गणतंत्र दिवस कवि सम्मेलन श्रोताओं के लिए संभव है पांच-आठ घंटे चलने वाला एक सांस्कृतिक कार्यक्रम हो लेकिन मंचिय कवियों के लिए इस बात का प्रमाण पत्र है कि अब वे भी मंचिय कविता के लाल किला क्लब में शामिल हो गए हैं। एक बार लाल किला क्लब में जो कवि शामिल हो जाए। वह मंचिय कविता का श्रेष्ठ कवि मान लिया जाता है। यह गौरव देश के किसी भी दूसरे मंचिय कवि सम्मेलन को प्राप्त नहीं है। जब ऐसे कवि सम्मेलन में पैरवी से आए कवि सुनने को मिलते हेैं तो तकलीफ स्वाभाविक है।
वर्ष 2014 का लाल किला कवि सम्मेलन सुरेन्द्र शर्मा के संचालन में सम्पन्न हुआ। इस संचालन में वे थके हुए से नजर आए, कई बार वे मंच पर होकर भी लगा मंच पर नहीं हैं। यूं कहिए कि हिन्दी अकादमी ने कोई जिम्मेवारी दी है तो उन्हें ना कहते नहीं बना, सो चले आए जैसी स्थिति थी। ‘ओरिजनल’ सुरेन्द्र शर्मा मंच पर नजर नहीं आए। यूं भी तीस कवियों को संचालित करना आसान काम तो नहीं होता। जब सुरेन्द्र अपने अंदाज में श्रोताओं से अनुरोध कर रहे थें कि वे अपना मोबाइल सायलेन्ट मोड पर डालकर जेब में रख लें, उस दौरान और आगे कविता के बीच में तमाम कवि मंच पर मोबाइल में उलझे नजर आए। बिना इस बात की परवाह किए कि यदि कवि स्वयं अनुशासित नहीं होंगे, फिर वे श्रोताओं से अनुशासन की अपेक्षा किस मुंह से रखेंगे? मंच पर कई कवियों ने लाल किले के कवि सम्मेलन का बखान किया लेकिन कवि सम्मेलन खत्म होने तक आधे से भी कम कवि मंच पर बैठे थे। जिस कवि सम्मेलन को अंतिम तक सुनने के लिए कवि स्वयं अंतिम तक बैठने को तैयार नहीं हैं, उस कवि सम्मेलन के लिए कैसे वे उम्मीद रखते हैं कि सोनिया गांधी उनके मंच तक आएंगी और अंतिम कवि तक बैठ कर सुनेगी। कवियों ने इस मंच की गरीमा को इतना कम किया है कि कभी अंतिम कवि तक जिस कवि सम्मेलन को नेहरू सुनते थे, उस कवि सम्मेलन को अब दिल्ली सरकार की मंत्री भी अंतिम कवि तक सुनना पसंद नहीं करती। दिल्ली के मुख्यमंत्री मुशायरे में जाना मंजूर करते हैं लेकिन भूलकर भी कवि सम्मेलन का रास्ता नहीं पकड़ते। इस मंच पर एक कवित्री ऐसी भी थी, जो कवि सम्मेलन में मौजूद होकर भी मौजूद नहीं थी।
कुछ भर्ती के कवियों को छोड़ दिया जाए- जिनमें कुछ अपने अधिकारी होने का लाभ लेकर कवि सम्मेलन में घुस आए होंगे- तो इस बार मंच ने श्रोताओं का पूरा प्यार बटोरा। जब कवि सम्मेलन प्रारंभ हुआ था, आम आदमी की टोपी दर्जनों सिरों पर पड़ी थी। कवि सम्मेलन में आम आदमी पार्टी कई कवियों के निशाने पर रही, शायद इसी का परिणाम था कि सम्मेलन खत्म होते-होते चंद सिरों पर यह टोपी रह गई थी।
इस कवि सम्मेलन की उपलब्धि रहे, पदम्श्री बेकल उत्साही। इस कवि सम्मेलन के साथ इस बुजूर्ग कवि ने ऐसी याद जोड़ दी है कि आने वाले समय में इस कवि सम्मेलन को इसलिए भी याद किया जाएगा क्योंकि इसमें बेकल उत्साही ने काव्य पाठ किया था। पूनम वर्मा और बलराम श्रीवास्तव पहली बार लाल किला कवि सम्मेलन में आए थे और पहली ही बार में उन्होंने खुद को साबित किया और खूब जमंे।
सुरेश नीरव मंच पर आए तो इस दावे के साथ थे कि वे अपने पाठ के दौरान श्रोताओं से ताली डिमांड नहीं करेंगे और मंच से बार-बार ‘आशीर्वाद’मांगते पाए गए। सुरेश नीरव साहब को अपनी अच्छी रचना के साथ बोरिंग भूमिका से बचना चाहिए क्योंकि जो लोग कविता सुनने आए हैं, उनकी समझदारी पर अधिक संदेह करना कविजी अच्छी बात नहीं होती। भारत भूषण आर्य पूरे कवि सम्मेलन के अकेले ऐसे कवि रहे, जिन्हें श्रोताओं ने सबसे अधिक बे आबरू किया और वे हिट विकेट होकर पवेलियन लौटे।
आलोक श्रीवास्तव के साथ मंच संचालक सुरेन्द्र शर्मा ने अच्छा नहीं किया। मंच की कविता की थोड़ी समझदारी रखने वाला व्यक्ति समझ सकता है कि विनीत चौहान और मदन मोहन समर नाम के दो मजबूत चक्कियों के बीच आए आलोक श्रीवास्तव का क्या हुआ होगा? प्रवीण शुक्ल मंचिय कविता के पुराने शार्प शूटर हैं, उसके बावजूद मदन मोहन समर की कविता का जादू जो भूत की तरह श्रोताओं पर चढ़ गया था, उसे उतारने के लिए प्रवीण को काफी मशक्कत करनी पड़ी। प्रवीण ने अपंने अंदाज में तब तक समर के गीत ‘थाम तीरंगा करो घोषण हिंन्दुस्तान जवान है... कि पैरोडी की, जब तक दर्शकों ने अपने हाथ खड़े नहीं कर लिए।
‘तुमने दस-दस लाख दिए हैं, सैनिक की विधवाओं को
सोचा कीमत लौटा दी है, वीर प्रसूता माओं को,
मैं बीस लाख देता हूं, तुम किस्मत के हेटों को
हिम्मत हैं तो मंत्री भेजे लड़ने अपने बेटों को।
विनीत चौहान की इन चार पंक्तियों पर देर तक पंडाल में तालियों की गूंज सुनाई देती रही।
इस कवि सम्मेलन में दिनेश रघुवंशी का नाम ना लिया जाए तो, कवि सम्मेलन के लिए की गई पूरी बात अधूरी रह जाएगी। मेरी राय में वर्ष 2014 गणतंत्र दिवस कवि सम्मेलन में रघुवंशी सर्वश्रेष्ठ कवि रहे । कश्मीर जनमत संग्रह पर रघुवंशी की चार पंक्तियों खूब सराही गईं-
‘अगर गैरत है तो शरहद के रखवालों से भी पूछो
वतन जिनके लिए सबकुछ है मतवालों से भी पूछो,
अगर कश्मीर में जनमत कराना चाहते हो तो
वहां कुर्बान हर सैनिक के घरवालों से भी पूछो।’
कुंवर बेचैन, लक्ष्मी शंकर वाजपेयी, सर्वेश अस्थानाा और सरिता शर्मा की उपस्थिति से मंच की गरिमा बढ़ी।
वर्ष 2014 का लाल किला कवि सम्मेलन सुरेन्द्र शर्मा के संचालन में सम्पन्न हुआ। इस संचालन में वे थके हुए से नजर आए, कई बार वे मंच पर होकर भी लगा मंच पर नहीं हैं। यूं कहिए कि हिन्दी अकादमी ने कोई जिम्मेवारी दी है तो उन्हें ना कहते नहीं बना, सो चले आए जैसी स्थिति थी। ‘ओरिजनल’ सुरेन्द्र शर्मा मंच पर नजर नहीं आए। यूं भी तीस कवियों को संचालित करना आसान काम तो नहीं होता। जब सुरेन्द्र अपने अंदाज में श्रोताओं से अनुरोध कर रहे थें कि वे अपना मोबाइल सायलेन्ट मोड पर डालकर जेब में रख लें, उस दौरान और आगे कविता के बीच में तमाम कवि मंच पर मोबाइल में उलझे नजर आए। बिना इस बात की परवाह किए कि यदि कवि स्वयं अनुशासित नहीं होंगे, फिर वे श्रोताओं से अनुशासन की अपेक्षा किस मुंह से रखेंगे? मंच पर कई कवियों ने लाल किले के कवि सम्मेलन का बखान किया लेकिन कवि सम्मेलन खत्म होने तक आधे से भी कम कवि मंच पर बैठे थे। जिस कवि सम्मेलन को अंतिम तक सुनने के लिए कवि स्वयं अंतिम तक बैठने को तैयार नहीं हैं, उस कवि सम्मेलन के लिए कैसे वे उम्मीद रखते हैं कि सोनिया गांधी उनके मंच तक आएंगी और अंतिम कवि तक बैठ कर सुनेगी। कवियों ने इस मंच की गरीमा को इतना कम किया है कि कभी अंतिम कवि तक जिस कवि सम्मेलन को नेहरू सुनते थे, उस कवि सम्मेलन को अब दिल्ली सरकार की मंत्री भी अंतिम कवि तक सुनना पसंद नहीं करती। दिल्ली के मुख्यमंत्री मुशायरे में जाना मंजूर करते हैं लेकिन भूलकर भी कवि सम्मेलन का रास्ता नहीं पकड़ते। इस मंच पर एक कवित्री ऐसी भी थी, जो कवि सम्मेलन में मौजूद होकर भी मौजूद नहीं थी।
कुछ भर्ती के कवियों को छोड़ दिया जाए- जिनमें कुछ अपने अधिकारी होने का लाभ लेकर कवि सम्मेलन में घुस आए होंगे- तो इस बार मंच ने श्रोताओं का पूरा प्यार बटोरा। जब कवि सम्मेलन प्रारंभ हुआ था, आम आदमी की टोपी दर्जनों सिरों पर पड़ी थी। कवि सम्मेलन में आम आदमी पार्टी कई कवियों के निशाने पर रही, शायद इसी का परिणाम था कि सम्मेलन खत्म होते-होते चंद सिरों पर यह टोपी रह गई थी।
इस कवि सम्मेलन की उपलब्धि रहे, पदम्श्री बेकल उत्साही। इस कवि सम्मेलन के साथ इस बुजूर्ग कवि ने ऐसी याद जोड़ दी है कि आने वाले समय में इस कवि सम्मेलन को इसलिए भी याद किया जाएगा क्योंकि इसमें बेकल उत्साही ने काव्य पाठ किया था। पूनम वर्मा और बलराम श्रीवास्तव पहली बार लाल किला कवि सम्मेलन में आए थे और पहली ही बार में उन्होंने खुद को साबित किया और खूब जमंे।
सुरेश नीरव मंच पर आए तो इस दावे के साथ थे कि वे अपने पाठ के दौरान श्रोताओं से ताली डिमांड नहीं करेंगे और मंच से बार-बार ‘आशीर्वाद’मांगते पाए गए। सुरेश नीरव साहब को अपनी अच्छी रचना के साथ बोरिंग भूमिका से बचना चाहिए क्योंकि जो लोग कविता सुनने आए हैं, उनकी समझदारी पर अधिक संदेह करना कविजी अच्छी बात नहीं होती। भारत भूषण आर्य पूरे कवि सम्मेलन के अकेले ऐसे कवि रहे, जिन्हें श्रोताओं ने सबसे अधिक बे आबरू किया और वे हिट विकेट होकर पवेलियन लौटे।
आलोक श्रीवास्तव के साथ मंच संचालक सुरेन्द्र शर्मा ने अच्छा नहीं किया। मंच की कविता की थोड़ी समझदारी रखने वाला व्यक्ति समझ सकता है कि विनीत चौहान और मदन मोहन समर नाम के दो मजबूत चक्कियों के बीच आए आलोक श्रीवास्तव का क्या हुआ होगा? प्रवीण शुक्ल मंचिय कविता के पुराने शार्प शूटर हैं, उसके बावजूद मदन मोहन समर की कविता का जादू जो भूत की तरह श्रोताओं पर चढ़ गया था, उसे उतारने के लिए प्रवीण को काफी मशक्कत करनी पड़ी। प्रवीण ने अपंने अंदाज में तब तक समर के गीत ‘थाम तीरंगा करो घोषण हिंन्दुस्तान जवान है... कि पैरोडी की, जब तक दर्शकों ने अपने हाथ खड़े नहीं कर लिए।
‘तुमने दस-दस लाख दिए हैं, सैनिक की विधवाओं को
सोचा कीमत लौटा दी है, वीर प्रसूता माओं को,
मैं बीस लाख देता हूं, तुम किस्मत के हेटों को
हिम्मत हैं तो मंत्री भेजे लड़ने अपने बेटों को।
विनीत चौहान की इन चार पंक्तियों पर देर तक पंडाल में तालियों की गूंज सुनाई देती रही।
इस कवि सम्मेलन में दिनेश रघुवंशी का नाम ना लिया जाए तो, कवि सम्मेलन के लिए की गई पूरी बात अधूरी रह जाएगी। मेरी राय में वर्ष 2014 गणतंत्र दिवस कवि सम्मेलन में रघुवंशी सर्वश्रेष्ठ कवि रहे । कश्मीर जनमत संग्रह पर रघुवंशी की चार पंक्तियों खूब सराही गईं-
‘अगर गैरत है तो शरहद के रखवालों से भी पूछो
वतन जिनके लिए सबकुछ है मतवालों से भी पूछो,
अगर कश्मीर में जनमत कराना चाहते हो तो
वहां कुर्बान हर सैनिक के घरवालों से भी पूछो।’
कुंवर बेचैन, लक्ष्मी शंकर वाजपेयी, सर्वेश अस्थानाा और सरिता शर्मा की उपस्थिति से मंच की गरिमा बढ़ी।