैं, यह पुछने पर उसका जवाब था -
![](http://3.bp.blogspot.com/_w0i8ZCWf9H8/SCBNQbvPRYI/AAAAAAAAAbM/Ba9JMjOIYrw/s320/BUNDELKHND+929.jpg)
सोमवार, 5 मई 2008
एमएनसीज
मीडिया स्कैन : भावी पत्रकारों का अखबार
![](http://1.bp.blogspot.com/_w0i8ZCWf9H8/SB7j7bvPRSI/AAAAAAAAAac/TuJBNzOJDow/s320/KANPUR+070.jpg)
ऐसे माहौल में पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहे कुछ विद्यार्थियों ने अपने भावी पेशे को विशुध्द 'बाजारू' बनने से रोकने के लिए कुछ करने का मन बनाया। उन्होंने पत्रकारिता के छात्रों को मीडिया जगत की हकीकत बताने और साथ ही इसके सामाजिक सरोकारों के बारे में सचेत करने के लिए काफी विचार-विमर्श के बाद एक पहल की है। उनकी यह पहल है 'मीडिया स्कैन' नामक चार पृष्ठ वाला मासिक अखबार जिसके द्वारा वे अपनी बात पत्रकारिता के छात्रों तक पहुंचाते हैं। जुलाई 2007 से प्रकाशित होने वाला मीडिया स्कैन दिल्ली विश्वविद्यालय, भारतीय जनसंचार संस्थान, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय, जामिया मिलिया इस्लामिया, भारतीय विद्या भवन आदि संस्थानों के छात्रों की मेहनत का परिणाम है।
अखबार हाथ में आते ही उफपर दृष्टि जाती है जहां लिखा है - 'जुबान नरम, तासीर गरम'। इससे अखबार से जुड़े लोगों का तेवर साफ समझ में आ जाता है। मीडिया स्कैन का मूल्य रखा गया है सवा रुपया जो वास्तव में बाजार के नियमों का एक तरह से मजाक उड़ाता है। लाभ कमाने की बात अखबार से जुड़े छात्रों के दिमाग में दूर-दूर तक नहीं है। कोई स्पान्सर मिल जाए तो ठीक अन्यथा अपने पैसे लगाकर उन्होंने अखबार को चलाए रखने का निश्चय किया है। विज्ञापन लेने से उन्हें एतराज नहीं लेकिन अपनी शर्तों पर। विज्ञापन जुटाने के लिए अखबार निकालना उनका उद्देश्य नहीं है। छात्र जीवन की आर्थिक मुश्किलों के बीच उनका यह निश्चय हमें आज की युवा पीढ़ी के उस वर्ग से परिचय करवाता है जिसके लिए 'अर्थ' जरूरी है, लेकिन सब कुछ नहीं है।
मीडिया स्कैन में भावी पत्रकारों के साथ-साथ प्रतिष्ठित पत्रकार भी विभिन्न विषयों पर लिखते हैं। छोटी सी अवधि में ही इस अखबार ने कई प्रतिष्ठित लोगों का धयान अपनी ओर खींचा है। प्रख्यात पर्यावरणविद अनुपम मिश्र के अनुसार पत्र का प्रकाशन सराहनीय है। भावी पत्रकारों का मानस निर्माण करने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। पत्रकारिता के कुछ जुझारू छात्रों द्वारा संचालित यह पत्र आज केवल दिल्ली में ही नहीं बल्कि विभिन्न प्रदेशों में भी छात्रों के माध्यम से ही पहुंच चुका है। इसके अतिरिक्त इसे इन्टरनेट पर ई-मेल के माध्यम से लगभग साढ़े तीन हजार लोगों तक पहुंचाया जा रहा है। शीघ्र ही इसकी वेबसाइट भी शुरू करने की योजना है। जिस प्रकार छात्रों एवं वरिष्ठ पत्रकारों के साथ-साथ समाज के गणमान्य लोगों ने इस प्रयास को सराहा है, उससे पत्र के संचालकों का आत्मविश्वास बढ़ा है।
अपनी आगे की रणनीति को लेकर मीडिया स्कैन से जुड़े छात्र बहुत स्पष्ट हैं। वे इसे एक सहकारी उद्यम मानते हैं और चाहते हैं कि इस पत्र की पहचान एक ऐसे अखबार के रूप में बने जो मीडिया छात्रों द्वारा मीडिया छात्रों के लिए निकाला जा रहा है, लाभ कमाने के लिए नहीं बल्कि उन्हें यह बताने के लिए कि पत्रकारिता केवल आजीविका का साधन भर नहीं, बल्कि एक मिशन भी है।
- भारतीय पक्ष में छपा
आशीष कुमार 'अंशु'
![आशीष कुमार 'अंशु'](http://3.bp.blogspot.com/_w0i8ZCWf9H8/SBWHdLvPQ_I/AAAAAAAAAYE/qLvF-T5fl24/S700/BUNDELKHND+103.jpg)
वंदे मातरम
मेरे बारे में
![मेरी फ़ोटो](http://bp0.blogger.com/_w0i8ZCWf9H8/SJL80dCbnPI/AAAAAAAAAoc/YuXw_qa96qE/S220-s80/JULY+08_+UTTARAKHAND+148.jpg)
- आशीष कुमार 'अंशु'
- हमने तमाम उम्र अकेले सफ़र किया हमपर किसी खुदा की इनायत नहीं रही, हिम्मत से सच कहो तो बुरा मानते हैं लोग रो-रो के बात कहने की आदत नहीं रही।
हम हैं दिल की आवाज़...
न किसी का ज़ात जानते हैं,
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जो सही लगे, बिन्दास बोलते हैं ....
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