नई सरकार बनने के बाद कई सारी कहानियां भी एक के बाद एक करके बन रहीं हैं। खबर तो अखबार और पत्रिकाओं में छप जाती है लेकिन कहानियां, इसे तो कोई भी नहीं छापता और यह कहानियां ना छपती हैं और ना दर्ज हो पाती हैं। वैसे इन कहानियांे को भी दर्ज होना चाहिए, जिसके बाद आने वाले समय में विचारधारा के साथ खड़े होने वाले नए रंगरुटों को उस धूर्तता का भी पता चले जो उसके पूर्ववर्ती करके गए हैं।
यूं तो यह कहानी नई सरकार और एक व्यक्ति के पुरानी वैचारिक प्रतिबद्धता के प्रति बरते जाने वाली धूर्तता की है। लेकिन सच तो यह है कि यह व्यक्ति की नहीं, प्रवृति की कहानी है।
नरेन्द्र कई दिनों से नए वाले गृहमंत्री के घर और दफ्तर के चक्कर लगा रहे हैं। सुनने वाले बता रहे थे कि नई सरकार में उनकी कोई बात पक्की होनी है। नरेन्द्र की कहानी से पहले उनका थोड़ा सा परिचय। नरेन्द्र आईसा के साथ कॉलेज राजनीति में सक्रिय थे। बाद के दिनों में प्रगतिशील लेखक संघ के कार्यक्रमों में भी देखे जाते रहे हैं। स्वभाव से कवि हैं। बाबरी मस्जिद के गिरने को वे यूपीए की सरकार में विश्व इतिहास का सबसे काला दिन मानते थे। एनडीए सरकार के आन के बाद वह बाबरी मस्जिद को राम जन्मभूमि कहना पसंद करते हैं, चूंकि अब तक इस बयान का दस्तावेजीकरण नहीं हुआ है, इसलिए प्रमाण के अभाव में उस संज्ञा के जिक्र को प्रामाणिक ना माना जाए। देश में किसी भी प्रकार के साम्प्रदायिक तनाव के पीछे यूपीए काल में वे आरएसएस का हाथ देखते थे। एनडीए सरकार में उनका नजरिया बदल चुका है, जिसका जिक्र यहां नहीं किया जा रहा, कारण- ऊपर बताया गया है। उनकी एक कविता है,
‘कौव्वा उड़ा मंदिर से और जा कर बैठा मस्जिद पर, ब्राम्हणवादी ताकतों ने कह कर धर्मान्तरण,
पूरे शहर में करा दिया दंगा।
नीक्कर पहन के आ गए दंगाई, पुलिस वाला भी ना ले सका जिनसे पंगा।’
नरेन्द्र के परिचय के साथ अंिभ का परिचय कराना भी जरूरी है। जिनका इन्काउंटर गृहमंत्री के घर पर नरेन्द्र से हुआ और यह पूरी कहानी बनी। अंिभ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक हैं। दिल्ली में रहकर विद्यार्थी परिषद की राजनीति की। विश्व हिन्दू परिषद का दायित्व दो साल पहले तक उनके पास था। नई सरकार में ‘जायजा मंत्रालय’ उनके पास है। वे एक के बाद एक मंत्रालय का जायजा लेते रहते हैं। इस महती जिम्मेवारी को उठाने का संकल्प उन्होंने खुद अपने ऊपर ले रखा है। दिल्ली के हर एक मंत्रालय की छोटी बड़ी खबर आप उनसे पा सकते हैं। अंिभ को एक बार खबर मिल जाए इसका सीधा सा अर्थ है कि वह खबर आठ पहर में वायरल होने वाली है।
गृहमंत्री के घर पर कॉमरेड नरेन्द्र ने जैसे ही स्वयंसेवक अंिभ को देखा, उससे नजरे चुराने लगे लेकिन कब तक? पकड़े गए। अंिभ जानते थे कि कॉमरेड नरेन्द्र कई दिनों से सरकार की एक सलाहकार समिति में जगह बनाने के लिए मंत्रीजी के घर और दफ्तर के चक्कर काट रहे हैं।
जब स्वयंसेवक अंिभ से नजर मिल गई तो कॉमरेड नरेन्द्र मुस्कुराते हुए उनसे मिले और उनके दोनों हाथों को अपने हाथ में लेकर झुलाने लगे।
‘जानते हैं अंिभजी हमरा परिवार तो बाल्यकाल से ही स्वयंसेवक रहा है। मेरे चाचाजी, मेरे पिताजी सभी स्वयंसेवक हैं। मैं भी बचपन में शाखा जाता था। बाल्यकाल से स्वयंसेवक हूं। इस देश का ऐसा कौन सा हिन्दू बालक होगा जो बचपन में शाखा ना जाता हो?’
कॉमरेड नरेन्द्र की यह भाषा स्वयंसेवक अंिभ के लिए चौंकाने वाली थी। अंिभ मसखरी के मूड में थे, अंिभ ने कहा-
आप बाल्यकाल स्वयंसेवक हैं, यह अच्छी बात है लेकिन संघ में गर्भस्थ स्वयंसेवक की बात अधिक सुनी जाती है। यदि आप गर्भस्थ स्वयंसेवक होते तो यहां आने की जरूरत ही नहीं पड़ती। प्रचारक ही एक चिट्ठी लिख देते और घर बैठे-बैठे आपका काम हो जाता।’
कॉमरेड नरेन्द्र ने पहली बार गर्भस्थ स्वयंसेवक का जिक्र सुना था। उनकी रूचि जगी कि यह गर्भस्थ स्वयंसेवक क्या होता है और एनडीए सरकार में यह इतना पावरफूल क्यों है?
स्वयंसेवक अंिभ ने समझाया -
गर्भस्थ स्वयंसेवक उन संतानों को कहते हैं, जिनके मां-बाप दोनों स्वयंसेवक परिवार से आते हों। मतलब दादा और नाना दोनों संघी हों।
कॉमरेड नरेन्द्र समझ गए थे कि गर्भस्थ स्वयंसेवक होना नई सरकार में बहुत काम की चीज है। लेकिन वे समझ नहीं पा रहे थे, कि खुद को गर्भस्थ स्वयंसेवक साबित कैसे किया जाए?
रास्ता स्वयंसेवक अंिभ ने सुझाया- संघ के इतने संगठन देश भर में चलते हैं कि संघ वालों को ही पता नहीं है। आगे से बता दिया कीजिए कि मैं गर्भस्थ स्वयंसेवक हूं और मेरे नाना जी ‘प्रगतिशील हिन्दू महासभा’ के संयोजक थे उज्जैन में। किसे पता चलेगा?
स्वयंसेवक अभि ने गर्भस्थ स्वयंसेवकों का महिमागान करते हुए फूसफूसा के कहा, मानों कोई अति राज की बात कर रहे हों- आप जानते हैं, प्रधानमंत्री के पीछे छह गर्भस्थ स्वयंसेवकों को लगाया गया है। प्रधानमंत्री कब मुतने जाते हैं, यह बात चाहे एसपीजी को पता ना हो लेकिन गर्भस्थ स्वयंसेवकों को उन्हें यहां तक की जानकारी रिपोर्ट करनी पड़ती है। गर्भस्थ स्वयंसेवकों का इस राज में कोई काम नहीं रूक रहा।
कॉमरेड नरेन्द्र को यह बात जम गई लेकिन इस तरह की बात स्वयंसेवक अंिभ से करते हुए वे झंेप गए थे। अपनी झेंप मिटाने का प्रयास करते हुए उन्होंने कहा- ‘वैसे मैने संघ का फर्स्ट ईयर किया है?’
स्वयंसेवक अंिभ ने पूछ लिया- पास हुए थे कि फेल?
एक बार पुनः कॉमरेड नरेन्द्र फंस गए। उन्होंने पूछा- ‘मतलब?’
‘आपने फर्स्ट ईयर किया है संघ का तो बताइए, एक गांव में एक सौ मुस्लिम परिवार रहता है और आपका परिवार अकेला हिन्दू परिवार है। ऐसे में एक संघ फर्स्ट ईयर पास स्टूडेन्ट होने के नाते आपका कर्तव्य क्या है?’
कॉमरेड नरेन्द्र ने सोचा भी नहीं था कि फर्स्ट ईयर पास करने के लिए ये संघ वाले इतना कम्यूनल किस्म का सवाल पूछते हैं।
स्वयंसेवक अंिभ ने मुस्कुराते हुए कहा- इसका मतलब आप फेल हुए थे, फर्स्ट ईयर में।
कॉमरेड नरेन्द्र ने सिर झुकाकर कहा, बहुत पुरानी बात है, अब याद नहीं।
स्वयंसेवक अंिभ ने कहा- यह बात कोई संघ वाला नहीं भूल सकता क्योंकि उन्हें बताया जाता है कि अपना नाम भूल जाना लेकिन यह लेसन नहीं भूलना।
कॉमरेड नरेन्द्र से कुछ कहते नहीं बन रहा था। अंिभ ने उन्हें समझाया- नरेन्द्रजी इस तरह जब आप संघ वाला होने का झूठा दावा करेंगे तो यूं ही पकड़े जाएंगे। अच्छा होगा कि आप संघ की शाखा जाइए, वहां देखिए और जो देखिए वह लिखिए।
कॉमरेड नरेन्द्र समझ गए थे कि उनका झूठ पकड़ा गया है। वैसे आज एक सरकार है और कल एक नई सरकार आज जाएगी। सरकार आज है कल बदल जाएगी लेकिन आपका बोला हुआ झूठ नहीं बदलेगा और किसी भी तरह के समझौते के लिए बोला गया झूठ आपको हमेशा झूठा बनाए रखेगा। यदि वैचारिक प्रतिबद्धता को निभाने का दम नहीं है तो बेवजह के झूठे दावों से बचना ही बेहतर है।
(उंगलबाज.कॉम, हमारी विश्वसनीयता संदिग्ध)
यूं तो यह कहानी नई सरकार और एक व्यक्ति के पुरानी वैचारिक प्रतिबद्धता के प्रति बरते जाने वाली धूर्तता की है। लेकिन सच तो यह है कि यह व्यक्ति की नहीं, प्रवृति की कहानी है।
नरेन्द्र कई दिनों से नए वाले गृहमंत्री के घर और दफ्तर के चक्कर लगा रहे हैं। सुनने वाले बता रहे थे कि नई सरकार में उनकी कोई बात पक्की होनी है। नरेन्द्र की कहानी से पहले उनका थोड़ा सा परिचय। नरेन्द्र आईसा के साथ कॉलेज राजनीति में सक्रिय थे। बाद के दिनों में प्रगतिशील लेखक संघ के कार्यक्रमों में भी देखे जाते रहे हैं। स्वभाव से कवि हैं। बाबरी मस्जिद के गिरने को वे यूपीए की सरकार में विश्व इतिहास का सबसे काला दिन मानते थे। एनडीए सरकार के आन के बाद वह बाबरी मस्जिद को राम जन्मभूमि कहना पसंद करते हैं, चूंकि अब तक इस बयान का दस्तावेजीकरण नहीं हुआ है, इसलिए प्रमाण के अभाव में उस संज्ञा के जिक्र को प्रामाणिक ना माना जाए। देश में किसी भी प्रकार के साम्प्रदायिक तनाव के पीछे यूपीए काल में वे आरएसएस का हाथ देखते थे। एनडीए सरकार में उनका नजरिया बदल चुका है, जिसका जिक्र यहां नहीं किया जा रहा, कारण- ऊपर बताया गया है। उनकी एक कविता है,
‘कौव्वा उड़ा मंदिर से और जा कर बैठा मस्जिद पर, ब्राम्हणवादी ताकतों ने कह कर धर्मान्तरण,
पूरे शहर में करा दिया दंगा।
नीक्कर पहन के आ गए दंगाई, पुलिस वाला भी ना ले सका जिनसे पंगा।’
नरेन्द्र के परिचय के साथ अंिभ का परिचय कराना भी जरूरी है। जिनका इन्काउंटर गृहमंत्री के घर पर नरेन्द्र से हुआ और यह पूरी कहानी बनी। अंिभ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक हैं। दिल्ली में रहकर विद्यार्थी परिषद की राजनीति की। विश्व हिन्दू परिषद का दायित्व दो साल पहले तक उनके पास था। नई सरकार में ‘जायजा मंत्रालय’ उनके पास है। वे एक के बाद एक मंत्रालय का जायजा लेते रहते हैं। इस महती जिम्मेवारी को उठाने का संकल्प उन्होंने खुद अपने ऊपर ले रखा है। दिल्ली के हर एक मंत्रालय की छोटी बड़ी खबर आप उनसे पा सकते हैं। अंिभ को एक बार खबर मिल जाए इसका सीधा सा अर्थ है कि वह खबर आठ पहर में वायरल होने वाली है।
गृहमंत्री के घर पर कॉमरेड नरेन्द्र ने जैसे ही स्वयंसेवक अंिभ को देखा, उससे नजरे चुराने लगे लेकिन कब तक? पकड़े गए। अंिभ जानते थे कि कॉमरेड नरेन्द्र कई दिनों से सरकार की एक सलाहकार समिति में जगह बनाने के लिए मंत्रीजी के घर और दफ्तर के चक्कर काट रहे हैं।
जब स्वयंसेवक अंिभ से नजर मिल गई तो कॉमरेड नरेन्द्र मुस्कुराते हुए उनसे मिले और उनके दोनों हाथों को अपने हाथ में लेकर झुलाने लगे।
‘जानते हैं अंिभजी हमरा परिवार तो बाल्यकाल से ही स्वयंसेवक रहा है। मेरे चाचाजी, मेरे पिताजी सभी स्वयंसेवक हैं। मैं भी बचपन में शाखा जाता था। बाल्यकाल से स्वयंसेवक हूं। इस देश का ऐसा कौन सा हिन्दू बालक होगा जो बचपन में शाखा ना जाता हो?’
कॉमरेड नरेन्द्र की यह भाषा स्वयंसेवक अंिभ के लिए चौंकाने वाली थी। अंिभ मसखरी के मूड में थे, अंिभ ने कहा-
आप बाल्यकाल स्वयंसेवक हैं, यह अच्छी बात है लेकिन संघ में गर्भस्थ स्वयंसेवक की बात अधिक सुनी जाती है। यदि आप गर्भस्थ स्वयंसेवक होते तो यहां आने की जरूरत ही नहीं पड़ती। प्रचारक ही एक चिट्ठी लिख देते और घर बैठे-बैठे आपका काम हो जाता।’
कॉमरेड नरेन्द्र ने पहली बार गर्भस्थ स्वयंसेवक का जिक्र सुना था। उनकी रूचि जगी कि यह गर्भस्थ स्वयंसेवक क्या होता है और एनडीए सरकार में यह इतना पावरफूल क्यों है?
स्वयंसेवक अंिभ ने समझाया -
गर्भस्थ स्वयंसेवक उन संतानों को कहते हैं, जिनके मां-बाप दोनों स्वयंसेवक परिवार से आते हों। मतलब दादा और नाना दोनों संघी हों।
कॉमरेड नरेन्द्र समझ गए थे कि गर्भस्थ स्वयंसेवक होना नई सरकार में बहुत काम की चीज है। लेकिन वे समझ नहीं पा रहे थे, कि खुद को गर्भस्थ स्वयंसेवक साबित कैसे किया जाए?
रास्ता स्वयंसेवक अंिभ ने सुझाया- संघ के इतने संगठन देश भर में चलते हैं कि संघ वालों को ही पता नहीं है। आगे से बता दिया कीजिए कि मैं गर्भस्थ स्वयंसेवक हूं और मेरे नाना जी ‘प्रगतिशील हिन्दू महासभा’ के संयोजक थे उज्जैन में। किसे पता चलेगा?
स्वयंसेवक अभि ने गर्भस्थ स्वयंसेवकों का महिमागान करते हुए फूसफूसा के कहा, मानों कोई अति राज की बात कर रहे हों- आप जानते हैं, प्रधानमंत्री के पीछे छह गर्भस्थ स्वयंसेवकों को लगाया गया है। प्रधानमंत्री कब मुतने जाते हैं, यह बात चाहे एसपीजी को पता ना हो लेकिन गर्भस्थ स्वयंसेवकों को उन्हें यहां तक की जानकारी रिपोर्ट करनी पड़ती है। गर्भस्थ स्वयंसेवकों का इस राज में कोई काम नहीं रूक रहा।
कॉमरेड नरेन्द्र को यह बात जम गई लेकिन इस तरह की बात स्वयंसेवक अंिभ से करते हुए वे झंेप गए थे। अपनी झेंप मिटाने का प्रयास करते हुए उन्होंने कहा- ‘वैसे मैने संघ का फर्स्ट ईयर किया है?’
स्वयंसेवक अंिभ ने पूछ लिया- पास हुए थे कि फेल?
एक बार पुनः कॉमरेड नरेन्द्र फंस गए। उन्होंने पूछा- ‘मतलब?’
‘आपने फर्स्ट ईयर किया है संघ का तो बताइए, एक गांव में एक सौ मुस्लिम परिवार रहता है और आपका परिवार अकेला हिन्दू परिवार है। ऐसे में एक संघ फर्स्ट ईयर पास स्टूडेन्ट होने के नाते आपका कर्तव्य क्या है?’
कॉमरेड नरेन्द्र ने सोचा भी नहीं था कि फर्स्ट ईयर पास करने के लिए ये संघ वाले इतना कम्यूनल किस्म का सवाल पूछते हैं।
स्वयंसेवक अंिभ ने मुस्कुराते हुए कहा- इसका मतलब आप फेल हुए थे, फर्स्ट ईयर में।
कॉमरेड नरेन्द्र ने सिर झुकाकर कहा, बहुत पुरानी बात है, अब याद नहीं।
स्वयंसेवक अंिभ ने कहा- यह बात कोई संघ वाला नहीं भूल सकता क्योंकि उन्हें बताया जाता है कि अपना नाम भूल जाना लेकिन यह लेसन नहीं भूलना।
कॉमरेड नरेन्द्र से कुछ कहते नहीं बन रहा था। अंिभ ने उन्हें समझाया- नरेन्द्रजी इस तरह जब आप संघ वाला होने का झूठा दावा करेंगे तो यूं ही पकड़े जाएंगे। अच्छा होगा कि आप संघ की शाखा जाइए, वहां देखिए और जो देखिए वह लिखिए।
कॉमरेड नरेन्द्र समझ गए थे कि उनका झूठ पकड़ा गया है। वैसे आज एक सरकार है और कल एक नई सरकार आज जाएगी। सरकार आज है कल बदल जाएगी लेकिन आपका बोला हुआ झूठ नहीं बदलेगा और किसी भी तरह के समझौते के लिए बोला गया झूठ आपको हमेशा झूठा बनाए रखेगा। यदि वैचारिक प्रतिबद्धता को निभाने का दम नहीं है तो बेवजह के झूठे दावों से बचना ही बेहतर है।
(उंगलबाज.कॉम, हमारी विश्वसनीयता संदिग्ध)