रविवार, 21 अगस्त 2016

शौहर, बेगम और दूसरी पत्नी

'‘बांग्लादेशी भारत में घुस रहे हैं और आदिवासी महिलाओं से शादी कर रहे हैं। केन्द्र और राज्य दोनों के लिए यह चिन्ता का विषय है। खासकर बांग्लादेश से सटे झारखंड के पाकुर, साहबगंज आदि जिलों में ऐसा चलन बढ़ रहा है। पिछले कुछ समय से ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं। इसलिए राज्य सरकार और पुलिस को अपना खुफिया तंत्र अधिक मजबूत करना होगा। जिससे बांग्लादेशी घुसपैठियों को रोक कर उनकी मंशा पर लगाम लगाया जा सके।’'
सुदर्शन भगत, केन्द्रिय ग्रामीण विकास राज्य मंत्री, भारत सरकार

झारखंड की आदिवासी महिलाएं राज्य की ताकत हैं। उन्हें अधिकार प्राप्त है। उनका समाज में सम्मान भी है। इन लड़कियों को गैर आदिवासी समाज जो दूसरी और तीसरी पत्नी के तौर पर अपने पास रखता है, उनके हाथों इनका शोषण भी हुआ है। ये गैर आदिवासी वे हैं, जो बाहर से आकर झारखंड में बसना चाहते हैं। झारखंड की सम्पदा पर कब्जा चाहते हैं। एक खास धर्म के लोगों को इस देश में एक से अधिक बेगम रखने की इजाजत है। उन लोगों ने अपने धर्म की इस कमजोरी का लाभ उठाकर एक एक पुरुष ने कई-कई स्त्रियों से शादी की। इस शादी की आड़ लेकर उन्होंने झारखंड की संपत्ति और संपदा पर कब्जा किया। साथ में आदिवासी लड़कियों का शारीरिक और आर्थिक शोषण भी किया। रांची के माडर से लेकर लोहरदगा तक बांग्लादेशी घुसपैठियों ने बड़ी संख्या में इस तरह की शादी की है। इतना ही नहीं इन शादियों में क्रिश्चियन बनी आदिवासी लड़कियों ने दूसरी और तीसरी पत्नी बनकर गैर आदिवासी पुरुषों से अधिक संख्या में शादी की है लेकिन किसी फादर या कॉर्डिनल ने इस संबंध में छोटा सा बयान भी नहीं दिया। लेकिन अब आदिवासी समाज जग रहा है और बेगम जमात की चालाकियों को खूब समझ रहा है। वह इस बदमाशी को अधिक समय तक आने वाले दिनों में बर्दाश्त करने वाला नहीं है।
पद्मश्री अशोक भगत, विकास भारती

समाज किसी का हो, दो पत्नी रखना सही नहीं ठहराया जा सकता। क्या तीन पत्नी रखने वाले अपनी तीनों पत्नियों को दो-दो और पत्नी रखने की इजाजत देंगे?
अमिता मुंडा, आदिम जाति सेवा मंडल

झारखंड में दूसरी या तीसरी पत्नी बनकर गैर आदिवासियांे के परिवार में जो लड़कियां जा रहीं हैं, उनमें ध्यान देने वाली बात यह है कि उन लड़कियों में अधिकांश कामकाजी लड़कियां हैं। वह अपनी आमदनी से अपने पति को भी मदद करती हैं। इन कामकाजी लड़कियों में आदिवासी क्रिश्चियन लड़कियों की संख्या अधिक है। जो दूसरी या तीसरी पत्नी बनकर जा रहीं हैं।
दिवाकर मिंज, प्राध्यापक, रांची विवि

रांची राजमार्ग से तीन किलोमीटर अंदर की तरफ जाने पर इटकी प्रखंड आता है। मुख्य सड़क से अंदर जाने का रास्ता कच्चा-पक्का है। जब आप इटकी में दाखिल होते हैं, बायीं तरफ लड़कियों का एक मदरसा है। इस मदरसे को देखकर आप अनुमान करते हैं कि यह प्रखंड स्त्रियों के अधिकार को लेकर जागरूक प्रखंड होगा। इसी प्रखंड में एक घर है परवेज आलम (काल्पनिक नाम) का। परवेज शादी शुदा पुरुष हैं लेकिन शादी इन्होंने एक बार नहीं तीन बार की है। इनके घर में पत्नी के तौर पर तीन औरतें रहती हैं। पहली शकीना खातून (काल्पनिक नाम) और बाकि दो औरतें आदिवासी हैं। दूसरी रंजना टोप्पो (काल्पनिक नाम) और तीसरी मीनाक्षी लाकड़ा (काल्पनिक नाम)। इटकी के आस-पास के लोगों से बातचीत करते हुए यह अनुमान लगाना आसान था कि परवेज का मामला अकेला नहीं है, इटकी प्रखंड में। इस तरह के कई दर्जन मामले हैं, जिसमें एक से अधिक शादी हुई है और गैर आदिवासी समाज से आने वाले पुरुष ने एक से अधिक शादी में कम से कम एक पत्नी आदिवासी स्त्री को रखा है। अपने अध्ययन में यह बात साफ तौर पर नजर आई कि दूसरी और तीसरी आदिवासी पत्नी चुनते हुए गैर आदिवासी पुरुष ने इस बात को प्राथमिकता दी है कि आदिवासी लड़की कामकाजी होनी चाहिए। आदिवासी युवति नर्स या शिक्षिका हो तो वह वह गैर आदिवासी पुरुष की पहली पसंद होती है।
झारखंड की सामाजिक कार्यकर्ता वासवी कीरो जो लम्बे समय से आदिवासी मुद्दों पर काम कर रहीं हैं, बताती हैं कि इस तरह की कामकाजी आदिवासी लड़कियों के लिए गैर आदिवासी युवकों के बीच एक शब्द इस्तेमाल होता है, बियरर चेक। वास्तव में कामकाजी महिलाएं उनके लिए बियरर चेक ही तो होती है, जो दूसरी या तीसरी पत्नी बनकर सेक्स की भूख मिटाती हैं और साथ-साथ हर महीने पैसे देकर पेट की भी।
वासवी पन्द्रह साल पहले अपने एक अध्ययन का हवाला देते हुए कहती हैं- 15 साल पहले हम लोगों ने एक अध्ययन किया था लेकिन चीजें अब भी प्रासंगिक हैं। जिन परिवारों में आदिवासी लड़की थी, दूसरी, तीसरी पत्नी बनकर, हमने पाया कि उन परिवारों में आदिवासी लड़की को वह महत्व नहीं मिल पा रहा है, जो परिवार में मौजूद गैर आदिवासी पत्नी को हासिल था। वासवी के अनुसार सीमडेगा, लोहरदगा और गुमला में बड़ी संख्या में इस तरह के मामले उन्हें देखने को मिले।
इस तरह की घटनाओं को सुनकर कम से कम झारखंड के सामाजिक कार्यकर्ता नहीं चौंकते क्योंकि समाज के बीच में काम करते हुए उनका सामना प्रति दिन ऐसे मामलों से होता है, जिसमें एक से अधिक शादियां हों और गैर आदिवासी परिवार में एक से अधिक शादियों में कम से कम एक आदिवासी लड़की हो। आम तौर पर इन आदिवासी लड़कियों की स्थिति परिवार में दोयम दर्जे की ही होती है।
नफीस से मेरी मुलाकात इटकी प्रखंड में हुई थी। नफीस मानते हैं कि इटकी में इस तरह की शादियां बड़ी संख्या में हुई है। नफीस इस तरह की शादियों को सही नहीं ठहराते। नफीस के मित्र हैं, अभय पांडेय। पांडेय के अनुसार - गैर आदिवासी युवकों द्वारा आदिवासी लड़कियों को दूसरी अथवा तीसरी पत्नी बनाने की घटनाएं बड़ी संख्या में है। लेकिन यह बताना भी नहीं भूलते कि इस मामले में इटकी में कोई बात करने को तैयार नहीं होगा।
जब उनसे पूछा कि ऐसा क्यों है? कोई बात करने को क्यों तैयार नहीं होगा? तो पांडेय इशारों-इशारों में बताते हैं कि जहां हमारी बातचीत हो रही है, वह मुस्लिम मोहल्ला है। यहां इस तरह की संवेदनशील बातचीत से खतरा हो सकता है। पांडेय यह सलाह देना नहीं भूलते कि प्रखंड कार्यालय से दो किलोमीटर दूर एक पिछड़ी जाति से ताल्लूक रखने वाले व्यक्ति से मिलना सही होगा। जिन्होंने दो आदिवासी महिलाओं से शादी की है। पांडेय दो किलोमीटर दूर वाले परिवार से मिलवाने की जिम्मेवारी नफीस साहब को देकर किसी जरूरी मीटिंग का बहाना बनाकर निकल लेते हैं।
यदि एक पुरुष और एक स्त्री धर्म जाति की परवाह किए बिना आपस में प्रेम करते हैं और शादी का निर्णय लेते हैं तो समाज को उसे स्वीकार करना ही चाहिए। लेकिन यदि यही प्रेम एक से अधिक स्त्रियों के साथ हो और इन सभी स्त्रियों को कोई एक व्यक्ति पत्नी बनाने की ख्वाहिश रखे तो क्या इसे प्रेम माना जाएगा? यह हवश है या कोई बड़ा गोरखधंधा। बताया जाता है कि इस्लाम में एक से अधिक शादी की इजाजत है लेकिन इस इजाजत के साथ जिन शर्तों का जिक्र है, उस पर कभी समाज में चर्चा नहीं हो पाती। ना उस पर अमल एक से अधिक शादी करने वाला शौहर कभी करता है। अब सवाल यह है कि फिर इस तरह के कानून की समाज में जरूरत ही क्या है? एक-एक पुरुष को शादी के लिए एक से अधिक स्त्री क्यों चाहिए?
अमिता मुंडा आदिम जाति सेवा मंडल से जुड़ी हुई हैं। अमिता के अनुसार- समाज में कोई भी धर्म हो, दो पत्नी रखना उचित नहीं है। दो पत्नियों के साथ बराबर का रिश्ता नहीं रखा जा सकता। क्या तीन पत्नी रखने वालों की तीनो ंपत्नियां दो-दो पति और रखने की इजाजत मांगे तो क्या तीन पत्नी रखने वाला पति तैयार होगा?
अमिता रांची स्थित हिंद पीढ़ी का जिक्र करते हुए कहती हैं कि आप वहां चले जाइए, इस तरह का बहुत सा मामला आपको देखने को मिलेगा।
एक से अधिक विवाह के संबंध में अपने अध्ययन के दौरान इंडिया फाउंडेशन फॉर रूरल डेवलपमेन्ट स्टडिज ने पाया कि रांची के आसपास के जिलों को मिलाकर ऐसे एक हजार से अधिक मामले इस क्षेत्र में मौजूद हैं। इस स्टोरी पर काम करते हुए ऐसे रिश्तों की जानकारी मिली जिसमें आदिवासी लड़की को दूसरी या तीसरी पत्नी बनाकर घर में रखा गया है। परिवार में साथ रहने के बावजूद स्त्री को पत्नी का दर्जा हासिल नहीं है। समाज इन्हें पत्नी के तौर पर जानता है लेकिन उन्हें पत्नी का कानूनी अधिकार हासिल नहीं है। कई मामलों में उन्हें मां बनने से रोका गया। आदिवासी लड़की, गैर आदिवासी परिवार में सिर्फ सेक्स की गुड़िया की हैसियत से रह रही है। यदि एक पुरुष एक स्त्री के साथ बिना शादी किए एक घर में रहता है और उसके साथ शारीरिक संबंध भी बनाता है तो इसे आप लिव इन रिलेशन कह सकते हैं लेकिन दो शादियों के बाद घर में तीसरी औरत को रखना और उसे पत्नी का कानूनी अधिकार भी ना देने को आप क्या नाम देना चाहेंगे? इस रिश्ते का कोई तो नाम होगा?
झारखंड के आदिवासी समाज में अशोक भगत लंबे समय से काम कर रहे हैं। उनकी संस्था विकास भारती आदिवासियों के बीच एक जाना पहचाना नाम है। अशोक भगत शोषण की बात स्वीकार करते हुए कहते हैं- एक खास धर्म के लोगों को एक से अधिक बेगम रखने की इजाजत है। उन लोगों ने अपने धर्म की इस कमजोरी का लाभ उठाकर एक-एक पुरुष ने झारखंड में कई-कई शादियां की हैं। आम तौर पर ये लोग झारखंड के बाहर से आए हैं और आदिवासी लड़कियों को दूसरी, तीसरी पत्नी बनाने के पिछे इनका मकसद झारखंड के संसाधनों पर कब्जा और इनके माध्यम से झारखंड में राजनीतिक शक्ति हासिल करना भी है। पंचायत से लेकर जिला परिषद तक के चुनावों में आरक्षित सीटों पर इस तरह वे आदिवासी लड़कियों को आगे करके अपने मोहरे सेट करते हैं। वास्तव में आदिवासी समाज की लड़कियों का इस तरह शोषण आदिवासी समाज के खिलाफ अन्याय है। अशोक भगत बताते हैं- रांची के मांडर से लेकर लोहरदग्गा तक और बांग्लादेशी घुसपैठियों ने पाकुड़ और साहेब गंज में बड़ी संख्या में इस तरह की शादियां की हैं।
श्री भगत इस बात पर आश्चर्य व्यक्त करते हैं कि जब इतनी बड़ी संख्या में क्रिश्चियन आदिवासी लड़कियां दूसरी और तीसरी पत्नी बनकर गैर आदिवासियों के पास गई हैं लेकिन कभी चर्च ने या फिर कॉर्डिनल ने इस तरह की नाजायज शादी के खिलाफ एक शब्द नहीं बोला। श्री भगत उम्मीद जताते हुए कहते हैं- आदिवासी समाज बेगम-जमात की चालाकियों को समझ रहा है। मुझे यकिन है कि आदिवासी समाज इन मुद्दों पर जागेगा। आने वाले दिनों में विरोध का स्वर उनके बीच से ही मखर होगा।
गैर आदिवासी पति के नाम को छुपाने का मामला भी झारखंड में छुप नहीं सका है। ऐसी आदिवासी महिलाएं जिनका इस्तेमाल आरक्षित सीटों पर चुनाव लड़ाने में गैर आदिवासी करते हैं, अच्छी संख्या में हैं। इन महिलाओं से चुनाव का फॉर्म भरवाते समय इस बात का विशेष ख्याल रखा जाता है कि वह अपने पति का नाम फॉर्म में ना भरे। इस तरह आदिवासी पिता का नाम आरक्षित सीट पर चुनाव लड़ने वाली यह आदिवासी महिलाएं लिखती हैं। पति का नाम फॉर्म में नहीं लिखा जाता है। ऐसा एक मामला इन दिनों रांची में चर्चा में है। जिसमें एक विधायक प्रत्याशी ने आरक्षित सीट पर चुनाव लड़ा जबकि उसका पति मुस्लिम समाज से आता है।
आदिवासी विषय के अध्ययेता रांची विश्वविद्यालय के प्रोफेसर दिवाकर मिंज मानते हैं कि दूसरी या तीसरी पत्नी बनकर शादी में जाने वाली आदिवासी लड़कियां आम तौर पर, पढ़ी-लिखी, कामकाजी और क्रिश्चियन होती हैं।
झारखंड में एक दर्जन से अधिक सामाजिक संगठनों ने माना कि इस तरह की घटनाएं झारखंड में हैं, जिसमें एक से अधिक शादियां हुई हैं और इस तरह की शादियों में शोषण आदिवासी लड़कियों का हुआ है। सभी सामाजिक संगठनों ने इस तरह की शादियों को सामाजिक बुराई बताया। एक से अधिक शादी को आप चाहे जो नाम दे दें लेकिन इस तरह की शादियों को आप प्रेम विवाह नहीं कह सकते। अब समय आ गया है जब इस तरह की शादियों पर पाबंदी की मांग समाज से उठे और एक से अधिक शादियों पर कानूनी तौर पर पूरी तरह प्रतिबंध लगे। धर्म, जाति और क्षेत्र की परवाह किए बिना। यह सही समय है, जब हम सब समाज से इस बुराई को खत्म करने के लिए आवाज बुलन्द करें।

आशीष कुमार 'अंशु'

आशीष कुमार 'अंशु'
वंदे मातरम